भारत के न्यायपालिका में एक अहम नाम, जस्टिस बीआर गवई ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया। आगामी 2 दिन में भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस बीआर गवई ने स्पष्ट किया कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है और वह सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी प्रकार का कार्यभार नहीं लेंगे। यह बयान उन अफवाहों के बीच आया है जो अक्सर न्यायधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद उनके राजनीतिक करियर को लेकर चलती रहती हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं करेंगे स्वीकार
जस्टिस गवई का यह बयान बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के उनके संकल्प को दर्शाता है। पीटीआई के अनुसार पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में जस्टिस गवई ने यह बात कही कि वह सेवानिवृत्त होने के बाद किसी भी पद को स्वीकार नहीं करेंगे, चाहे वह राजनीतिक हो या प्रशासनिक। उन्होंने कहा कि यह निर्णय उनके निजी विचारों और न्यायपालिका के प्रति उनके कर्तव्यबोध से प्रेरित है।
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पूर्व सीजेआई के राज्यपाल बनने पर गवई ने कहा-
जस्टिस गवई से जब यह सवाल पूछा गया कि क्या पूर्व मुख्य न्यायधीशों को राज्यपाल जैसे पद स्वीकार करने चाहिए, तो उन्होंने इसका साफ तौर पर जवाब दिया। उनका कहना था कि "पूर्व सीजेआई के लिए राज्यपाल का पद संविधान और प्रोटोकॉल में सीजेआई के पद से नीचे आता है।" हालांकि, गवई ने यह भी कहा कि वह दूसरों की ओर से बोलने का कोई अधिकार नहीं रखते। यह बयान पूर्व सीजेआई जस्टिस पी. सदाशिवम और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के संदर्भ में था।
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मणिपुर यात्रा पर बोले- जस्टिस गवई
जस्टिस गवई ने अपनी हालिया यात्रा के बारे में भी चर्चा की, जिसमें उन्होंने मणिपुर का दौरा किया था। मणिपुर में चल रहे संघर्ष को लेकर उनकी राय थी कि यह राज्य बेहद कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है और वहां की समस्याओं को समझने के लिए स्थानीय लोगों से मिलना जरूरी था। इसके अलावा, जब उनसे पूछा गया कि क्या एक न्यायाधीश को राजनेताओं से मुलाकात करनी चाहिए, तो गवई ने कहा कि "एक न्यायाधीश किसी अलग दुनिया में नहीं रहता है। जब तक वह विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से नहीं मिलता, तब तक वह उन मुद्दों को ठीक से नहीं समझ सकता जो समाज को प्रभावित कर रहे हैं।"
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संसद की सर्वोच्चता पर जस्टिस गवई का बयान
भारत में संसद और न्यायपालिका के बीच चल रहे टकराव के सवाल पर जस्टिस गवई ने कहा कि "संविधान सर्वोच्च है।" उन्होंने केशवानंद भारती मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान की सर्वोच्चता को 13 न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया है। यह बयान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा संसद की सर्वोच्चता के बारे में दिए गए दावे के संदर्भ में था। गवई का कहना था कि न्यायपालिका और संसद दोनों को संविधान द्वारा निर्धारित दायरे में काम करना चाहिए।
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