जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग, सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने में लगी सरकार, जानें वजह...

केंद्र सरकार जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। सांसदों से साइन जुटाए जा रहे हैं, प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा।

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Amresh Kushwaha
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केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए महाभियोग (Impeachment) प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लोकसभा में यह प्रस्ताव लाने की योजना है। इसके लिए सांसदों के दस्तखत (Signatures) जुटाए जा रहे हैं। कई सांसदों के साइन पहले ही लिए जा चुके हैं और यह संकेत मिल रहा है कि प्रस्ताव जल्द ही संसद में पेश किया जा सकता है। लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 100 सांसदों के साइन की आवश्यकता होती है, जबकि राज्यसभा में यह संख्या 50 सांसदों की होती है।

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पहले ही इस बात की पुष्टि की थी कि जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव 21 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।

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जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोप

दिल्ली हाईकोर्ट से जस्टिस वर्मा को ट्रांसफर कर दिया गया था और वर्तमान में वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के तौर पर कार्यरत हैं। 14 मार्च की रात को उनके लुटियंस दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास के स्टोर रूम में आग लग गई थी। इस स्टोर रूम से 500-500 रुपए के जले हुए नोटों के बंडलों से भरे बोरे मिले थे। इसके बाद यह मामला सामने आया।

जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों के अनुसार, उनके स्टोर रूम पर उनके परिवार का ही सीक्रेट या सक्रिय नियंत्रण था। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक पैनल ने इस मामले की जांच की थी, और 19 जून को रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए थे। इसके अनुसार, जस्टिस वर्मा के परिवार के सदस्य स्टोर रूम में मौजूद थे, जहां से जले हुए नोटों के ढेर मिले थे।

जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग प्रस्ताव की मुख्य बातें...

  • महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत: केंद्र सरकार ने जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू की है और सांसदों से साइन जुटाए जा रहे हैं।
  • आरोप: जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास के स्टोर रूम से जले हुए नोटों के बंडल मिले हैं, और उनके परिवार का इस पर नियंत्रण था।
  • सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट: 19 जून को जारी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए थे, जिसमें जले हुए नोटों का मिलना और उनके घरेलू कर्मचारियों द्वारा नोटों को निकालना शामिल था।
  • विवाद में चुप्पी: जस्टिस वर्मा ने इस घटना की पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई, बल्कि इसे साजिश बताकर चुपचाप इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर स्वीकार किया।

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जस्टिस वर्मा पर रिपोर्ट में क्या आया सामने...

पैनल की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ कई प्रमुख बिंदुओं पर गौर किया गया था:

  • चश्मदीदों ने जले हुए नोट देखे: 10 चश्मदीदों ने आधे जले हुए नोट देखे थे, जिनमें दिल्ली फायर सर्विस के अधिकारी और पुलिस कर्मी शामिल थे।

  • जस्टिस वर्मा ने खंडन नहीं किया: घटनास्थल से मिले इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और चश्मदीदों के बयानों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की पुष्टि की।

  • घरेलू कर्मचारियों ने नोट निकाले: जस्टिस वर्मा के दो घरेलू कर्मचारियों ने स्टोर रूम से जले हुए नोट निकाले थे, और वायरल वीडियो से उनकी आवाज की पहचान की गई।

  • बेटी ने गलत बयान दिया: जस्टिस वर्मा की बेटी ने वीडियो के बारे में गलत बयान दिया, हालांकि कर्मचारी ने खुद स्वीकार किया कि वह वीडियो में मौजूद था।

  • पुलिस में रिपोर्ट नहीं की गई: जस्टिस वर्मा ने घटना के बारे में किसी प्रकार की पुलिस रिपोर्ट नहीं की, बल्कि इसे साजिश बताकर चुपचाप इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर स्वीकार किया।

जानें जस्टिस वर्मा का पिछला विवाद

  1. 2018 में घोटाला: जस्टिस वर्मा का नाम 2018 में एक बड़े घोटाले में जुड़ा था, जिसमें 97 करोड़ 85 लाख रुपए के गड़बड़ी का आरोप था। यह मामला गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में हुआ था।

  2. अनियमितताएं और FIR: ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने शुगर मिल में अनियमितताएं देखी थीं और CBI ने FIR दर्ज की थी।

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महाभियोग प्रस्ताव के लिए तैयारी

केंद्र सरकार इस मामले में महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना बना रही है। प्रस्ताव को लोकसभा में लाने के लिए 100 सांसदों के दस्तखत जरूरी होते हैं। वर्तमान में, सरकार सांसदों से साइन जुटाने की प्रक्रिया में जुटी हुई है, और यह प्रस्ताव 21 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया जा सकता है।

जानें जस्टिस यशवंत वर्मा कौन है?

जस्टिस यशवंत वर्मा भारतीय न्यायपालिका के एक प्रमुख सदस्य हैं, जिनका करियर तीन दशकों से भी अधिक समय से कानून के क्षेत्र में सशक्त रूप से सक्रिय है। 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में जन्मे जस्टिस वर्मा ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद मध्य प्रदेश की रीवा यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की। 1992 में वकालत के क्षेत्र में कदम रखने के बाद, उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में कई महत्वपूर्ण मामलों की पैरवी की, जिनमें संवैधानिक, श्रम, औद्योगिक और कराधान से जुड़े मुद्दे शामिल थे।

13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में एडिशनल जज के रूप में अपनी यात्रा शुरू करने वाले जस्टिस वर्मा, 2016 में स्थायी जज बने और 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट में जज के रूप में शपथ ली। उन्होंने न्यायपालिका में कई अहम फैसले दिए और उनकी अध्यक्षता में संवैधानिक और आपराधिक मामलों की सुनवाई हुई।

जस्टिस वर्मा के अब तक के अहम फैसले...

यहाँ जस्टिस यशवंत वर्मा के कुछ अहम फैसलों की जानकारी सार्ट रूप में दी गई है-

फैसला विवरण
डॉ. कफील खान को जमानत अगस्त 2017 में गोरखपुर में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने से 60 बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफील खान को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत दी। जस्टिस वर्मा ने कहा कि चिकित्सीय लापरवाही का कोई प्रमाण नहीं था।
कांग्रेस की याचिका खारिज कांग्रेस पार्टी द्वारा आयकर विभाग के खिलाफ दायर याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज किया। कांग्रेस ने 210 करोड़ जुर्माने और बैंक खातों के फ्रीज़ होने के खिलाफ यह याचिका दायर की थी।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियां जनवरी 2023 में जस्टिस वर्मा ने कहा कि ईडी मनी लॉन्ड्रिंग के अलावा किसी अन्य अपराध की जांच नहीं कर सकती। इससे जांच एजेंसी की शक्तियों की सीमाओं पर स्पष्टता मिली।
दिल्ली आबकारी नीति मामले की मीडिया रिपोर्टिंग जस्टिस वर्मा ने दिल्ली शराब घोटाले के मामले में मीडिया द्वारा संवेदनशील जानकारी लीक करने पर न्यूज चैनलों से जवाब मांगा।
रेस्तरां बिल पर सर्विस चार्ज जुलाई 2022 में जस्टिस वर्मा ने रेस्तरां और होटल द्वारा बिल पर सर्विस चार्ज लगाने के केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों पर रोक लगाई और यह आदेश दिया कि सर्विस चार्ज को मेनू में प्रमुखता से दिखाया जाए।

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