केरल की मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन ने हाल ही में एक फेसबुक पोस्ट के जरिए समाज में स्किन कलर (skin color) को लेकर फैली रूढ़ियों और भेदभाव करने वालों को करारा जवाब दिया है। उन्होंने बताया कि कैसे काले रंग की महिलाओं को लगातार पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है, चाहे वे किसी भी पद पर हों। उनके इस बयान ने समाज में गहरी बहस छेड़ दी है और इस मुद्दे को लेकर कई लोगों का समर्थन भी प्राप्त हुआ।
शारदा मुरलीधरन कौन हैं?
शारदा मुरलीधरन 1990 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी हैं। उन्होंने सितंबर 2024 में अपने पति डॉ. वी. वेणु की जगह केरल के मुख्य सचिव का पद संभाला था। उन्होंने कई सरकारी योजनाओं का नेतृत्व किया, जिनमें कुदुम्बश्री मिशन (Kudumbashree Mission) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihood Mission) शामिल हैं।
फेसबुक पोस्ट पर दिया करारा जवाब
फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब उन्होंने अपने पति वी. वेणु से मुख्य सचिव का पदभार ग्रहण किया, तो उनकी तुलना उनके पति से इस तरह की गई कि इसमें नस्लीय भावना झलक रही थी। किसी ने कहा यह उतनी ही काली हैं, जितना इनके पति गोरे थे।शुरू में इस बयान पर आई प्रतिक्रियाओं के बाद उन्होंने अपना पोस्ट हटा दिया, लेकिन बाद में उन्होंने इसे फिर से साझा करने का फैसला किया। उन्होंने लिखा कि काले रंग का लेबल लगाए जाने का यह मतलब नहीं कि यह शर्मनाक बात हो। काला रंग शक्ति और समावेशिता का प्रतीक है।
Heard an interesting comment yesterday on my stewardship as chief secretary – that it is as black as my husband’s was...
Posted by Sarada Muraleedharan on Tuesday, March 25, 2025
बचपन से ही रंगभेद झेला
शारदा मुरलीधरन ने अपने बचपन के अनुभव भी साझा किए। उन्होंने बताया कि चार साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां से पूछा था कि क्या वह गोरी त्वचा के साथ दोबारा जन्म ले सकती हैं। इससे जाहिर होता है कि समाज में स्किन कलर (skin color) को लेकर किस तरह की मानसिकता बनाई जाती है। उन्होंने बताया कि उनके अपने बच्चे, जिन्होंने अपने काले रंग को आत्मविश्वास के साथ अपनाया।
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भारत में रंगभेद, जातिभेद बुरी बीमारी
भारत में स्किन कलर (skin color) को लेकर लंबे समय से लोगों में पूर्वाग्रह देखे जाते हैं। इस देश के कथाकथित पढ़े लिखे लोग गोरे रंग को सुंदरता का पैमाना मानते हैं। जिससे काले रंग के लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह समस्या महिलाओं के लिए अधिक गंभीर है। ऐसे लोगों की सोच समाज में बुरी बीमारी की तरह है।
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