भारत ने अमेरिका-यूरोप को भी छोड़ा पीछे, जानें किस क्षेत्र में दर्ज की नई सफलता

भारतीय रेलवे ने 1,400 से ज्यादा इंजन उत्पादन कर अमेरिका और यूरोप को पीछे छोड़ दिया है, यह आत्मनिर्भरता और प्रगति का प्रतीक बन गया है। इस बड़ी सफलता से हर भारतीय को गर्व महसूस होगा

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Jitendra Shrivastava
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indianrailways-success Photograph: (thesootr)

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भारतीय रेलवे ने इस साल एक और बड़ी सफलता हासिल की है, जिससे हर भारतीय को गर्व महसूस होगा। रेलवे का इंजन और डिब्बों का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि यह “मेक इन इंडिया” की सफलता और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम है। 

इंजन उत्पादन में नई ऊंचाइयां

इस वर्ष भारतीय रेलवे ने लगभग 1,400 लोकोमोटिव (इंजन) बनाए हैं, जो अमेरिका और यूरोप के कुल प्रोडक्शन से अधिक हैं। यह उपलब्धि चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (CLW), बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW), और पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स (PLW) में हासिल की गई। रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में यह जानकारी दी कि इस उत्पादन से रेलवे की क्षमता और आत्मनिर्भरता में इजाफा हुआ है।

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कोच और मालगाड़ियों का उत्पादन

सिर्फ इंजन ही नहीं, भारतीय रेलवे ने कोच और मालगाड़ियों के उत्पादन में भी बड़ी वृद्धि की है। पहले जहां हर साल केवल 400-500 कोच बनाए जाते थे, वहीं अब यह संख्या बढ़कर 5,000 से 5500 हो गई है। पिछले 10 सालों में रेलवे ने 41,000 से ज्यादा नए LHB कोच बनाए हैं। इसके अलावा, मालगाड़ियों के लिए 2 लाख से ज्यादा नए डिब्बे जोड़े गए हैं, जिससे सामान ढोने की सुविधा और तेज हो गई है।

सुरक्षा में बड़ा निवेश

भारतीय रेलवे ने सुरक्षा पर भी बड़े सुधार किए हैं। मंत्री के अनुसार, पुराने ICF कोचों को जल्द ही नए और सुरक्षित LHB कोचों से बदल दिया जाएगा। इसके अलावा, रेलवे ने सुरक्षा पर ₹1.16 लाख करोड़ खर्च करने का ऐलान किया है, और कई नई तकनीकों को अपनाया है जैसे लंबी रेल पटरी, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल सिस्टम, और 'कवच' सुरक्षा प्रणाली।

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ट्रैक मेंटेनेंस के लिए नई तकनीक

रेलवे ने ट्रैक की मरम्मत और देखभाल के लिए भी नई तकनीकों का इस्तेमाल शुरू किया है। अब रेल-कम-रोड वाहन (RCR वाहन) की मदद से पटरियों की मरम्मत करना आसान हो गया है। पिछले कुछ वर्षों में 50,000 किलोमीटर ट्रैक को नया किया गया है, और वेल्डिंग की खराबी के मामले 3,700 से घटकर 250 रह गए हैं।

 

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