प्रेस की स्वतंत्रता पर संकट : धार्मिक और विरोध-प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग करने पर सबसे ज्यादा हमले

भारत में पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामलों का सबसे बड़ा कारण सार्वजनिक अधिकारियों, धार्मिक मुद्दों और विरोध-प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग करना है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 से 2022 के बीच 427 पत्रकारों के खिलाफ 423 मामले दर्ज किए गए। 

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Jitendra Shrivastava
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Photograph: (The Sootr)

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भारत में पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामलों की संख्या बढ़ रही है। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के अध्ययन के अनुसार, पत्रकारों के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले सार्वजनिक अधिकारियों, धार्मिक मुद्दों और विरोध-प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग करने के कारण दर्ज हुए।

2012 से 2022 तक 427 पत्रकारों के खिलाफ 423 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें 624 बार "क्रिमिनलाइजेशन ऑफ जर्नलिज्म" की कार्रवाई की गई।

इस रिपोर्ट से यह सामने आता है कि पत्रकारों को रिपोर्टिंग करते समय गंभीर खतरे का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वह संवेदनशील मुद्दों पर काम करते हैं। इस बढ़ते संकट से न केवल पत्रकारों की सुरक्षा खतरे में है, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of the Press) भी दांव पर लगी है।

धार्मिक मुद्दों और विरोध-प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग का खतरा

पत्रकारों पर मामले में रिपोर्ट में यह बताया गया है कि सार्वजनिक अधिकारियों पर रिपोर्टिंग करना पत्रकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना है। इस दौरान 147 मामले दर्ज किए गए।

इसके अलावा, धार्मिक मुद्दों (Religious Issues) पर रिपोर्टिंग करने को लेकर 99 घटनाएं सामने आईं, जबकि विरोध-प्रदर्शनों (Protests) की कवरेज करने पर 79 मामलों में पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई हुई। 

यह आंकड़े इस बात को साबित करते हैं कि पत्रकारों को खासतौर पर उन मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते समय निशाना बनाया जाता है जो समाज के संवेदनशील पहलुओं से जुड़े होते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि धार्मिक और राजनीतिक विवादों पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अक्सर निशाना बनाया जाता है, जिससे स्वतंत्र पत्रकारिता (Independent Journalism) को दबाने की कोशिश की जा रही है।

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छोटे शहरों और कस्बों में पत्रकारों की बढ़ती मुश्किलें

रिपोर्ट में एक और दिलचस्प तथ्य सामने आया है कि छोटे शहरों और कस्बों में काम करने वाले पत्रकार अधिक प्रभावित हुए हैं। जहां महानगरों में केवल 24 प्रतिशत घटनाओं में पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया, वहीं छोटे शहरों में यह आंकड़ा 58 प्रतिशत तक पहुंच गया। यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि छोटे शहरों और कस्बों में पत्रकारों को अधिक खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

बड़े शहरों में जहां 65 प्रतिशत मामलों में पत्रकारों को गिरफ्तारी से संरक्षण मिला, वहीं छोटे शहरों में यह संख्या केवल 3 प्रतिशत रही। यह दर्शाता है कि छोटे शहरों में पत्रकारिता का माहौल अधिक चुनौतीपूर्ण है और पत्रकारों के अधिकारों का उल्लंघन ज्यादा हो रहा है।

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भारत में पत्रकारों पर दबाव: प्रमुख मामलों का विश्लेषण

भारत में पत्रकारों पर आपराधिक आरोपों की संख्या बढ़ रही है। कई पत्रकारों को एफआईआर, गिरफ्तारी, और राजद्रोह जैसे आरोपों का सामना पड़ा है।

इन आरोपों का कारण आमतौर पर सरकारी कार्यवाहियों, विरोध प्रदर्शनों, और संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करना रहा है। हम यहां पर कुछ प्रमुख मामलों का विश्लेषण करेंगे, जिनमें पत्रकारों को विभिन्न आरोपों का सामना पड़ा है।

प्रमुख पत्रकारों पर आरोप और कार्रवाई को टाइम लाइन से समझें...

