संपत्ति के लिए मुस्लिम महिला का इस्लाम से तौबा ! SC पहुंचकर बोली- मुझे भी मिले संपत्ति का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है, जिसमें कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं आना चाहता तो क्या उसे देश के धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत रखा जा सकता है...

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Sandeep Kumar
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NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने सोमवार को इस्लाम न मानने वाली मुस्लिम महिला की उस याचिका पर केंद्र और केरल सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें उसने अपने पैतृक संपत्ति अधिकार के मामले में शरीयत के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून को लागू करने का अनुरोध किया है। कोर्ट ने कहा, हम पर्सनल लॉ (  Personal Law ) पर पक्षकारों के लिए इस तरह की घोषणा नहीं कर सकते। आप शरिया कानून के प्रावधान को चुनौती दे सकते हैं और हम तब इससे निपटेंगे। हम कैसे ये निर्देश दे सकते हैं कि एक नास्तिक व्यक्ति भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होगा? ऐसा नहीं किया जा सकता।

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SC का केंद्र और केरल सरकार को नोटिस

पीठ ने दलीलें सुनने के बाद याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी करने का फैसला किया और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को सुनवाई में पीठ की सहायता के लिए एक कानून अधिकारी नियुक्त करने का भी निर्देश दिया।

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धर्म छोड़ा तो पिता की संपत्ति से बेदखल कर दी जाऊंगी-महिला 

महिला ने कोर्ट से पूछा है कि शरिया कानून के तहत अगर कोई शख्स मुस्लिम धर्म पर यकीन करना छोड़ देता है, तो उसे समाज से बाहर कर दिया जाता है? ऐसे में अगर उसने ऐसा किया तो उसका अपने पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा ? याचिका में कहा गया है कि शरिया के मुताबिक, कोई मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति में से एक-तिहाई से ज्यादा हिस्सा वसीयत में नहीं दे सकता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके पिता उसे एक तिहाई से ज्यादा संपत्ति नहीं दे सकते हैं। बाकी दो तिहाई संपत्ति उसके भाई को मिलेगी, जिसे डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी है। महिला ने ये भी कहा कि उसकी एक बेटी है और महिला की मौत के बाद सारी संपत्ति उसकी बेटी को नहीं मिलेगी, क्योंकि उसके पिता के भाई यानी महिला के चाचा भी इस संपत्ति में अपना हक मांगेंगे।

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क्या है मुस्लिम महिला की मांग ?

सफिया ने वकील प्रशांत पद्मनाभन के माध्यम से दायर अपनी जनहित याचिका में कहा कि शरीयत कानूनों के तहत मुस्लिम महिलाएं संपत्ति में एक तिहाई हिस्सेदारी की हकदार हैं। शरीयत अधिनियम के एक प्रावधान का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि वसीयत उत्तराधिकार का मुद्दा इसके तहत नियंत्रित होगा। वकील ने कहा कि यह घोषणा अदालत को करनी होगी कि याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं है, अन्यथा उसके पिता उसे संपत्ति का एक तिहाई से अधिक नहीं दे पाएंगे। वकील ने कहा, ‘मेरा (याचिकाकर्ता) भाई  डाउन सिंड्रोम ( एक आनुवंशिक विकार जो मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का कारण बन सकता है ) से पीड़ित है और उसे संपत्ति का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा। 

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केरल की महिला की याचिका

ये याचिका केरल की रहने वाली सफिया पीएम ने दाखिल की है। उसका कहना है कि वह अपने धर्म में यकीन नहीं करती है और इसलिए वह उत्तराधिकार के मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ ( शरिया लॉ ) की बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 को मानना चाहती है। महिला ने कहा कि उसके पिता भी मुस्लिम धर्म को नहीं मानते हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर मुस्लिम धर्म से अलग नहीं हुए हैं।

 

 

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