महाराष्ट्र के अहिल्यानगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर के ट्रस्ट ने बड़ी कार्रवाई की है। श्री शनैश्चर देवस्थान ट्रस्ट ने 167 कर्मचारियों को अनुशासनात्मक कारणों से हटाया है। हटाए गए कर्मचारियों में 114 मुस्लिम हैं, जो कुल का 68% हैं। ट्रस्ट ने धार्मिक भेदभाव से इनकार किया है।
ट्रस्ट का कहना है कि यह कदम कर्मचारियों के खराब प्रदर्शन और अनुपस्थिति के कारण उठाया गया। 'सकल हिंदू समाज' संगठन ने गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाने की मांग की थी। संगठन ने विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी थी। पिछले महीने एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें गैर-हिंदू कर्मचारी मंदिर में पेंटिंग करता दिखा।
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ट्रस्ट ने क्या दी सफाई?
ट्रस्ट के बयान में कहा गया है कि हटाए गए कर्मचारियों में से अधिकांश कई महीनों से अनुपस्थित थे। उनके प्रदर्शन की समीक्षा के बाद ही यह निर्णय लिया गया। ट्रस्ट ने स्पष्ट किया कि यह छंटनी किसी धार्मिक आधार पर नहीं की गई। हालांकि 114 मुस्लिम कर्मचारी हटाए गए हैं, लेकिन ट्रस्ट का कहना है कि इसमें जाति या धर्म का कोई असर नहीं था।
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संगठन की चेतावनी
घटना से पहले 'सकल हिंदू समाज' नामक संगठन ने मंदिर प्रशासन को चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि गैर-हिंदू कर्मचारियों को नहीं हटाया गया, तो वे प्रदर्शन करेंगे। मामला तब और बढ़ गया जब मई में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक गैर-हिंदू कर्मचारी मंदिर में पेंटिंग का काम करता दिखा। इस वीडियो ने संगठन की मांग को बल दिया और दबाव बढ़ा दिया।
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छंटनी की प्रक्रिया
यह कार्रवाई दो चरणों में की गई। पहले चरण में 8 जून को कुछ कर्मचारियों को हटाया गया। बाकी की छंटनी 13 जून को पूरी हुई। हटाए गए कर्मचारी 2 से 10 वर्षों तक मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हुए थे। यह दर्शाता है कि छंटनी तात्कालिक गुस्से का परिणाम नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित योजना का हिस्सा थी।
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किन विभागों पर पड़ी सबसे ज़्यादा मार?
मंदिर प्रबंधन के अनुसार, अधिकांश हटाए गए कर्मचारी कृषि, कचरा प्रबंधन और शिक्षा विभाग से थे। कुछ कर्मचारियों की अनुपस्थिति 5 महीने से अधिक थी। ट्रस्ट ने दावा किया कि इन विभागों में कर्मचारियों की कार्य संस्कृति में गिरावट आ रही थी, जिससे मंदिर की व्यवस्थाओं पर असर पड़ रहा था।
धार्मिक सौहार्द बनाम प्रशासनिक व्यवस्था
इस मामले ने यह सवाल उठाया है कि धार्मिक स्थलों पर कर्मचारियों की धार्मिक पहचान कितनी महत्वपूर्ण होनी चाहिए। ट्रस्ट इसे प्रशासनिक निर्णय बताता है, लेकिन धार्मिक संगठनों के दबाव और वायरल वीडियो ने इसे संवेदनशील बना दिया है। अब यह सवाल है कि क्या यह निर्णय धार्मिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाएगा, या यह कार्यक्षमता सुधारने के लिए लिया गया कदम था।
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