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Photograph: (the sootr)
NEW Delhi. दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने 16 दिसंबर 2025 को एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी (ED) द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट पर सुनवाई से इनकार कर दिया।
यह निर्णय कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए एक बड़ी राहत बनकर आया है। कोर्ट ने साफ कह दिया है कि ED चाहे तो मामले में अपनी जांच जारी रख सकती है। अभी चार्जशीट पर सुनवाई नहीं हो सकती है।
कोर्ट ने क्या कहा ED की चार्जशीट पर
कोर्ट ने अपनी सुनवाई में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की चार्जशीट को 'असंज्ञेय' (Not Maintainable) करार दिया है। न्यायाधीश ने बताया कि ED की जांच किसी FIR (First Information Report) पर आधारित नहीं है। यह जांच एक निजी शिकायत (Private Complaint) के आधार पर शुरू की गई थी, जो कानून के दायरे में सही नहीं है।
अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) इस मामले में पहले ही एक FIR दर्ज कर चुकी है। ऐसे में ED के आरोपों पर अभी फैसला सुनाना 'जल्दबाजी' होगी। इसलिए कोर्ट ने चार्जशीट पर संज्ञान लेने से मना कर दिया।
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ED का आरोप और कांग्रेस का विरोध
ED ने अपनी चार्जशीट में कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ-साथ सैम पित्रोदा, सुनील भंडारी और यंग इंडियन कंपनी को नामजद किया। ED का कहना था कि ये एक बड़ा आर्थिक अपराध है जिसमें फर्जीवाड़ा और मनी लॉन्ड्रिंग के सबूत मिले हैं। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि यह एक राजनीतिक बदले की कार्रवाई है।
दो हजार करोड़ की संपत्ति का 'कब्ज़ा'
ED का दावा है कि कांग्रेस के नेताओं ने मिलकर एक साजिश रची। इस साजिश के तहत एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की लगभग 2000 करोड़ की संपत्तियों पर कब्जा किया गया। इस अधिग्रहण के लिए निजी कंपनी 'यंग इंडियन' का इस्तेमाल किया गया।
यंग इंडियन कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों की 76% हिस्सेदारी है, यानी दोनों के पास कंपनी के अधिकांश शेयर हैं। ED ने इस मामले में अर्जित आय को करीब 988 करोड़ रुपए माना है। वहीं, इन सभी संपत्तियों का बाजार मूल्य लगभग 5000 करोड़ रुपए बताया जा रहा है।
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नेशनल हेराल्ड अखबार का इतिहास
नेशनल हेराल्ड अखबार की शुरुआत 1938 में पं.जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी। इसका प्रकाशन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) द्वारा किया जाता था। इस अखबार को भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जाता था। लेकिन 2008 में यह अखबार बंद हो गया था, और इसके बाद इसके अधिग्रहण पर विवाद उठने लगे थे।
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