कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अपने लेख में 1975 की इमरजेंसी को एक काले अध्याय के रूप में नहीं देखा। उन्होंने इससे महत्वपूर्ण सबक लेने की आवश्यकता पर जोर दिया। थरूर ने इमरजेंसी के दौरान लिए गए फैसलों को क्रूर बताया। विशेष रूप से संजय गांधी द्वारा चलाए गए नसबंदी अभियान की कड़ी आलोचना की। बताया जा रहा है कि थरूर ने मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में प्रकाशित आर्टिकल लिखा हैं, जिसमें उन्होंने ये कही है।
इमरजेंसी का काला अध्याय
1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल लागू किया। इस दौरान लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव पड़ा। कई कड़े फैसले लिए गए, जैसे प्रेस सेंसरशिप और राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी। नसबंदी अभियान भी इसी समय का हिस्सा था। थरूर का कहना है कि इन फैसलों से लाखों लोगों की आज़ादी छिन गई। लोकतंत्र की रक्षा के बजाय उसे नुकसान हुआ।
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नसबंदी अभियान: एक क्रूर फैसला
शशि थरूर ने संजय गांधी द्वारा शुरू किए गए नसबंदी अभियान की आलोचना की। उन्होंने इसे 'मनमाना और क्रूर फैसला' बताया। थरूर के अनुसार, गरीब और ग्रामीण इलाकों में इसे लागू करने के लिए हिंसा और दबाव का सहारा लिया गया। यह अभियान गलत था और इसके परिणामस्वरूप हजारों लोग बेघर हो गए। इन लोगों के लिए कोई सहायता नहीं दी गई।
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लोकतंत्र की अहमियत
थरूर ने अपने लेख में यह भी कहा कि लोकतंत्र को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह एक बहुमूल्य विरासत है, जिसे हर समय संरक्षित रखना जरूरी है। उन्होंने चेतावनी दी कि सत्ता को केंद्रीकरण करने, असहमति को दबाने और संविधान को दरकिनार करने की प्रवृत्तियां फिर से उभर सकती हैं, जो इमरजेंसी के दौरान दिखी थीं।
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मोदी सरकार पर थरूर की टिप्पणी
थरूर ने इमरजेंसी पर यह लेख लिखा। इस दौरान उन्होंने मोदी सरकार की भी प्रशंसा की। 23 जून को उन्होंने द हिंदू में एक लेख में प्रधानमंत्री मोदी की ऊर्जा और वैश्विक मंच पर उनके योगदान की सराहना की। यह उनकी व्यक्तिगत राय थी, जो कांग्रेस पार्टी की राय से मेल नहीं खाती।
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