BHOPAL. 351 साल बाद महाकुंभ (Mahakumbh) में देश के सामने हिंदू आचार संहिता (hindu code of conduct) होगी। काशी विद्वत परिषद ने इसे तैयार किया है। कर्म और कर्तव्य प्रधान संहिता के लिए स्मृतियों को आधार बनाया गया है। हिंदू समाज जातीय भेदभाव, कुरीतियों को खत्म करने, मंदिरों में दलितों को भी पूजा-पाठ करने का अधिकार देने सहित कई कदम उठाने जा रहे है। श्राद् काम में होने वाले खर्चों को भी खत्म किया जाएगा। महिलाओं को अशौचावस्था को छोड़कर वेद अध्ययन और यज्ञ करने की अनुमति होगीइ। उत्तर-दक्षिण के अंतर के अंतर को खत्म किया जाएगा (religious code of conduct)।
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सभी हिंदुओं के लिए समान धार्मिक आचार सहिंता लागू करने की तैयारी
बता दें, 351 सालों के बाद हिंदू आचार संहिता बनकर तैयार है। चार साल के अध्ययन, मंथन के बाद इसे काशी विद्वत परिषद और देशभर के विद्वानों की टीम ने बनाया है। वहीं प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ में शंकराचार्य और महामंडलेश्वर अंतिम मुहर लगाएंगे, फिर धर्माचार्य नई हिंदू आचार संहिता को स्वीकार करने का आग्रह देश की जनता से करेंगे।
नई आचार संहिता की जिम्मेदारी काशी विद्वत परिषद को सौंपी
नई आचार संहिता पर 70 विद्वानों की 11 टीम और तीन उप टीम बनाई गई थी। हर टीम में उत्तर और दक्षिण के विद्वानों को रखा गया है। टीम ने 40 बार से अधिक बैठक की है। मनु स्मृति, पराशर स्मृति और देवल स्मृति को भी आधार बनाया गया है।
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इसमें महिलाओं को मिली ये परमिशन
हिंदू आचार संहिता में हिंदुओं को मंदिरों में बैठने, पूजन-अर्चना के लिए समान नियम बनाए गए हैं। महिलाओं को अशौचावस्था को छोड़कर वेद अध्ययन और यज्ञ करने की अनुमति दी गई है। प्री-वेडिंग जैसी कुरीतियों को हटाने के साथ ही रात की शादियों को खत्म करके दिन की शादी को बढ़ावा दिया जाएगा। जन्मदिन मनाने पर जोर दिया गया है। घर वापसी की प्रकिया को आसान किया गया है। विधवा विवाह की व्यवस्था को भी इसमें शामिल किया गया है।
अब जानिए धार्मिक आचार सहिंता क्या है ?
धार्मिक आचार सहिंता, जिसे "धर्मशास्त्र" भी कहा जाता है, विभिन्न धर्मों में व्यवहार, नैतिकता और अनुष्ठानों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों का एक समूह है। यह धार्मिक विश्वासों और मूल्यों को दर्शाता है और अनुयायियों को जीवन जीने का एक ढांचा प्रदान करता है।
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धार्मिक आचार सहिंता के कुछ प्रमुख पहलू:
- व्यक्तिगत नैतिकता: इसमें ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, दया, अहिंसा, क्षमा और दान जैसे गुणों का पालन शामिल है।
सामाजिक नैतिकता: इसमें परिवार, समुदाय और समाज के प्रति कर्तव्यों का पालन शामिल है।
धार्मिक अनुष्ठान: इसमें प्रार्थना, उपवास, तीर्थ यात्रा और धार्मिक उत्सवों में भागीदारी जैसे कर्मों का पालन शामिल है।
आहार: कुछ धर्मों में, खाद्य पदार्थों और खाने-पीने की आदतों पर प्रतिबंध होता है।
वेशभूषा: कुछ धर्मों में, वेशभूषा और आभूषणों पर प्रतिबंध होता है।
विवाह और परिवार: कुछ धर्मों में, विवाह, तलाक और परिवार के ढांचे पर नियम होते हैं।
धार्मिक आचार सहिंता का महत्व:
- नैतिकता और मूल्यों को बढ़ावा देना: धार्मिक आचार सहिंता अनुयायियों को नैतिक जीवन जीने और अच्छे मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
व्यक्तिगत और सामाजिक सद्भाव: धार्मिक आचार सहिंता व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सद्भाव और शांति बनाए रखने में मदद करता है।
धार्मिक पहचान: धार्मिक आचार सहिंता अनुयायियों को अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखने और अपनी परंपराओं को जीवित रखने में मदद करता है।
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धार्मिक आचार सहिंता में बदलाव:
समय के साथ, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव के साथ धार्मिक आचार सहिंता में भी बदलाव होता रहा है। कुछ धर्मों में, आधुनिक मूल्यों और विचारों को शामिल करने के लिए धार्मिक आचार सहिंता में सुधार किए गए हैं।
धार्मिक आचार सहिंता का पालन:
धार्मिक आचार सहिंता का पालन व्यक्तिगत विश्वास और समर्पण पर निर्भर करता है। कुछ लोग धार्मिक आचार सहिंता का कड़ाई से पालन करते हैं, जबकि अन्य इसे अधिक लचीले ढंग से अपनाते हैं।
धार्मिक आचार सहिंता के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- धार्मिक आचार सहिंता सभी धर्मों में समान नहीं है।
धार्मिक आचार सहिंता समय के साथ बदलता रहता है।
धार्मिक आचार सहिंता का पालन व्यक्तिगत विश्वास और समर्पण पर निर्भर करता है।