शिमला समझौता (Shimla Agreement) 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित हुआ था। यह समझौता 1971 में हुए युद्ध के बाद शांति बहाली और दोनों देशों के रिश्तों को सुधारने के लिए था। इस समझौते ने कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय (Bilateral) संवाद तक सीमित किया और इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की पाकिस्तान की कोशिशों को नाकाम कर दिया। अब, 2025 में पाकिस्तान द्वारा इस समझौते को रद्द करने की धमकी दी गई है, जिसके बाद यह समझौता फिर से चर्चा में आ गया है।
1971 के युद्ध के बाद हुआ था शिमला समझौता
1971 का युद्ध (1971 War) भारतीय सेना की एक बड़ी जीत के रूप में समाप्त हुआ, जिसमें पाकिस्तान के लगभग 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इस युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ कड़ी शर्तें थोपने के बजाय शांति के रास्ते पर चलने का फैसला किया। इस प्रक्रिया में शिमला समझौता हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य युद्ध के बाद शांति बनाए रखना था।
ये खबरें भी पढ़ें...
पहलगाम हमला : सरकार ने मानी सुरक्षा चूक, सर्वदलीय बैठक में विपक्ष बोला- ध्वस्त करो आतंकी कैंप
बीजेपी विधायक प्रदीप पटेल समर्थकों संग पहुंचे थाने और कहा- कर लो मुझे गिरफ्तार
शिमला समझौता: प्रमुख नियम और शर्तें
1. द्विपक्षीयता का सिद्धांत (Bilateralism): भारत और पाकिस्तान ने स्वीकार किया कि दोनों अपने सभी विवादों को आपसी बातचीत के माध्यम से हल करेंगे और किसी तीसरे पक्ष (जैसे संयुक्त राष्ट्र) की मध्यस्थता को अस्वीकार करेंगे। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत थी, क्योंकि इससे पाकिस्तान को कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का मौका नहीं मिला।
2. बल प्रयोग पर प्रतिबंध (Prohibition of Use of Force): दोनों देशों ने वचन दिया कि वे एक-दूसरे के खिलाफ हिंसा या सैन्य बल का प्रयोग नहीं करेंगे और सभी मुद्दों को शांति से हल करेंगे।
3. नियंत्रण रेखा (Line of Control): शिमला समझौते के तहत, 1971 युद्ध के बाद नई नियंत्रण रेखा की स्थापना की गई, जिसे दोनों देशों ने मान्यता दी। यह रेखा आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा को परिभाषित करती है।
4. युद्धबंदियों और कब्जाई जमीन की वापसी (Return of Prisoners of War and Territory): भारत ने पाकिस्तान के युद्धबंदियों को बिना शर्त रिहा कर दिया और युद्ध के दौरान कब्जाई गई जमीन का अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान को लौटा दिया।
शिमला समझौता भारत की कूटनीतिक जीत
शिमला समझौते ने कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय मुद्दा बना दिया, जो अब तक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जा सकता था। इसके जरिए भारत ने दुनिया को यह संदेश दिया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसे संयुक्त राष्ट्र या अन्य देशों के हस्तक्षेप से हल नहीं किया जा सकता।
क्या पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द कर सकता है?
2025 में पहलगाम आतंकी हमले (Pahalgam Attack) के बाद पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की और शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी दी। हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द कर सकता है?
ये खबरें भी पढ़ें...
भोपाल में छात्राओं को प्रेमजाल में फंसाकर ब्लैकमेलिंग का खुलासा
इरफान खान का बड़ा फैसला: इस्लाम छोड़कर अपनाएंगे हिंदू धर्म, सरनेम होगा आर्य
तकनीकी दृष्टिकोण से
पाकिस्तान एक संधि से खुद को अलग कर सकता है, लेकिन इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर गंभीर असर पड़ेगा। यदि पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द करता है, तो इसका मतलब यह होगा कि वह कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय तरीके से हल करने की प्रक्रिया से बाहर निकल जाएगा।
भारत का रुख
यदि पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द करता है, तो भारत भी इसे नकार सकता है और यह दोनों देशों के रिश्तों को और खराब कर सकता है। इसके बाद, नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष और बढ़ सकता है और युद्धबंदियों के मामलों में भी भरोसा कम हो सकता है।
शिमला समझौते का रद्द होने पर असर...
यदि पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द करता है, तो इसका असर भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है-
- द्विपक्षीय वार्ता का रुकना (Suspension of Bilateral Talks): शिमला समझौता रद्द होने के बाद द्विपक्षीय वार्ताओं का रास्ता बंद हो सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है।
- कश्मीर पर विवाद (Dispute on Kashmir): कश्मीर मुद्दा फिर से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जा सकता है, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में और खटास आ सकती है।
- सीमा पर संघर्ष (Border Conflicts): नियंत्रण रेखा पर आक्रामकता बढ़ सकती है, और युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
द्विपक्षीय समझौता | देश दुनिया न्यूज