चित्तौड़गढ़ के 88 वर्षीय व्यापारी उद्धवदास रोगानी ने 14 साल की मेहनत से ऐसा अद्भुत कार्य किया है, जो प्रेरणादायक है। उन्होंने श्रीरामचरित मानस को राम नाम (Ram Naam) के अक्षरों से सजाकर एक नई ऊंचाई दी।
रामचरित मानस लिखने की प्रेरणा
उद्धवदास का जीवन 1975 में तब बदला, जब उनकी मुलाकात गुरु रामदास (Guru Ramdas) से हुई। संत के प्रवचनों और उनके दिए गए रामचरित मानस (Ramcharitmanas) के अध्ययन से उन्होंने अपनी आस्था को एक नई दिशा दी।
उन्होंने पहले सुंदरकांड (Sunderkand) की चौपाइयों को राम नाम से लिखना शुरू किया, जिसे पूरा करने में 13 साल लगे। 2003 में उन्होंने पूरी रामचरित मानस लिखने का संकल्प लिया। बालकांड से उत्तरकांड तक हर चौपाई राम नाम से उकेरी।
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ऐसी रही उनकी साधना-
- 14 साल की साधना: रोजाना 6 घंटे एकांत में बैठकर लेखन।
- 18 किलोग्राम वजनी ग्रंथ: रामचरित मानस का कुल वजन 18 किलो।
- लिम्का बुक में रिकॉर्ड: यह उपलब्धि लिम्का बुक में दर्ज हुई।
- गिनीज बुक से दूरी: उन्होंने 6,000 रुपए की रजिस्ट्रेशन फीस को अनुचित मानते हुए गिनीज बुक में पंजीकरण नहीं कराया।
पारिवारिक पृष्ठभूमि और प्रेरणा
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पाकिस्तान में जन्म
उद्धवदास का जन्म पाकिस्तान में हुआ। 11 वर्ष की उम्र में विभाजन के बाद वे भीलवाड़ा आ गए। व्यवसाय में सफलता के बाद भी उनके मन में राम नाम के प्रति गहरी आस्था बनी रही।
युवा पीढ़ी के लिए संदेश
उद्धवदास का मानना है कि आध्यात्मिकता के जरिए जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि रामचरित मानस (Ramcharitmanas) की पूजा-अर्चना नियमित होनी चाहिए और युवा पीढ़ी को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
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