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Photograph: (the sootr)
Pune.पुणे के एक सरकारी आदिवासी छात्रावास में पढ़ाई करने वाली छात्राओं ने हॉस्टल प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। छात्राओं का कहना है कि छुट्टियों से वापस आते ही उन्हें प्रेगनेंसी टेस्ट कराना पड़ता है। अगर वे इस टेस्ट को नहीं करातीं, तो उन्हें हॉस्टल में एंट्री तक नहीं दी जाती है। यह मामला धीरे-धीरे चर्चा में आ गया है और छात्राएं इसे अपमानजनक और असंवेदनशील मान रही हैं।
प्रेगनेंसी टेस्ट का दर्दनाक अनुभव
छात्राओं का कहना है कि जब वे छुट्टियों से वापस आती हैं, तो उन्हें एक प्रेगनेंसी टेस्ट किट दी जाती है। इस किट के साथ उन्हें सरकारी अस्पताल जाकर प्रेगनेंसी टेस्ट कराना होता है। टेस्ट के बाद नेगेटिव रिपोर्ट लेकर ही वे हॉस्टल में रह सकती हैं। यह प्रोसेस हर बार दोहराई जाती है,इससे कई छात्राएं मानसिक रूप से परेशान हो जाती हैं।
एक छात्रा ने बताया, "हमारे लिए यह बहुत शर्मनाक है। शादीशुदा नहीं होने के बावजूद हम पर शक की निगाह डाली जाती है।"
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पुणे के आदिवासी हाॅस्टल में प्रेगनेंसी टेस्ट के मामले को ऐसे समझें
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गरीब परिवारों पर भारी खर्च
पुणे के आदिवासी क्षेत्र में आदिवासी विकास विभाग द्वारा चलाए जाने वाले आश्रम स्कूलों और हॉस्टलों में भी यही शिकायतें सामने आई हैं। यहां छात्राओं को प्रेगनेंसी टेस्ट कराना मजबूरी बना दिया गया है। कई अभिभावकों ने बताया कि टेस्ट किट का खर्च खुद उन्हें उठाना पड़ता है। यह किट 150 से 200 रुपए तक की होती है, जो गरीब परिवारों के लिए बड़ा बोझ बन जाती है।
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विभाग का बयान और पहले का मामला
महाराष्ट्र आदिवासी विकास विभाग ने इस मामले पर प्रतिक्रिया दी है। विभाग ने साफ कहा है कि ऐसा कोई नियम नहीं है और न ही इस तरह की प्रथा को मंजूरी दी गई है। विभाग ने कहा कि हॉस्टलों में ऐसी कोई जांच नहीं होनी चाहिए। हालांकि, सितंबर 2025 में भी इसी तरह का मामला सामने आया था, जिसके बाद राज्य महिला आयोग ने हस्तक्षेप किया था। आयोग ने ऐसी प्रथा पर रोक लगाने के आदेश दिए थे।
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