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Photograph: (THESOOTR)
NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसे देखकर जज हैरान रह गए। इसके बाद जवाब दाखिल करने वाले अधिवक्ता ने अपनी गलती मानते हुए दस्तावेज वापस लेने की कोशिश की। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता को दो टूक जवाब देते हुए कहा कि इस गलती को हल्के में नहीं ले सकते।
यह मामला एक हाई-प्रोफाइल कारोबारी विवाद से जुड़ा है। इसमें वादी की ओर से अधिवक्ता ने जवाब दाखिल किया था, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से तैयार पाया गया। सुप्रीम कोर्ट के जवाब में वादी पक्ष की ओर से सैकड़ों फर्जी केसों का हवाला दिया गया था। इन केसों का न्यायिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं मिला।
अदालत ने कहा कि वह इस तरह की गलती को हल्के में नहीं ले सकता, क्योंकि अगर कोर्ट ऐसे दस्तावेजों पर भरोसा कर ले तो न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर असर हो सकता है।
न्यायिक रिकॉर्ड में नहीं मिले जवाब में दाखिल केस
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार यह मामला ओंकारा एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (Omkara Assets Reconstruction Pvt. Ltd.) बनाम गस्टाड होटल्स प्राइवेट लिमिटेड (Gstaad Hotels Pvt. Ltd.) से जुड़ा है, जो पहले NCLAT में सुना गया और अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच को बताया कि Gstaad Hotels की ओर से दाखिल प्रत्युत्तर (Rejoinder) में ऐसे केस दिखाए गए हैं जो न्यायिक रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं हैं। कई मामलों के नाम तो सही हैं, लेकिन उनमें लिखे गए ‘कानूनी निष्कर्ष’ पूरी तरह से मनगढ़ंत हैं।
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कानून बनाने की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट में जिस वकील द्वारा एआई की मदद से जवाब तैयार कर पेश किए गए। उन केसों का न्यायिक रिकार्ड सुप्रीम कोर्ट को नहीं मिला। ऐसे वकील पर कोर्ट को आवश्यक कार्यवाही करना चाहिए। एआई से लेकर गलत जानकारी पेश करने पर कानून बन जाये तो भविष्य में कोई भी वकील बिना न्यायिक साक्ष्य के ऐसे जवाब नहीं दे सकेंगे।
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क्या AI की जानकारी को कोर्ट सही मानेगा
यह भी एक सवाल खड़ा होता है कि क्या एआई से ली गई जानकारी को कोर्ट सही मानेगा। यदि सही मानेगा तो कई बार एआई द्वारा दी गई जानकारी में गलत जानकारी भी सामने आ सकती है। जिसको सिद्ध करना मुश्किल होगा। जो इस मामले में किया गया है। जब न्यायिक सत्यापन नहीं होगा तो कोर्ट और वकील में अक्सर अविश्वास पैदा होगा। जिससे न्यायिक प्रक्रिया पर असर पड़ेगा।
यदि वकील बिना साक्ष्य के एआई से जवाब लेकर कोर्ट में पेश करेंगे तो पक्षकारों के खतरे बढ़ जाएंगे। वहीं दूसरी ओर कोर्ट भी भ्रमित हो सकता है और उसका समय भी खराब होगा। क्योंकि एआई कई बार ऐसी जानकारी पेश कर सकता है जिसमें भौतिक सत्यापन न हो।
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