BHOPAL. यदि आपको सिविल जज ( Civil judge ) बनना है तो किसी भी कोर्ट में कम से कम तीन साल की प्रेक्टिस और लॉ में 70 प्रतिशत अंक लाना ही होंगे, इसके बिना आप जज नहीं बन सकते हैं ( judge rules )। हाईकोर्ट के इस नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने भी इस मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है।
आइए अब आपको पूरा मामला समझाते हैं। दरअसल, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के नियम के मुताबिक, सिविल जज के पद के लिए तीन साल की प्रैक्टिस का अनुभव अनिवार्य है। इसी के साथ लॉ में 70 प्रतिशत अंक लाना भी जरूरी होता है। इसे लेकर याचिकाकर्ता गरिमा खरे ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दायर की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
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जज बनने के लिए तीन साल की प्रैक्टिस जरूरी
आपको बता दें कि 2023 में मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती एवं सेवा की शर्तें) नियम, 1994 के नियम 7 में संशोधन किया गया है। इस बदलाव के बाद सिविल जज, जूनियर डिवीजन (प्रवेश स्तर) के पद के लिए एक अतिरिक्त पात्रता योग्यता शुरू की गई थी। इसमें नियम है कि आवेदन करने की लास्ट डेट तक कम से कम तीन साल तक वकील के रूप में अभ्यर्थी ने कोर्ट में प्रैक्टिस की हो और एलएलबी में 70 प्रतिशत अंक हासिल किए हों, तभी वह पात्र होगा।
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याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में इस संशोधन को रद्द करने की मांग की थी। तर्क दिया कि यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) सहित संविधान के कई अनुच्छेद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। हाईकोर्ट का विचार था कि संशोधन का उद्देश्य 'न्याय का गुणात्मक वितरण' और 'उत्कृष्टता को प्राथमिकता देनी चाहिए। यह निर्णयों की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए जाता है, जो बदले में बड़े पैमाने पर वादियों को प्रभावित करता है। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि जज बनना किसी का सिर्फ सपना नहीं हो सकता। न्यायपालिका में शामिल होने के लिए व्यक्ति के पास उच्चतम मानक होने चाहिए।
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