जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव, संसद में 145 सांसदों ने किया समर्थन

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लोकसभा और राज्यसभा में 145 सांसदों ने इसे समर्थन दिया है। जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील दी है।

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Sandeep Kumar
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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैश कांड मामले में महाभियोग प्रस्ताव को लेकर संसद में गहमागहमी शुरू हो गई है। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को 145 सांसद और राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ को 50 सांसदों की साइन की हुई चिट्ठी मिली है। इस पत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की सिफारिश की गई है। पत्र में टीडीपी, कांग्रेस, जेडीयू, जेडीएस, जनसेना पार्टी, शिवसेना और सीपीएम जैसे कई विपक्षी दलों के नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं।

सांसदों का समर्थन

राहुल गांधी और सुप्रिया सुले समेत कई बड़े नेता महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में आए हैं। इसके बाद यह संख्या 145 सांसदों तक पहुंच गई है। विपक्षी दलों के नेताओं ने दोपहर को लोकसभा स्पीकर से मुलाकात कर महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में पत्र सौंपा। इसके साथ ही, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल और अन्य सांसदों ने भी इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं।

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महाभियोग की प्रक्रिया में सरकार की भूमिका

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि महाभियोग प्रस्ताव पर 100 से अधिक सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे। अब यह संख्या बढ़कर 145 हो गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि महाभियोग की प्रक्रिया केवल सरकार का कार्य नहीं है। यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से ही आगे बढ़ेगा।

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जस्टिस यशवंत वर्मा की दलीलें

जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर की है। उन्होंने महाभियोग प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इन-हाउस पैनल ऐसी सिफारिश नहीं कर सकता। उन्होंने जांच प्रक्रिया में अपनी सुनवाई का अधिकार न दिए जाने और औपचारिक शिकायत की अनुपस्थिति पर भी आपत्ति जताई है।

सांसदों की संख्या और कार्यवाही

जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही पहले ही शुरू हो चुकी है। 145 सांसदों ने लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिरला को ज्ञापन सौंपा है, और राज्यसभा में 50 से ज्यादा सांसदों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं।

संसद में ऐसे लाया जाता है महाभियोग प्रस्ताव

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👉 किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है।

👉 प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों को हस्ताक्षर करने होंगे और लोकसभा में 100 सदस्यों का समर्थन चाहिए।

👉 जब प्रस्ताव दो तिहाई मतों से पारित हो जाता है, तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति सीजेआई से जांच समिति का गठन करने का अनुरोध करते हैं।

👉 जांच समिति में तीन सदस्य होते हैं- एक सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस, एक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और सरकार की तरफ से नामित कोई न्यायविद।

महाभियोग के लिए कितने सदस्यों की सहमति जरूरी

प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों या राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। इसके बाद यह प्रस्ताव अध्यक्ष (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) को प्रस्तुत किया जाता है। इसके आधार पर वह प्रस्ताव को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का निर्णय ले सकते हैं। अगर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो पीठासीन अधिकारी द्वारा तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है।

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जजों पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया

प्रस्ताव स्वीकार होने पर एक जांच समिति का गठन किया जाता है। इसमें एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद होते हैं। समिति आरोप तय करेगी, जिसके आधार पर जांच की जाएगी। आरोपों की एक प्रति न्यायाधीश को भेजी जाएगी। वे लिखित बचाव प्रस्तुत कर सकते हैं। समिति आरोपों की गहन जांच करती है। जांच के बाद, अध्यक्ष या सभापति को रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है, जिसमें निष्कर्ष होते हैं।

कैसे होती है संसदीय प्रक्रिया

अगर समिति जज को दोषी मानती है, तो संसद के दोनों सदन प्रस्ताव पर चर्चा कर सकते हैं। प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है: (i) उस सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और (ii) उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत।

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राष्ट्रपति का आदेश

दोनों सदनों में सफलतापूर्वक पारित होने पर अनुच्छेद 124(4) के अनुसार प्रस्ताव राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद न्यायाधीश को हटा दिया जाता है।

अब तक किन जजों के खिलाफ आया महाभियोग प्रस्ताव

👉 1993 में जस्टिस वी. रामास्वामी को वित्तीय अनियमितता के आरोप में हटाया गया था। हालांकि, साक्ष्य के बावजूद सदन में उनके खिलाफ लाया गया प्रस्ताव विफल हो गया। कुछ सांसदों ने मतदान से परहेज किया और बाद में उन्हें हटा दिया गया।

 👉 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन पर न्यायालय द्वारा नियुक्त रिसीवर के रूप में धन के दुरुपयोग का आरोप लगा। उन्होंने राज्यसभा द्वारा प्रस्ताव पारित होने और लोकसभा में इस पर चर्चा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

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