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जयपुर में हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक प्रभावशाली भाषण दिया। उन्होंने कहा कि जब तक आपके पास शक्ति (Power) नहीं होगी, तब तक दुनिया आपकी बातों को, खासकर प्रेम और सौहार्द की भाषा को नहीं समझेगी। मोहन भागवत ने अपने भाषण में भारत की प्राचीन संस्कृति, त्याग की परंपरा और विश्व कल्याण के लिए शक्ति की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया।
भागवत ने भारतीय इतिहास के महान व्यक्तित्वों का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान श्री राम से लेकर राजस्थान के भामाशाह तक सभी ने सेवा और त्याग की अद्भुत मिसालें पेश की हैं। ये उदाहरण आज भी भारत की संस्कृति की जड़ें मजबूत करते हैं।
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मोहन भागवत ने कहा कि भारत का कर्तव्य है कि वह विश्व को धर्म और नैतिकता की शिक्षा दे। उन्होंने हिंदू धर्म (Hinduism) को इस संदर्भ में विशेष महत्व दिया और बताया कि विश्व कल्याण ही हमारा प्रमुख धर्म होना चाहिए।
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उन्होंने भारत को दुनिया का सबसे प्राचीन देश बताते हुए इसे ‘बड़े भाई’ की भूमिका में रखा, जो शांति और सौहार्द की मिसाल कायम करता है।
भागवत ने स्पष्ट किया कि भारत किसी के प्रति द्वेष नहीं रखता, लेकिन जब तक शक्ति नहीं होगी, तब तक प्रेम और शांति की भाषा विश्व नहीं समझेगा। उनकी मान्यता है कि शक्ति ही वह माध्यम है जिससे भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत और विश्व कल्याण के लिए प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
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उन्होंने संत समाज की भी सराहना की, जिन्होंने ऋषि परंपरा का निर्वहन करते हुए संस्कृति और धर्म की रक्षा की है। यह पहल भारत की ताकत और उसकी स्थिरता का आधार है।
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विश्व में प्रभाव स्थापित करने के लिए शक्ति जरूरी है। मोहन भागवत के अनुसार, शक्ति के बिना विश्व केवल आपकी बातों को नहीं सुनता और ना ही सम्मान देता है। भारत की भौतिक और सांस्कृतिक शक्ति दोनों को मजबूत करना आवश्यक है ताकि देश की आवाज़ विश्व स्तर पर प्रभावी हो।
RSS प्रमुख मोहन भागवत | भारतीय संस्कृति