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Photograph: (THESOOTR)
World Tiger Day : हर साल 29 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे मनाया जाता है। यह दिन बाघों के संरक्षण के महत्व को उजागर करता है। 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में Tx2 लक्ष्य तय किया गया था। इस लक्ष्य के तहत 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का वादा किया गया था।
भारत ने यह लक्ष्य समय से पहले पूरा कर लिया। यह सफलता बाघों के संरक्षण के प्रति भारत की मजबूत नीतियों और समर्पण का प्रतीक है। 2022 में 3,682 से अब 2025 में 3,950 तक पहुंच गई है।
बाघों की संख्या में ऐतिहासिक बढ़ोतरी
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2025 तक बाघों की संख्या 3,950 तक पहुँच चुकी है। यह संख्या 2010 में 1,706 थी, यानी पिछले एक दशक में बाघों की संख्या में दो गुना वृद्धि हुई है। इससे साफ जाहिर होता है कि बाघों का संरक्षण अब एक सफलता की ओर बढ़ रहा है।
यह एक असाधारण उपलब्धि है क्योंकि यह दुनिया के कुल बाघों का लगभग 75% हिस्सा भारत में मौजूद है। हालांकि, कई अन्य देशों में बाघों की संख्या घटने की रिपोर्टें आई हैं, भारत ने लगातार अपने संरक्षण प्रयासों में सफलता हासिल की है।
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बाघ और जंगल: अटूट संबंध
बाघ केवल एक शिकार नहीं है, बल्कि यह जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बाघों की बढ़ती संख्या का मतलब है कि जंगलों की हालत में सुधार हो रहा है। बाघों के अस्तित्व से जंगलों में संतुलन बना रहता है, जो नदियों, बारिश, और जीवन के लिए जरूरी है।
बाघों की संख्या बढ़ने से यह साबित होता है कि बाघों के प्राकृतिक आवास का संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में सुधार हो रहा है। जब बाघ सुरक्षित रहते हैं, तो उनका पर्यावरण भी बेहतर रहता है।
प्रोजेक्ट टाइगर: भारत का सबसे बड़ा संरक्षण प्रयास
1973 में भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी, जब बाघों की संख्या घटकर 1,827 रह गई थी। बाघों की संख्या में गिरावट को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया था। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाघों के आवास की सुरक्षा, अवैध शिकार को रोकना, और लोगों में जागरूकता फैलाना था।
प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 9 टाइगर रिजर्व से हुई थी, जो आज बढ़कर 58 रिजर्व तक पहुंच चुके हैं। ये रिजर्व 75,000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं।
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भारत में बाघों की संख्या और उनके प्रमुख क्षेत्र
2025 तक, भारत में बाघों की संख्या 3,950 तक पहुंच चुकी है। इस आंकड़े के अनुसार, दुनिया के कुल बाघों का लगभग 75% हिस्सा भारत में है। इस पर गर्व जताते हुए पर्यावरण मंत्री ने कहा कि "Let the roars grow louder", यानी बाघों की दहाड़ को तेज होने दो।
भारत के प्रमुख बाघ क्षेत्रों में संख्या...
