सत्ता की चाबी महिलाओं के हा​थ… जहां चुनाव, वहां सिर्फ इनके लिए योजना

महिला वोटर्स की बढ़ती भागीदारी ने राजनीतिक दलों को नई रणनीतियां अपनाने पर मजबूर कर दिया है। विभिन्न राज्यों में महिलाओं के लिए योजनाएं चुनावी सफलता की कुंजी बन गई हैं।

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Ravi Kant Dixit
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New Delhi : महिलाएं मानो अब सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की चाबी हो गई हैं। हालिया उदाहरण इसकी गवाही देते हैं। पिछले दिनों दो बिल्कुल अलग-अलग भौगोलिक भूभाग वाले झारखंड और महाराष्ट्र में चुनावी नतीजे तीन कारणों पर गौर करने पर मजबूर करते हैं। इनमें अव्वल तो ये कि दोनों राज्यों में मौजूदा गठबंधनों ने भारी अंतर से जीत हासिल की है। दूसरा, छह महीने पहले ही हुए लोकसभा चुनाव में इनका खराब प्रदर्शन रहा था, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ गठबंधनों ने रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की है। वहीं, तीसरा सबसे बड़ा और अहम फैक्टर महिला वोटर्स हैं। चुनाव से पहले झारखंड में झामुमो मैया सम्मान योजना लेकर आई तो महाराष्ट्र में माझी लाड़की बहिन योजना लॉन्च ​की गई। इन दोनों राज्यों में चुनाव से पहले ही महिलाओं के खाते में रुपए ट्रांसफर होने लगे थे। बस, फिर क्या था परिणाम सबके सामने रहा। जिसने रुपए देना शुरू कर दिए, नतीजे उसके पक्ष में चले गए।

दिल्ली में चुनाव बाद खाते में पैसा देने का ऐलान

अब देखिए न, विधानसभा चुनाव से दो महीने पहले ही दिल्ली सरकार भी महिलाओं के खाते में हर महीने पैसा ट्रांसफर करने की योजना लेकर आ गई है। आम आदमी पार्टी के मुखिया व दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने इसका ऐलान किया है। योजना के तहत 18 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं के बैंक खातों में हर महीने एक-एक हजार रुपए ट्रांसफर किए जाएंगे। दावा किया जा रहा है कि चुनाव के बाद पैसे आने लगेंगे, तब राशि को बढ़ाकर 2100 रुपए महीना तक किया जाएगा। केजरीवाल ने इसी साल मार्च में इस योजना का ऐलान किया था। दिल्ली के 11 जिलों में 70 विधानसभा सीटें हैं। इन पर इस बार 67 लाख से ज्यादा महिला वोटर्स हैं, इन्हें ही ध्यान में रखकर यह योजना लाई गई है।

इस फैक्ट को अन्य राज्यों के नतीजे भी साबित करते हैं। जैसे मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना योजना में महिलाओं को पहले से रुपए मिल रहे थे, लिहाजा वोटर्स ने बीजेपी पर ही भरोसा जताया। ऐसे ही हरियाणा में भी रुपए देने की शुरुआत कर दी गई थी, वहां भी नतीजे बीजेपी के पक्ष में ही आए। यहां खास यह भी है कि इन दोनों राज्यों में सेंटीमेंट कांग्रेस के पक्ष में थे, लेकिन जब नतीजे आए तो पूरा परिदृश्य बदल गया। कांग्रेस कहीं आसपास भी नजर नहीं आई।

इन राज्यों में महिलाओं के लिए चलाई जा रहीं योजनाएं

यदि यह कहें कि महिलाओं को पैसे देने योजना की सफलता ने देश में राजनीतिक दलों को नया सियासी बाण दे दिया है, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस बाण से पॉलिटिकल पार्टियां वोटर्स पर अचूक निशाना साध रही हैं। इसके उलट फ्री बीज की ऐसी योजनाएं राज्यों का पूरा आर्थिक ढांचा कमजोर कर रही हैं। देश के आठ राज्य मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना को अपना चुके हैं। फ्रीबीज की होड़ सी मची है। एमपी की लाड़ली बहना योजना के बाद से अब तक छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना, हिमाचल में प्यारी बहना योजना, कर्नाटक में गृह लक्ष्मी योजना, महाराष्ट्र में माझी लाड़की बहिन योजना, झारखंड में मुख्यमंत्री मैया सम्मान योजना, पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी भंडार योजना, ओडिशा में सुभद्रा योजना और तमिलनाडु में मां​गलिर उमरई योजना लागू की जा चुकी है।

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महिलाओं को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता

राजनी​ति में महिलाओं की महत्ता को समझने में मानो पार्टियों ने देर भी कर दी। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो 1990 के दशक में 73वीं और 74वीं संविधान संशोधनों के बाद महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर चर्चा लगभग 20 सालों तक शून्य ही रही। अब यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है। इसके पीछे दो बड़े बदलाव हैं। पहला यह है कि 2010 के बाद महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा है। चुनावों के दौरान पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर घटने लगा है।

महिला वोटर्स का एक अलग और महत्वपूर्ण समूह

यह परिवर्तन लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में भी देखा गया। उदाहरण के लिए 1996 के लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं और पुरुष मतदाताओं के बीच 10 प्रतिशत का अंतर था, जबकि 2024 में यह अंतर बहुत कम था। इस बदलाव के कारण 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 19 जगह महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा रही। इसका मतलब यह हुआ कि 200 से ज्यादा लोकसभा क्षेत्रों में महिला वोटर्स का टर्नआउट पुरुषों से अधिक था। इस बदलाव ने राजनीतिक दलों को यह समझाने के लिए मजबूर किया है कि अब महिला वोटर्स का एक अलग और महत्वपूर्ण समूह है, जिसे किसी भी सूरत में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।

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