आरएसएस ( RSS ) से संबंधित पत्रिका ऑर्गनाइजर के अंक में प्रकाशित हुआ है इसमें RSS नेता रतन शारदा के लिखे एक आर्टिकल में लोकसभा चुनाव परिणाम को अति आत्मविश्वासी बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को आईना दिखाने जैसा बताया गया है। इस आर्टिकल में यह भी लिखा गया है कि बीजेपी नेता अपनी दुनिया में खुश थे और जमीन से उठ रही आवाजें नहीं सुन रहे थे, नेता सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने में व्यस्त थे और जमीन पर नहीं उतरे।
''ओवरकॉन्फिडेंट BJP कार्यकर्ताओं के लिए रियलिटी चेक है ये चुनावी नतीजे'' : RSS #RSS #BJP #Politics #ElectionResults #News pic.twitter.com/TBvM0IIfZ0
— TheSootr (@TheSootr) June 11, 2024
संघ को लेकर बीजेपी के रवैये पर भी लिखा
आरएसएस नेता रतन शारदा ने लिखा है कि संगठन के प्रति बीजेपी के रवैये को लेकर संघ के भीतर खलबली साफ दिखाई दे रही है। शारदा ने लेख में कहा है, यह झूठा अहंकार कि केवल बीजेपी नेता ही वास्तविक राजनीति समझते हैं और आरएसएस वाले गांव के मूर्ख हैं, हास्यास्पद है। शारदा ने अपने आर्टिकल में कहा है कि आरएसएस बीजेपी की क्षेत्रीय ताकत नहीं है। दरअसल, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के पास अपने कार्यकर्ता हैं। मतदाताओं तक पहुंचना, पार्टी के एजेंडे को समझाना और वोटर कार्ड वितरित करना जैसे नियमित चुनावी काम इनकी जिम्मेदारी है।
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मोदीजी की चमक का आनंद ले रहे थे नेताः शारदा
लोकसभा चुनाव के नतीजों का दोष बीजेपी पर डालते हुए लिखा है कि 2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वास वाले बीजेपी कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक के रूप में आए हैं। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का 400+ का नारा बीजेपी के लिए एक लक्ष्य था और विपक्ष के लिए एक चुनौती। लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। चूंकि वे अपनी दुनिया में खुश थे, मोदीजी की आभा से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे, वे जमीन पर आवाजें नहीं सुन रहे थे।
भाजपा सांसद और मंत्री लोगों की पहुंच से बाहर
रतन शारदा ने बीजेपी सांसदों और मंत्रियों की पहुंच से बाहर हो जाने की भी आलोचना की है। शारदा ने कहा कि सालों से किसी भी बीजेपी या आरएसएस कार्यकर्ता और आम नागरिक की सबसे बड़ी शिकायत स्थानीय सांसद या विधायक से मिलने में कठिनाई या यहां तक कि असंभवता रही है, मंत्रियों को तो छोड़ ही दें। उनकी समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता एक और आयाम है। बीजेपी के चुने हुए सांसद और मंत्री हमेशा ‘व्यस्त’ क्यों रहते हैं? वे कभी अपने निर्वाचन क्षेत्रों में क्यों नहीं दिखते? संदेशों का जवाब देना इतना कठिन क्यों है?