Operation Smiling Buddha : गौतम बुद्ध का नाम लेते ही दिमाग में शांति, प्रेम और बौद्ध धर्म की बातें घूमने लगती हैं। सभी जानते हैं कि गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रचार- प्रसार किया था। शांति और अहिंसावादी बौद्ध के नाम पर हमारे देश के पहले परमाणु बम का नाम 'ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा' रखा गया, लेकिन आखिर ऐसा क्यों किया गया और किसने क्या था ? आइये इस खबर के माध्यम से विस्तार से जानते है क्या है ये माजरा ...।
दरअसल, इंदिरा गांधी सरकार ( Indira Gandhi Government ) में 'ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा' का परमाणु परीक्षण किया गया था। ये परीक्षण 18 मई 1974 में किया गया था। बम को सेना बेस पोखरण परीक्षण पर विस्फोट किया गया था। परमाणु परीक्षण के समय दुनियाभर के देश भारत की जासूसी में करने लगे थे। यूएन में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के अलावा किसी अन्य देश ने परमाणु परीक्षण नहीं किया था। ऐसे में इस ऑपरेशन को गुपचुप तरीके से पूरा करना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती थी।
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यह हथियार आत्मरक्षा के लिए
भारत में परमाणु बम का पोखरण रेंज में परीक्षण हुआ, किसी को इसकी भनक तक नहीं हुई। 'ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा' ( Operation Smiling Buddha ) के सफल परीक्षण ने दुनिया भर के देशों को चौंका दिया था। भारत का कहना था कि यह परमाणु परीक्षण शांति बनाए रखने के लिए किया गया था इसीलिए इसका नाम स्माइलिंग बुद्धा रखा। भारत ने कहा था कि यह हथियार आत्मरक्षा के लिए है। भारत कभी किसी देश पर परमाणु हमला नहीं करेगा। भारत का पहला परमाणु परीक्षण।
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रक्षा मंत्री को भी नही थी भनक
साल 1974 में 18 मई को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ( Bhabha Atomic Research Centre ) के डायरेक्टर प्रणब दस्तीदार ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इजाजत के बाद सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर विस्फोट किया था। इस परमाणु परीक्षण की भनक रक्षा मंत्री तक को नहीं लगी थी। इंदिरा गांधी ने कहा, डॉ. रमन्ना आप आगे बढ़िए...यह टेस्ट देश के हित में होगा। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, मुंबई से विस्फोटक और अन्य सामग्री पोखरण पहुंचाई गई थी। रमन्ना ने अपने निधन से पहले बताया था, यह बम तो बम होता है और बम का धमाका भी होता है। जैसे बंदूक चलती है तो आवाज तो होती ही है चाहे आप किसी पर चलाएं या फिर जमीन पर।
कनाडा और अमेरिका ने किया विरोध
साल 1974 में हुए इस टेस्ट को पीसफुल न्यूक्लियर एक्सप्लोजन ( Peaceful Nuclear Explosion ) बताया गया था। दरअसल प्लूटोनियम की सप्लाई कनाडा और अमेरिका से हुई थी। जब परमाणु परीक्षण की बात दोनों देशों को पता चली तो वे भारत के विरोध में खड़े हो गए। उनका कहना था कि, इसका इस्तेमाल केवल शांतिपूर्ण कार्यों के लिए किया जा सकता था। अब तक इस बात को लेकर बहस चल रही है कि यह एक पीसफुल न्यूक्लियर एक्सप्लोजन था या फिर परमाणु बम का टेस्ट था।
75 वैज्ञानिकों की टीम ने किया परमाणु परीक्षण
इस समय तक हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा चलता था, जो पंडित नेहरू ने दिया था लेकिन इंदिरा गांधी के विचार अलग थे। उस दौर में भी चीन परमाणु शक्ति संपन्न देश था और यह भारत के लिए बड़ी चुनौती थी। ऐसे में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परमाणु कार्यक्रम को तेज कर दिया। इसी के तहत 75 वैज्ञानिकों की टीम ने परमाणु परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस टीम की कमान राजा रमन्ना के हाथों में थी। इस सफल परीक्षण की घोषणा रेडियो पर की गई थी।