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हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 142 के उपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तीखी आलोचना करने वाले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ विपक्ष के निशाने पर हैं। इधर BJP सांसद निशीकांत दुबे और दिनेश शर्मा के बयानों ने कोर्ट बड़ा कि संसद की बहस को जन्म दे दिया है। इसी बीच मीडिया समूह द वायर की एक रिपोर्ट को लेकर अलग ही विवाद खड़ा हो गया है। दरअसल thewire ने उपराष्ट्रपति को अवसरवादी और बीजेपी का वफादार कुत्ता बताते हुए एक तीखा लेख लिखा है। इस लेख में उन्हें Partisan Attack Dog बताया जा रहा है। ऐसे में बीजेपी समर्थक बेहद नाराज हैं और इसे अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन करार दे रहे हैं।
चलिए पहले संक्षेप में देखते हैं कि thewire के लेख में क्या लिखा है?
धनखड़ की बदनामी: जब उपराष्ट्रपति बन जाते हैं पक्षपाती हमलावर कुत्ता तो लोकतंत्र लहूलुहान होता है
(Dhankhar’s Disgrace: When the Vice-President Becomes a Partisan Attack Dog, Democracy Bleeds)
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में संवैधानिक पदों का दुरुपयोग पहले भी हुआ है, लेकिन वर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा जिस खुली पक्षपातपूर्ण शैली में यह किया जा रहा है, वैसा पहले शायद ही कभी देखा गया हो। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ उनके हमलावर बयानों ने केवल शर्मिंदगी ही नहीं, बल्कि गंभीर खतरे का संकेत भी दिया है। यह घटनाक्रम इतिहास में एक चेतावनी के रूप में दर्ज होगा- जब जो लोग संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं, वही उसके सबसे बड़े विध्वंसक बन जाएं, तो पूरा लोकतांत्रिक ढांचा हिल जाता है।
हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के खिलाफ बयान ने भारतीय लोकतंत्र में एक नई बहस छेड़ी है। उन्होंने अनुच्छेद 142 के उपयोग को "लोकतांत्रिक ताकतों पर परमाणु हमला" कहा, जो न केवल गलत, बल्कि संवैधानिक रूप से असंवैधानिक है। अनुच्छेद 142 न्याय के लिए एक सुरक्षा वाल्व है, जिसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए लागू किया गया है।
उपराष्ट्रपति ने क्या बोला था
यह पहली बार नहीं है जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों ने राजनीतिक दुरुपयोग किया हो। 1975 की इमरजेंसी में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने नागरिक अधिकारों को खत्म करने वाले आदेशों पर हस्ताक्षर किए थे, और हाल ही में राज्यपाल आरएन रवि ने भी विधेयकों पर सहमति नहीं दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने "गैरकानूनी और मनमाना" करार दिया। धनखड़ की कार्यशैली भी इन घटनाओं से मेल खाती है, खासकर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की आलोचना इसलिए भी हो रही है, क्योंकि वे सत्ताधारी पार्टी के साथ खुलकर खड़े हो रहे हैं और जब न्यायपालिका सरकार के खिलाफ निर्णय देती है, तो वे सरकार की भाषा बोलते हैं। यह संविधान के प्रति उनके दायित्व और शपथ का उल्लंघन है।
धनखड़ की राजनीतिक यात्रा में विचारधारा की स्थिरता नहीं रही है। जनता दल से शुरुआत, फिर कांग्रेस में शामिल हुए, और अंततः भाजपा में गए, जो उनके राजनीतिक अवसरवाद को दर्शाता है। उनकी कानूनी पृष्ठभूमि भी साधारण रही है, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
धनखड़ का आचरण लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है, क्योंकि इससे न्यायपालिका पर जनता का विश्वास कमजोर हो सकता है। यदि राज्यपाल आरएन रवि को हटाने की मांग सही है, तो धनखड़ को भी उसी कसौटी पर हटाया जाना चाहिए। स्वस्थ लोकतंत्र में ऐसे आचरण पर इस्तीफा नैतिक कदम होता, लेकिन जब अहंकार हो तो हटाने की प्रक्रिया ही एकमात्र विकल्प रहती है। धनखड़ ने पहले ही अपने पद की गरिमा और भारतीय लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया है। संविधान को ऐसे लोगों की महत्वाकांक्षा का बंधक नहीं बनाया जा सकता, जो इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। इतिहास देख रहा है और वह उन लोगों के प्रति दयालु नहीं होगा, जो संवैधानिक विश्वासघात कर राजनीतिक लाभ के लिए काम करते हैं….
