पॉक्सो में पेनिट्रेशन बलात्कार: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- नाबालिग की सहमति का कोई मतलब नहीं

POCSO में पेनिट्रेशन बलात्कार माना जाएगा, चाहे सहमति हो या नहीं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- नाबालिग के मामले में थोड़ी भी यौन हरकत बलात्कार है।

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Manish Kumar
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Photograph: (The Sootr)

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MUMBAI. बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में आज कानून बेहद सख्त है। पहले इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था शायद कभी लागू नहीं थी। पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences) बच्चों की गरिमा और मानसिक सुरक्षा को प्राथमिकता देता। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पॉक्सो में पेनिट्रेशन बलात्कार माना जाएगा। यह नियम आंशिक या क्षणिक पेनिट्रेशन पर भी लागू होता। अगर नाबालिग डर से सहमति दे तब भी अपराध माना जाता। कोर्ट ने आरोपी की सजा को पूरी तरह बरकरार रखा। ऐसे मामलों में नाबालिग की कथित सहमति अमान्य होती है। कानून बच्चों को विशेष रूप से संरक्षित वर्ग के रूप में स्वीकार करता।

पॉक्सो में पेनिट्रेशन बलात्कार: अदालत ने क्या कहा?

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने यह ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि नाबालिग के साथ यौन अपराध में थोड़ा सा भी पेनिट्रेशन पूर्ण बलात्कार माना जाएगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि पॉक्सो कानून का उद्देश्य केवल शारीरिक सुरक्षा नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा की रक्षा करना भी है।
हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चा अपनी उम्र, भय, या भोलेपन के कारण सहमति जैसा आभास दे सकता है, लेकिन कानून कहता है कि नाबालिग सहमति दे ही नहीं सकता।

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मेडिकल सबूत बनाम मनोवैज्ञानिक साक्ष्य

इस फैसले में अदालत ने एक और महत्वपूर्ण बात कही। कोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों में हमेशा शारीरिक घाव नहीं होते, कई बार पीड़ा मन में बैठती है। इसीलिए पॉक्सो एक्ट बच्चों की रक्षा को प्राथमिकता देता है, न कि केवल तकनीकी मेडिकल सबूतों को।

आरोपी ने कहा था- दुश्मनी में झूठा केस

आरोपी ने कहा कि उसके खिलाफ पारिवारिक दुश्मनी के चलते झूठा केस बनाया गया है। लेकिन, अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि बच्चियों के बयान सुसंगत थे। मां के बयान से घटना की पुष्टि हुई है। मेडिकल रिपोर्ट में भले चोट न हो, लेकिन पॉक्सो एक्ट में पेनिट्रेशन प्रमाण है, क्षति नहीं। यानी मेडिकल चोट का अभाव आरोपी को राहत नहीं दिला सकता।

POCSO एक्ट में सजा और धाराएं

धाराअपराधन्यूनतम सजा
धारा 4यौन उत्पीड़न7 साल से उम्रकैद
धारा 6गंभीर यौन अपराध / पेनिट्रेशन10 साल से उम्रकैद
धारा 14पोर्नोग्राफी शामिल5 साल
धारा 21छुपाने/रिपोर्ट न करने पर सजा6 महीने

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NCRB रिपोर्ट: देश में स्थिति कितनी गंभीर?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2023 डेटा में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। 2022 में POCSOधारा 4 और 6 के तहत 38,444 पीड़ित दर्ज हैं। इनमें से 38,030 लड़कियां और 414 लड़के शामिल हैं। अक्टूबर 2023 तक सिर्फ कर्नाटक में 3000+ केस रजिस्टर्ड हैं। दिल्ली में जनवरी–दिसंबर 2023 तक 9,108 केस पेंडिंग हैं। न्यायिक प्रणाली की धीमी प्रक्रिया के कारण इन केस को निपटाने में 27 साल लग सकते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि यह केवल कानूनी मुद्दा नहीं बल्कि बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा राष्ट्रीय संकट है।

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निष्कर्ष

बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि बच्चे कानून में संरक्षित वर्ग हैं। किसी भी तरह का यौन पेनिट्रेशन चाहे आंशिक हो, बिना चोट के हो या सहमति जैसा दिखे, सीधा बलात्कार माना जाएगा। यह केवल सजा देने वाला फैसला नहीं, बल्कि समाज को यह चेतावनी भी है कि बच्चों की मर्यादा, सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ से कोई समझौता नहीं हो सकता।

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