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Photograph: (the sootr)
सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी 9 जून को रिटायर होने वाली थी, लेकिन उन्होंने इससे पहले ही 16 मई को रिटायरमेंट ले ली। बेला त्रिवेदी परिवार के एक शादी समारोह में शामिल होने के कारण अमेरिका जा रही हैं, इसलिए उन्होंने समय से पहले सेवानिवृत्ति लेने का निर्णय लिया है। उनका अंतिम कार्य दिवस 16 मई था।
परंपरा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से रिटायर हो रहे जज के सम्मान में विदाई समारोह आयोजित किया जाता है, परंतु इस बार यह आयोजन नहीं हुआ। इससे जुड़ी खामोशी ने पूरे न्यायिक समुदाय (judicial community) में असहजता और विवाद दोनों को जन्म दे दिया। यहां तक कि इस मामले में खुद चीफ जस्टिस को बीच में आकर काउंसिल की आलोचना करनी पड़ गई।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की फेयरवेल आयोजित करने से इनकार कर दिया, जिसकी आलोचना स्वयं मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने की।
सीजेआई ने क्या कहा
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस जस्टिस बीआर गवई ने इस पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि किसी भी जज को फेयरवेल न देना न्यायिक गरिमा के खिलाफ है। उन्होने कहा कि फैसलों से असहमति हो सकती है, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर सम्मान से इनकार नहीं होना चाहिए। उन्होंने SCBA अध्यक्ष कपिल सिब्बल और वाइस प्रेसिडेंट रचना श्रीवास्तव को धन्यवाद दिया कि वे व्यक्तिगत मतभेद के बावजूद समारोह में उपस्थित हुए।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया भी नाराज
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने फेयरवेल के बहिष्कार को न्यायिक परंपराओं के विरुद्ध बताया। उन्होंने इसे वकीलों के नैतिक मूल्यों और न्यायालयों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम बताया है।
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कपिल सिब्बल ने क्या कहा
वरिष्ठ वकील, राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने जस्टिस त्रिवेदी को स्टार्स के समूह का हिस्सा बताते हुए उनकी उपलब्धियों की सराहना की और कहा कि हर सात साल में एक महिला जज सुप्रीम कोर्ट में आती है, जो अपने आप में चिंतन का विषय है।
क्यों बनीं जस्टिस त्रिवेदी विवाद की केंद्र
अपने करियर के दौरान जस्टिस त्रिवेदी ने कई कड़े फैसले लिए। उन्होंने कोर्ट में अनुशासन बनाए रखने के लिए कई वकीलों के खिलाफ कार्रवाई की, जिनमें एक वकील को रजिस्टर से एक माह के लिए हटाने का आदेश भी शामिल था। इसके अलावा उमर खालिद और सत्येंद्र जैन की बेल पिटिशनें उनकी कोर्ट में लंबित रहीं, जिस पर काफी विवाद हुआ। इस वजह से भी बार एसोसिएशन में उनके खिलाफ नाराजगी देखी गई।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के कुछ सदस्यों ने इस विवाद को लॉजिस्टिकल समस्याओं और समय प्रबंधन की गलतफहमी बताया। कहा गया कि जस्टिस त्रिवेदी के रिटायरमेंट के समय वे विदेश यात्रा पर थीं, जिससे फेयरवेल आयोजन में बाधा आई।
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बेला एम. त्रिवेदी के कुछ प्रमुख फैसले
1.ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सही ठहराना
केस: जनहित अभियान बनाम भारत संघ
सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को शिक्षा और नौकरी में 10% आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन को सही ठहराया। यह कहा गया कि यह आरक्षण सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए तय 50% सीमा से अलग है।
2. 'स्किन से स्किन टच' वाली शर्त को खारिज करना
केस: अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि POCSO एक्ट में अपराध तभी माना जाएगा जब स्किन से स्किन टच हुई हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को गलत बताया और कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए यह कानून बना है, न कि तकनीकी बातें देखने के लिए।
