भारत के मुख्य न्यायाधीश, डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक फैसले दिए, जिनकी गूंज न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुनाई दी। उनका कार्यकाल 2022 में शुरू हुआ था। इस दौरान उन्होंने न्यायिक प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिनका उद्देश्य न्याय तक पहुंच को सरल और पारदर्शी बनाना था। चंद्रचूड़ का नाम प्रगतिशील न्यायविदों में लिया जाता है, जिन्होंने अपने फैसलों के माध्यम से भारतीय संविधान की आत्मा को जीवित रखने की कोशिश की। हालांकि, उनके कार्यकाल में कुछ ऐसे फैसले भी थे, जिनसे जनता के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं आईं।
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निजता का अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय ने गोपनीयता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा मानते हुए यह सुनिश्चित किया कि नागरिकों का निजता का अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित है। CJI चंद्रचूड़ ने इस फैसले के माध्यम से अपने प्रगतिशील दृष्टिकोण को उजागर किया।
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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश
CJI चंद्रचूड़ ने इस मामले में महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया और सबरीमाला मंदिर में 10-50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ बताया। उनका कहना था कि यह महिलाओं की स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन है।
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धारा 377 को अपराध की श्रेणी से हटाना
सर्वोच्च न्यायालय ने एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के अधिकारों का समर्थन करते हुए धारा 377 को रद्द किया, यह निर्णय एक ऐतिहासिक कदम था जो समलैंगिकता को अपराध के रूप में नहीं मानता।
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विवाह का अधिकार
CJI चंद्रचूड़ ने व्यक्तित्व की स्वतंत्रता के तहत एक वयस्क को अपने विवाह या धर्म परिवर्तन के फैसले का अधिकार दिया। हादिया मामले में उनका यह फैसला महिलाओं और पुरुषों के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ।
स्थायी आयोग
सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के निर्णय में CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं का पूर्ण बहिष्कार अनुचित है और सेना में लैंगिक समानता लाने के लिए मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है।
कानूनी गर्भपात का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की अनुमति दी, यह निर्णय महिलाओं के शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार का समर्थन करता है।
'टू फिंगर टेस्ट' पर प्रतिबंध
बलात्कार के मामलों में 'टू फिंगर टेस्ट' को खारिज करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने इसे पितृसत्तात्मक और सेक्सिस्ट बताया, और इसे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन माना।
'गर्भवती व्यक्ति' का प्रयोग
सर्वोच्च न्यायालय ने 'गर्भवती महिला' के बजाय 'गर्भवती व्यक्ति' शब्द का उपयोग किया, यह कदम जेंडर नूट्रल शब्दों की ओर एक महत्वपूर्ण पहल है जो समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा।
सेम सेक्स मैरेज
सर्वोच्च न्यायालय ने सेम सेक्स मैरेज को वैध करने से इनकार किया, लेकिन साथ ही एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए नागरिक संघ और कानूनी अधिकारों पर विचार करने के लिए पैनल गठन की सिफारिश की।
राम मंदिर मामला
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट को सौंपने का निर्णय लिया, और मुसलमानों को समानता के आधार पर भूमि दी जाने की बात की।
न्यायिक सुधारों की दिशा में निरंतर प्रयास किए
चंद्रचूड़ का मानना था कि न्यायपालिका को निरंतर सुधार की जरूरत है। उन्होंने न्यायिक प्रणाली को और प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए कई तकनीकी उपायों को लागू किया। इसके बावजूद, लोक अदालतों (Lok Adalats) और न्यायिक सुधारों (Judicial Reforms) को लेकर उनके द्वारा किए गए प्रयासों का स्तर अपेक्षाकृत कम रहा, क्योंकि इन क्षेत्रों में कानून में सुधार के लिए और भी समय की आवश्यकता थी।
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