…. जाहिर है लेख में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की कार्यप्रणाली को लेकर लेख में कई तल्ख बातें लिखी गई हैं। उपराष्ट्रपति की विचारधारा, बयान और राजनीतिक फैसलों पर सीधे तौर पर सवाल उठाए गए हैं।
मूल लेख आप इस Link पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं: द वायर
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चलिए अब जानते हैं मीडिया हाउस द वायर के बारे में…
The Wire (thewire.in) एक प्रमुख भारतीय डिजिटल मीडिया हाउस है, जिसे 2015 में स्थापित किया गया था। यह वेबसाइट न्यूज़, विश्लेषण, और सोशल, राजनीतिक मुद्दों पर लेख प्रकाशित करने के लिए जानी जाती है। The Wire का दावा है कि वह निष्पक्ष, स्वतंत्र, और तथ्य आधारित पत्रकारिता को बढ़ावा देती है, लेकिन इस पर वामपंथी विचारधारा से प्रेरित होकर काम करने के आरोप अक्सर ही लगते रहते हैं।
कौन हैं इस संस्थान के कर्ता-धर्ता
द वायर के संपादक और संचालकगणों में सबसे बड़ा नाम सिद्दार्थ वरदराजन का आता है, जो इसके फाउंडिंग एडिटर भी हैं। इसके अलावा दो अन्य पत्रकार सिद्धार्थ भाटिया और एमके वेणु भी द वायर के फाउंडर मेंबर हैं। इसके अलावा सीमा चिश्ती इसकी एडिटर हैं।
विवादों से है पुराना नाता
The Wire, अपने दृष्टिकोण के कारण कई बार विवादों में घिरा है। यह अक्सर केंद्र सरकार, आरएसएस और हिंदू राइट विंग के खिलाफ आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करता है। जिससे अक्सर इसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। कई बार The Wire के पत्रकारों पर मानहानि और झूठी रिपोर्टिंग के आरोप भी लगाए गए हैं। हालांकि वेबसाइट ने हमेशा अपनी रिपोर्टिंग को तथ्यों पर आधारित होने का दावा किया है।
1. मेटा (Meta) और टूल्स रिपोटर्स लीक विवाद (2022)
क्या था मामला?
अक्टूबर 2022 में The Wire ने एक रिपोर्ट पब्लिश की जिसमें दावा किया गया कि इंस्टाग्राम और फेसबुक (Meta) एक BJP से जुड़े IT सेल को "XCheck" जैसी खास सुविधा देता है, जिसके जरिए वह किसी भी पोस्ट को बिना रिपोर्ट के हटवा सकता है।
क्या हुआ विवाद?
- Meta (फेसबुक की पैरेंट कंपनी) ने द वायर की रिपोर्ट को फर्जी और गढ़ा हुआ बताया।
- द वायर ने जो दस्तावेज और स्क्रीनशॉट रिपोर्ट में पेश किए, उन्हें बाद में फर्जी (fabricated) माना गया।
- IT एक्सपर्ट्स ने भी द वायर की तकनीकी रिपोर्टिंग को संदेहास्पद बताया।
- अंततः The Wire ने अपनी रिपोर्ट हटा ली और माफी मांगी।
2. अमित शाह के बेटे जय शाह पर रिपोर्ट (2017)
क्या था मामला?
The Wire ने 2017 में एक स्टोरी प्रकाशित की थी: "The Golden Touch of Jay Amit Shah", जिसमें दावा किया गया कि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी और गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी का टर्नओवर 2014 के बाद असामान्य रूप से बढ़ा।
क्या हुआ विवाद?
- जय शाह ने द वायर के खिलाफ 100 करोड़ रुपए की मानहानि का मुकदमा दायर किया।
- द वायर ने अपने स्टैंड को बरकरार रखा और कोर्ट में केस लड़ा।
- यह मामला न्यायपालिका, मीडिया की स्वतंत्रता और सत्ता की जवाबदेही को लेकर बड़ा प्रतीक बन गया।
3. इंडिया फाउंडेशन और विदेश नीति संबंधी रिपोर्ट (2018)
क्या था मामला?
