NEW DELHI. असली अदालत, असली मुजरिम और नकली जज... सही पढ़ा आपने। ऐसी ही कहानी है धनीराम मित्तल की। वह भारत का चार्ल्स शोभराज के नाम से भी मशहूर था। हरियाणा के इस शातिर चोर ने अकेले एक हजार से ज्यादा वाहनों की चोरी की थी। 94 मामलों में वह गिरफ्तार हुआ और जेल भी गया। अब बताया जाता है कि दो दिन पहले 18 अप्रैल को हार्टअटैक से उसकी मौत हो गई है। क्या ही आदमी था भाईसाहब। उसकी कारगुजारियां जानकर आप भी चौंक जाएंगे। धनीराम ने हरियाणा के झज्जर कोर्ट में नकली जज बनकर दो महीने में ही 2 हजार 740 अपराधियों को जमानत दे दी थी। उस पर 127 से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे। पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और राजस्थान सहित कई राज्यों की पुलिस को उसकी तलाश थी।
अब बताते हैं अब आपको पूरा किस्सा...
धनीराम मित्तल मूल रूप से हरियाणी के भिवानी का रहना वाला था। उन दिनों वह दिल्ली के पास टिकरी गांव में रहता था। जालसाजी उसका पेशा था। धनीराम ने पहले फर्जी डिग्री हासिल की। फिर कोलकाता से कैलीग्राफी (हैंड राइटिंग एक्सपर्ट) का डिप्लोमा पाया। इसी के बूते उसने दिल्ली की पाटियाला हाउस कोर्ट में मुनीम की नौकरी पा ली।
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इस तरह सूझी तरकीब
यहीं से पूरा खेल शुरू हुआ। नौकरी के दौरान एक दिन धनीराम को पता चला कि हरियाणा की झज्जर कोर्ट में एक जज के खिलाफ जांच चल रही है। यहीं धनीराम के दिमाग में जज बनने का आइडिया आया। उसने एक फर्जी लैटर बनाया और उन असली जज को भेज दिया, जिनके खिलाफ जांच चल रही थी। असली जज ने पत्र को असली समझा और वे छुट्टी पर चले गए। दो महीने वे कोर्ट नहीं पहुंचे।
ड्रेस पहनकर पहुंचा कोर्ट
अब असली जज छुट्टी पर चले गए थे। इसके बाद धनीराम ने हरियाणा हाईकोर्ट की तरफ से एक चिट्ठी झज्जर जिला कोर्ट को भेजी। चिट्ठी में लिखा कि एडिशनल जज के खिलाफ जांच चल रही है, इसलिए उनकी विभागीय जांच पूरी होने तक नए जज कोर्ट का प्रभार संभालेंगे। इसी के साथ अगले दिन धनीराम बाकायदा ड्रेस में कोर्ट पहुंचा और एडिशनल जज की कुर्सी पर जा बैठा। अब फर्जी जज धनीराम असली जज की तरह सुनवाई करने लगा। दो महीने में उसने झज्जर कोर्ट से 2 हजार 740 अपराधियों को जमानत दे डाली।
अपराधी भी दोस्त और साथी थे
खास बात यह थी कि धनीराम ने जिन्हें जमानत दी थी, उसमें से कई उसके पुराने दोस्त या साथी थे, जो चोरी में उसकी मदद करते थे। जब हर दिन सैकड़ों जमानतें होने लगी तो पूरे प्रदेश में झज्जर जिला कोर्ट फेमस हो गया। पोल खुलने के डर से धनीराम फरार हो गया।
गिरोह में थे 100 से ज्यादा लोग
2014 में वाहन चोरी के मामले में एक बार फिर पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। धनीराम ने अपने दागदार करियर की शुरुआत करीब 25 बरस की उम्र में की थी। वर्ष 1964 में वह पहली बार पकड़ा गया था। उसके गुनाहों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। आपको बता दें कि धनीराम के गिरोह में कभी 100 से भी ज्यादा लोग थे, लेकिन उसकी उम्र बढ़ने के साथ सब उसका साथ छोड़ते चले गए।
नटवर लाल की कारगुजारियां...
- 1939 में भिवानी की एक मिडिल क्लास फैमिली में जन्मा धनीराम रोहतक के एक कॉलेज से पढ़ा। फिर नकली कागजों के दम पर 1968-74 तक बतौर स्टेशन मास्टर काम किया।
- इससे पहले 1964 में रोहतक में आरटीओ दफ्तर में फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के आरोप में गिरफ्तार हुआ तो जांच में पता चला था कि उसने झज्जर में भी खुद को मजिस्ट्रेट के तौर पर पेश किया था।