👉 मनदीप पुनिया (हरियाणा)
स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से पुलिस ने 2021 में पुलिस के काम में बाधा डालने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया था।

👉 राजदीप सरदेसाई (इंडिया टुडे)
किसान आंदोलन के दौरान राजदीप सरदेसाई के खिलाफ भी राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया। यह घटना 26 जनवरी 2021 के किसान आंदोलन से संबंधित है।

👉 मृणाल पांडे (नेशनल हेराल्ड)
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे पर भी 2021 में किसान आंदोलन के दौरान देशद्रोह के तहत केस दर्ज किया गया था।

👉 पंकज जायसवाल (उत्तर प्रदेश, मिर्जापुर)
पंकज जायसवाल ने सरकारी स्कूलों में अनियमितताओं पर रिपोर्टिंग की थी। इसके बाद 2019 में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई।

👉 रवींद्र सक्सेना (सीतापुर, यूपी)
रवींद्र सक्सेना ने क्वारंटीन सेंटर पर बदइंतज़ामी की रिपोर्टिंग की थी। इसके कारण आपदा प्रबंधक अधिनियम और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ।

👉 संतोष जायसवाल (उत्तर प्रदेश, आजमगढ़)
संतोष जायसवाल पर सरकारी काम में बाधा डालने और रंगदारी मांगने का आरोप था, जिसके बाद एफआईआर दर्ज हुई।

👉 प्रदीपिका सारस्वत (गाजीपुर, यूपी)
प्रदीपिका सारस्वत को पदयात्रा के दौरान गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने माहौल खराब होने की आशंका जताई थी और मजिस्ट्रेट ने 2.5 लाख के बॉन्ड का प्रावधान किया।

👉 सुप्रिया शर्मा (वाराणसी)
सुप्रिया शर्मा पर एससी-एसटी एक्ट में एफआईआर दर्ज हुई, क्योंकि उनकी रिपोर्टिंग से प्रशासन नाराज था।

👉 सिद्धार्थ वरदराजन (अयोध्या, यूपी)
सिद्धार्थ वरदराजन पर लॉकडाउन के दौरान मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की रिपोर्टिंग पर अफवाह फैलाने के आरोप लगे थे।

👉 एम. रमेश चंद्र (मणिपुर)
एम. रमेश चंद्र को 1 अगस्त 2024 को एक रैली की रिपोर्टिंग के दौरान पुलिस ने हमला किया था।

👉 मुकेश चंद्राकर (छत्तीसगढ़)
2025 में मुकेश चंद्राकर को भ्रष्टाचार का खुलासा करने के बाद मारा गया। यह घटना पत्रकारों पर बढ़ते हमलों का हिस्सा है।

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पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता पर चिंता

इस रिपोर्ट को क्लूनी फाउंडेशन फॉर जस्टिस (Cluny Foundation for Justice) की पहल ट्रायलवॉच (Trialwatch) और कोलंबिया लॉ स्कूल के ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूट (Columbia Law School’s Human Rights Institute) के सहयोग से तैयार किया गया है।

एनएलयू दिल्ली के कुलपति जीएस बाजपेयी (GS Bajpai) ने कहा कि पत्रकारों पर आपराधिक मामलों का बढ़ता बोझ लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस का स्वतंत्र रहना लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है।

यह रिपोर्ट मीडिया की स्वतंत्रता (Freedom of Media) और जवाबदेही (Accountability) पर गंभीर सवाल खड़ा करती है। जब पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग करने के लिए दबाव का सामना करना पड़ता है, तो यह पत्रकारिता की स्वतंत्रता को बाधित करता है, जिससे लोकतंत्र की प्रक्रिया कमजोर होती है।

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सरकार से सुधार की आवश्यकता

विशेषज्ञों का मानना है कि इस रिपोर्ट के निष्कर्ष सरकार के लिए चेतावनी हैं। इन निष्कर्षों से यह साफ होता है कि भारत (India) में मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर जरूरी सुधार की आवश्यकता है। पत्रकारों को यदि स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार नहीं मिलेगा, तो यह लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक बड़ी रुकावट होगी।

संदर्भ:
 बीबीसी हिंदी, जनवरी 2021- दिल्ली-उत्तर प्रदेश पत्रकार मामलों के उदाहरण
 फेमिनिज़्म इन इंडिया, मई 2025- पत्रकारों पर हमले और हत्या की घटनाएं

FAQ

भारत में पत्रकारों के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं?
रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 2022 के बीच 427 पत्रकारों के खिलाफ 423 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें कुल 624 बार पत्रकारों पर "क्रिमिनलाइजेशन ऑफ जर्नलिज्म" की कार्रवाई की गई।
पत्रकारों के खिलाफ सबसे अधिक आपराधिक मामले क्यों दर्ज किए गए?
पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले सार्वजनिक अधिकारियों, धार्मिक मुद्दों और विरोध-प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग करने के कारण दर्ज किए गए हैं, जिनमें पत्रकारों को निशाना बनाया गया।

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