स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने राहुल गांधी को किया हिंदू धर्म से बहिष्कृत, मंदिरों में प्रवेश भी वर्जित

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राहुल गांधी पर सनातन धर्म के अपमान का आरोप लगाते हुए उन्हें हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की घोषणा की है। साथ ही तीर्थों में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक की मांग की है।

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Jitendra Shrivastava
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rahul-gandhi-expelled-hindu-dharma Photograph: (thesootr)

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बद्रीनाथ धाम में चारधाम यात्रा के दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Swami Avimukteshwaranand Saraswati) ने एक बड़ा बयान देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने संसद में मनुस्मृति पर झूठे और अपमानजनक आरोप लगाए हैं, जिससे सनातन धर्म को मानने वाले आहत हुए हैं।

संसद में दिए बयान पर मांगा था जवाब

स्वामी जी ने बताया कि प्रयागराज के महाकुंभ में धर्म संसद के दौरान यह निर्णय लिया गया था कि अगर कोई व्यक्ति धर्मशास्त्रों के खिलाफ झूठे आरोप लगाएगा, तो उससे जवाब मांगा जाएगा। राहुल गांधी को बाकायदा पत्र भेजकर पूछा गया था कि उन्होंने जो कहा, वह मनुस्मृति में कहां लिखा है? लेकिन तीन महीने में कोई जवाब नहीं आया।
राहुल गांधी ने मनुस्मृति को ‘तुम्हारी किताब’ कहा, इससे साफ है कि वे इसे अपना धर्मशास्त्र नहीं मानते– स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

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कोई भी पुजारी राहुल गांधी से पूजा न कराए

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने स्पष्ट कहा कि अब राहुल गांधी को हिंदू नहीं माना जाए। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के घर में कोई भी हिंदू पुजारी पूजा न कराए। मंदिरों में उनका प्रवेश वर्जित किया जाए। यह धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक है।

तीर्थों पर विधर्मियों के प्रवेश पर सवाल

स्वामीजी ने चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थ स्थलों की मर्यादा बनाए रखने की भी बात की। उन्होंने कहा कि चारधाम जैसे पवित्र स्थानों में गैर-हिंदुओं का प्रवेश प्रतिबंधित किया जाए।
उन्होंने उत्तराखंड सरकार से अपील की कि तीर्थस्थलों को पवित्र बनाए रखने के लिए विशेष नियम लागू किए जाएं और रोजगार या व्यापार के नाम पर जो लोग वहां आते हैं, उनकी पहचान सुनिश्चित की जाए।

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सनातन धर्म के सम्मान की बात

स्वामी जी ने कहा कि भारत की आत्मा सनातन संस्कृति में है और इसके शास्त्रों को बदनाम करना केवल राजनीतिक फायदे के लिए करना उचित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मनुस्मृति कोई कानूनी ग्रंथ नहीं बल्कि एक सामाजिक और नैतिक संहिता है, जिसे गलत तरीके से प्रस्तुत करना निंदनीय है।

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