The Wire ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि इंडिया फाउंडेशन (एक थिंक टैंक) में विदेश मंत्रालय के उच्च पदों पर बैठे लोगों की संलिप्तता से हितों का टकराव (Conflict of Interest) हो सकता है।
विवाद क्यों हुआ?
- रिपोर्ट में विदेश मंत्रालय और भाजपा नेताओं के संबंधों पर गंभीर सवाल उठाए गए।
- इसे लेकर भी राजनीतिक हलकों में काफी बहस छिड़ी।
- इंडिया फाउंडेशन और उससे जुड़े लोग द वायर पर पक्षपाती रिपोर्टिंग का आरोप लगाने लगे।
4. भगवान राम के अस्तित्व से जुड़ा लेख (2017)
क्या था मामला?
The Wire ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें भगवान राम के ऐतिहासिक अस्तित्व पर सवाल उठाया गया था।
क्या हुआ विवाद?
- इसे लेकर हिंदू संगठनों और दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों ने विरोध जताया।
- आरोप लगा कि द वायर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है और एक विशेष विचारधारा के खिलाफ काम करता है।
5. कश्मीर पर रिपोर्टिंग और आर्मी आलोचना
क्या था मामला?
The Wire ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना की कार्रवाइयों पर कई बार सवाल उठाए हैं। जैसे: मानवाधिकार उल्लंघन, AFSPA कानून की आलोचना
विवाद क्यों हुआ?
- सेना समर्थकों और राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों ने The Wire को देश विरोधी रिपोर्टिंग का आरोप दिया।
- द वायर ने हमेशा अपने स्टैंड का बचाव किया और कहा कि वह लोकतांत्रिक जांच और पारदर्शिता के अधिकार की बात करता है।
6. सरकार और पीएम मोदी की आलोचना
The Wire लगातार प्रधानमंत्री मोदी, बीजेपी सरकार, RSS की नीतियों और कार्यप्रणाली की तीखी आलोचना करता रहा है। इसके कारण The Wire को "वामपंथी" (Left leaning) या "Anti-Modi" कहा जाता है। यह आलोचना मुख्यतः दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों से आती है।
चलिए अब उस Partisan Attack Dog का अर्थ और संदर्भ समझें, जो विवाद की वजह बना
द सूत्र की डेटा माइनिंग टीम ने अंग्रेजी की कई डिक्शनरी खंगाली और AI से पूछा तो पता चला कि "Partisan Attack Dog" एक नकारात्मक और कठोर आलोचनात्मक शब्द है।
Partisan: का मतलब है, किसी एक पार्टी या विचारधारा का कट्टर समर्थक, जो निष्पक्ष नहीं होता।
Attack Dog: यह एक रूपक है, जिसका मतलब है किसी व्यक्ति का आक्रामक रूप से हमला करना, जैसे एक प्रशिक्षित कुत्ता हमला करता है।
दोनों को मिलाकर मतलब है- वह व्यक्ति या संस्थान जो केवल अपनी पार्टी या विचारधारा के पक्ष में आक्रामक रूप से काम करता है और विपक्षियों पर हमला करता है। यह व्यक्ति एक "राजनीतिक कुत्ता" बन जाता है, जिसका काम सिर्फ अपनी पार्टी का समर्थन करना और विरोधियों को नष्ट करना होता है।
किस संदर्भ में उपयोग होता है- पक्षपाती हमलावर कुत्ता
राजनीतिक आलोचना: जब किसी राजनीतिक व्यक्ति या सरकारी अधिकारी का आचरण बेहद पक्षपाती और आक्रामक हो।
मीडिया और पत्रकारिता: जब मीडिया पंडित या पत्रकार एक पक्ष का खुलकर समर्थन करते हुए, विरोधियों पर लगातार हमले करते हैं।
सामाजिक और लोकतांत्रिक संदर्भ: जब कोई नेता केवल एक पार्टी का पक्ष लेता है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है, तो इसे "Partisan Attack Dog" यानी पक्षपाती हमलावर कुत्ता कहा जाता है।
उपराष्ट्रपति को लेकर द वायर में प्रकाशित लेख भी इसी भावना के साथ लिखा गया है। हालांकि इस मुहावरे का उपयोग सिर्फ हैडिंग में ही हुआ है। अब एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के बारे में इसके उपयोग को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
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