NEW DELHI. देश में अलग -अलग क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वाले व्यक्ति को एक पहचान के तौर पर जाना जाता है। लेकिन सरकार में अधिकारी अपनी कलम और अधिकारों की ताकत से भी जाना जाता है। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी रॉबिन हिबू ने अरुणाचल प्रदेश से डीजीपी बनकर इतिहास रचा है। 'सुपर कॉप' रॉबिन हिबू को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद पर पदोन्नत किया गया है। वह वर्तमान में दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त के रूप में कार्यरत हैं। हिबू अरुणाचल प्रदेश से पहले ऐसे आईपीएस हैं, जो डीजीपी बने हैं। वह अपने पूरे कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन के मुख्य सुरक्षा अधिकारी सहित विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं।
संघर्ष से मिली सफलता
1993 एजीएमयूटी कैडर के अधिकारी, वह वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) के पद पर हैं, वह
और दिल्ली में तैनात हैं। भर्ती अध्यक्ष होने के अलावा, वह दिल्ली पुलिस के परिवहन सुरक्षा प्रभाग के सतर्कता प्रमुख हैं। अब उन्होंने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। वह पदोन्नत होकर अरुणाचल प्रदेश से डीजीपी बने हैं। अरुणाचल प्रदेश के निचले सुबनसिरी जिले के होंग गांव के रहने वाले हिबू की डीजीपी रैंक पर पदोन्नत होने की उपलब्धि एक अविश्वसनीय कहानी है।
आईपीएस हिबू का जन्म 1 जुलाई, 1968 को अरुणाचल प्रदेश और चीन बॉर्डर से लगे छोटे से गांव होंग में किसान परिवार में हुआ था। आदिवासी समाज से आने वाले हिदू के पिता एक मामूली किसान थे। उनके पास इतनी जमीन भी नहीं हुआ करती थी कि परिवार का पेट ठीक से भर सके। खेती के साथ आय के लिए वह लकड़ी काटकर बाजार में बेचा करते थे।
रोज 10 किमी चलकर जाते थे स्कूल
रॉबिन हिबू ने बेहद परेशानी के बीच शिक्षा हासिल की। पढ़ाई के लिए वे रोज 10 किमी चलकर स्कूल जाते थे। गांव में कोई स्कूल नहीं था लेकिन उनकी पढ़ने की सनक ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। हिबू बताते हैं कि वह बचपन में घर से करीब 10 किलोमीटर दूर स्कूल पैदल चल कर जाया करते थे। स्कूलिंग के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए। रॉबिन हिबू ने जेएनयू से पढ़ाई की।
जरूरतमंदों के लिए हेल्पिंग हैंड्स संस्था
'सुपर कॉप' हिबू पुलिस अधिकारी के साथ साथ समाजसेवक भी हैं। वह जरूरतमंदों के लिए संस्था चलाते हैं।
रॉबिन हिबू गैर-लाभकारी संगठन हेल्पिंग हैंड्स के संस्थापक भी हैं, यह संगठन संकट में पूर्वोत्तर के नागरिकों को सहायता प्रदान करता है। बच्चों की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद से लेकर मार्गदर्शन तक देते हैं। रॉबिन हिबू की पदोन्नति उनके समर्पण, कड़ी मेहनत और सार्वजनिक सेवा में उत्कृष्ट योगदान का प्रमाण है।
बायोग्राफी में बताई अपने संघर्षों की कहानी
हिबू ने अपनी लिखी बायोग्रफी में उनके संघर्षों के दिनों बयां किया हैं। रॉबिन हिबू इसमें बताते हैं कि जब वह अरुणाचल प्रदेश से दिल्ली आए तो उनके पास इतने रुपए भी नहीं थे कि वह रिजर्वेशन करा सकें। वह ट्रेन में टॉइलट के सामने फर्श पर बैठकर दिल्ली पहुंचे थे। दिल्ली में आने का बाद कोई ठिकाना नहीं मिला इसके बाद उन्हे परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने जेएनयू के पास सब्जी की गोदाम के बाहर कई रातें बिताईं। कुछ दिनों बाद जेएनयू के नर्मदा हॉस्टल में उन्हें कमरा मिला तब जाकर वह वहां रहने गए।
पहली बार में ही क्रैक किया यूपीएससी
जीवन में संघर्ष के बीच रॉबिन ने जेएनयू से पढ़ाई की फिर सिविल सर्विस की तैयारी में लग गए। 1993 में पहली बार में ही उन्होंने यूपीएससी क्रैक कर लिया और उन्हें आईपीएस कैडर मिला। का एग्जाम दिया। पहले ही अटेम्प्ट में उन्होंने सिविल सर्विस का एग्जाम क्रैक कर लिया। उन्हें आईपीएस कैडर दिया गया।
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