मध्य प्रदेश: 785 बाघ
कर्नाटका: 563 बाघ
उत्तराखंड: 560 बाघ
उत्तर प्रदेश: 222 बाघ
देशभर में 3,080 से अधिक बाघ कैमरा ट्रैप के माध्यम से रिकॉर्ड किए गए हैं।
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भारत के प्रमुख टाइगर रिजर्व
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett Tiger Reserve)
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व भारत का पहला टाइगर रिजर्व है, जो उत्तराखंड में स्थित है। यह रिजर्व 260 बाघों का घर है और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ बाघों के संरक्षण के लिए प्रमुख स्थान है। यह उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
बांदीपुर टाइगर रिजर्व (Bandipur Tiger Reserve)
बांदीपुर टाइगर रिजर्व कर्नाटका के मध्य भाग में स्थित है। यह रिजर्व 150 बाघों का आवास है और दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण बाघ रिजर्व में से एक है। यह क्षेत्र वन्यजीवों के संरक्षण के साथ-साथ पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
नागरहोल टाइगर रिजर्व (Nagarhole Tiger Reserve)
नागरहोल टाइगर रिजर्व कर्नाटका के कोडागु जिले में स्थित है। यह रिजर्व 141 बाघों का घर है और यह पश्चिमी घाट के घने जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। यह रिजर्व बाघों के अलावा अन्य वन्यजीवों के लिए भी महत्वपूर्ण है और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखता है।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (Bandhavgarh Tiger Reserve)
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। यह रिजर्व 135 बाघों के लिए प्रसिद्ध है और बाघों की उच्चतम घनत्व वाले क्षेत्रों में से एक है। यहां की घनी वनस्पति और विविध वन्यजीव इसे एक प्रमुख पर्यावरणीय स्थल बनाती है।
कान्हा टाइगर रिजर्व (Kanha Tiger Reserve)
कान्हा टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में स्थित है। यह रिजर्व 105 बाघों का घर है और भारतीय प्रजातियों के लिए एक आदर्श संरक्षित क्षेत्र है। यहां के जंगल और घास के मैदान बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिए उपयुक्त आवास प्रदान करते हैं।
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प्रमुख टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या...
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व: 260 बाघ
बांदीपुर टाइगर रिजर्व: 150 बाघ
नागरहोल टाइगर रिजर्व: 141 बाघ
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व: 135 बाघ
कान्हा टाइगर रिजर्व: 105 बाघ
उत्तर प्रदेश में भी बाघों की संख्या बढ़ रही है। 2018 में यहां 173 बाघ थे, जो अब बढ़कर 222 हो गए हैं। यह वृद्धि बाघ मित्र जैसे समुदाय आधारित कार्यक्रमों के कारण संभव हुई है।
बाघों की गिनती: अब ज्यादा सटीक और पारदर्शी
भारत में बाघों की गिनती पहले पैरों के निशान या अनुमान पर आधारित होती थी, लेकिन अब यह कैमरा ट्रैप, GPS, और M-Stripes ऐप जैसी तकनीकों से की जाती है। इस प्रक्रिया से आंकड़े न केवल सटीक होते हैं, बल्कि पारदर्शिता भी बढ़ी है।
सरकार ने देश को 5 बायोजियोग्राफिक लैंडस्केप (Biogeographic Landscapes) में बांटकर कोर और बफर जोन की नीति अपनाई है, जिससे वन्यजीवों और इंसानों के बीच संतुलन बनाया जा सके।
बाघों के संरक्षण में दो महत्वपूर्ण चेहरे
कैलाश संखला, जिन्हें 'टाइगर मैन ऑफ इंडिया' के नाम से जाना जाता है, बाघों के संरक्षण के सबसे बड़े चेहरों में से एक थे। 1956 में बाघों के लिए आवाज उठाने वाले कैलाश संखला ने 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के पहले निदेशक के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने सरिस्का, रणथंभौर, और भरतपुर जैसे प्रमुख बाघ रिजर्वों का प्रबंधन किया और दिल्ली चिड़ियाघर को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर स्थापित किया। उनके योगदान के कारण ही बाघों का संरक्षण संभव हो पाया।
भविष्य की चुनौतियां और समाधान
भारत ने बाघों के संरक्षण में सफलता हासिल की है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। 35% टाइगर रिजर्व में सुधार की आवश्यकता है, जैसे हैबिटैट पुनर्स्थापना, घास वाले जानवरों की संख्या बढ़ाना, और बाघों की आबादी को और बढ़ाना।
संरक्षण (Conservation) के लिए खनन, निर्माण, और मानव हस्तक्षेप को नियंत्रित करना जरूरी है। वन विभाग को सामुदायिक सहभागिता, तकनीकी मदद और सख्त कानूनों की आवश्यकता है ताकि बाघों का संरक्षण जारी रह सके।
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