डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बार-बार पैरोल पर रिहा किए जाने के खिलाफ एसजीपीसी द्वारा दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति विशेष को निशाना बनाकर जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकती। इस फैसले से राम रहीम के समर्थकों और विरोधियों दोनों में प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है। जानिए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना था और कैसे यह मामला विवादों में फंसा।
राम रहीम को हत्या-रेप जैसे अपराधों में मिली थी सजा
गुरमीत राम रहीम को हत्या और रेप जैसे गंभीर अपराधों के लिए सजा मिल चुकी है। 2017 में, उसे दो महिला शिष्यों से रेप के मामले में 20 साल की सजा दी गई थी। इसके अलावा, 2002 में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में भी 2019 में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। लेकिन, इसके बावजूद हरियाणा सरकार ने राम रहीम को पैरोल और फर्लो पर बार-बार रिहा किया है, जिससे विवाद बढ़ा है।
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एसजीपीसी ने दायर की याचिका
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राम रहीम को बार-बार पैरोल दिए जाने का विरोध किया था। याचिका में कहा गया था कि हरियाणा सरकार नियमों का उल्लंघन कर रही है और राम रहीम को राजनीतिक लाभ के लिए जेल से बाहर रखा जा रहा है।
एसजीपीसी ने यह भी दावा किया था कि राम रहीम के अनुयायी ज्यादा हैं, और सरकार उसे बार-बार पैरोल देकर उन्हें खुश करने की कोशिश कर रही है। एसजीपीसी के वकील ने आरोप लगाया कि यदि यह कोई आम कैदी होता, तो उसे इतनी बार पैरोल नहीं मिलती।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी नियम का उल्लंघन हुआ है तो उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। अगर राज्य सरकार ने कोई आदेश का पालन नहीं किया, तो उस पर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एसजीपीसी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह जनहित याचिका के रूप में नहीं ली जा सकती।
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राम रहीम पर लगे गंभीर आरोप
राम रहीम के खिलाफ हत्या और रेप के गंभीर आरोप हैं। इसके बावजूद, हरियाणा सरकार उसे बार-बार पैरोल पर रिहा कर रही है, जिससे यह मामला विवादों में घिर गया है। 2022, 2023 और 2024 में भी उसे पैरोल दी गई थी।
हरियाणा सरकार का कहना है कि सभी कैदियों को कानून के तहत समान अधिकार मिलते हैं, और जो भी पैरोल दी जाती है, वह जेल नियमों के अनुसार होती है।