34 सालों से महाराष्ट्र में किसी भी दल को अपने दम पर नहीं मिला बहुमत

आखिरी बार 1990 में कांग्रेस ने महाराष्ट्र में अपने दम पर सरकार बनाई थी। इसके बाद 1995 से अब तक 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में कोई भी पार्टी अकेले बहुमत हासिल नहीं कर पाई है।

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Sourabh Bhatnagar
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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे किस ओर जाएंगे, इसे लेकर चर्चाएं तेज हैं। महायुति (भाजपा-शिवसेना) और महा विकास अघाड़ी (MVA) के बीच नजदीकी मुकाबले की संभावना जताई जा रही है। कुछ एग्जिट पोल महायुति को स्पष्ट बहुमत देते हैं, जबकि अन्य पोल कड़े मुकाबले की ओर इशारा कर रहे हैं।

34 सालों से गठबंधन का दबदबा

महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले 34 वर्षों से किसी भी दल को अकेले बहुमत नहीं मिला है। 288 सीटों वाली विधानसभा में 145 सीटों का जादुई आंकड़ा पाने के लिए हमेशा गठबंधन की जरूरत पड़ी है। इससे राज्य में राजनीतिक अस्थिरता भी देखने को मिली है। आखिरी बार 1990 में कांग्रेस ने महाराष्ट्र में अपने दम पर सरकार बनाई थी। इसके बाद 1995 से अब तक 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में कोई भी पार्टी अकेले बहुमत हासिल नहीं कर पाई है।

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गठबंधन की राजनीति का इतिहास

महाराष्ट्र में गठबंधन राजनीति की शुरुआत 1995 में हुई, जब भाजपा-शिवसेना ने मिलकर पहली बार सरकार बनाई। तब शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उपमुख्यमंत्री। इसके बाद कांग्रेस-एनसीपी और भाजपा-शिवसेना के गठबंधन बारी-बारी से सत्ता में आते रहे।

MVA और महायुति की रणनीतियां

महायुति और MVA ने चुनाव नतीजों के बाद संभावित समीकरणों के लिए निर्दलीय और छोटी पार्टियों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। भाजपा ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना और उपमुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी के बिना सरकार बनाना मुश्किल होगा। वहीं, कांग्रेस ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा है, लेकिन उसे भी शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) पर निर्भर रहना होगा।

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वीबीए की भूमिका अहम

वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) ने इस चुनाव में किसी भी गठबंधन के साथ तालमेल नहीं किया और अकेले चुनाव लड़ा। पार्टी प्रमुख प्रकाश आंबेडकर ने संकेत दिए हैं कि वह सरकार बनाने वाले गठबंधन का समर्थन कर सकते हैं।

2019 से 2023 तक की राजनीतिक उठापटक

2019 में शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर MVA सरकार बनाई। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने। 2022 में शिवसेना में बगावत हुई, जिससे एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2023 में अजित पवार ने भी एनसीपी में बगावत कर महायुति में शामिल हो गए।

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बहुमत के बाद सीएम कौन?

राजनीतिक अस्थिरता के बीच सवाल है कि यदि किसी गठबंधन को बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री कौन होगा? महायुति और MVA दोनों ने मतदान के बढ़े प्रतिशत (66.05%) को अपने पक्ष में मानते हुए जीत के दावे किए हैं। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने इसे ‘प्रो-इनकंबेंसी फैक्टर’ का नतीजा बताया, जबकि कांग्रेस नेता नाना पटोले ने MVA की जीत का विश्वास जताया है।  

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