3. वकील उपभोक्ता कानून के तहत उत्तरदायी नहीं
केस: बार ऑफ इंडियन लॉयर्स बनाम डीके गांधी
कोर्ट ने कहा कि वकीलों की सेवा को उपभोक्ता सेवा नहीं माना जा सकता। इसलिए अगर कोई वकील अपनी सेवा में कमी करे, तो उसे उपभोक्ता कानून के तहत नहीं घसीटा जा सकता।
4. वकीलों की उपस्थिति सही तरीके से दर्ज हो
केस: भगवान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ वही वकील उपस्थित दिखाए जाएं जो उस दिन केस में वास्तव में बहस करने आए हों। गलत जानकारी देना अदालत से धोखाधड़ी है।
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5. भूषण पावर की बिक्री रद्द
केस: कल्याणी ट्रांसको बनाम भूषण पावर
जेएसडब्ल्यू स्टील की 19,700 करोड़ की योजना को खारिज कर दिया गया और कहा गया कि यह धोखा और बेईमानी थी। कंपनी की परिसंपत्तियों की नीलामी के आदेश दिए गए।
6. बुजुर्ग दंपति को तलाक देने से इनकार
केस: डॉ. निर्मल सिंह बनाम परमजीत कौर
89 और 82 साल के पति-पत्नी को तलाक नहीं दिया गया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी पति की देखभाल करना चाहती है और समाज में तलाकशुदा महिला कहलाना नहीं चाहती, इसलिए तलाक का कोई ठोस आधार नहीं है।
7. वधावन भाइयों की जमानत रद्द
केस: सीबीआई बनाम कपिल वधावन
DHFL घोटाले में कोर्ट ने कहा कि जांच लंबित होने का मतलब यह नहीं कि आरोपी को स्वतः जमानत मिल जाए। इसलिए जमानत रद्द की गई।
8. पीएफआई सदस्यों की जमानत रद्द
केस: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम बरकतुल्लाह
UAPA कानून के तहत आरोपी 8 लोगों को दी गई जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। कहा गया कि ये देश की सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मामला है।
9. सत्येंद्र जैन को जमानत नहीं
केस: सत्येंद्र जैन बनाम ईडी
AAP नेता को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जमानत देने से मना कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि उन्होंने फर्जी कंपनियों के जरिए करोड़ों रुपये इधर-उधर किए।
10. SC वर्ग में उप-वर्गीकरण मान्य
केस: पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियों के अंदर सबसे कमजोर वर्गों को प्राथमिकता देने के लिए उप-वर्गीकरण (Sub-categorization) किया जा सकता है। यह फैसला 6:1 से हुआ, लेकिन न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने इससे असहमति जताई।
कौन हैं जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी भारत की शीर्ष अदालत से सेवानिवृत्त होने वाली दसवीं महिला जज हैं। उनका न्यायिक सफर तीन दशक से भी अधिक लंबा रहा है। उन्होंने 1995 में गुजरात के अहमदाबाद में सिटी सिविल जज के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद 2011 में उन्हें गुजरात हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया। लंबी न्यायिक सेवा के बाद 31 अगस्त 2021 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जस्टिस त्रिवेदी का जन्म 10 जून 1960 को उत्तर गुजरात के पाटन ज़िले में हुआ था। उनके पिता भी एक न्यायिक अधिकारी थे, जिनका लगातार स्थानांतरण होता रहता था। इस कारण से जस्टिस त्रिवेदी की स्कूली पढ़ाई देश के विभिन्न स्थानों पर हुई। उन्होंने बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई एम.एस. यूनिवर्सिटी, वडोदरा से पूरी की।
करियर की शुरुआत और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां
10 जुलाई 1995 को बेला त्रिवेदी को सीधे अहमदाबाद की सिटी सिविल और सेशन कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त किया गया। दिलचस्प बात यह रही कि उसी समय उनके पिता भी उसी कोर्ट में जज थे।
उन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया...
- गुजरात हाईकोर्ट में विजिलेंस शाखा की रजिस्ट्रार
- गुजरात सरकार में विधि सचिव
- सीबीआई कोर्ट की जज
- अहमदाबाद बम ब्लास्ट मामले में विशेष जज
- इन सभी भूमिकाओं में उन्होंने ईमानदारी और न्यायप्रियता के साथ काम किया।
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Supreme Court judge | justice | Judge