सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के रिकमेंडेशन लेटर से अनुभव सहित अन्य जानकारियां गायब, CJAR ने की पारदर्शिता की मांग

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विपुल पंचोली की नियुक्ति की सिफारिश को लेकर विवाद गहराया है। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने उनकी पदोन्नति पर आपत्ति जताई, जबकि केंद्र सरकार ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। CJAR ने पारदर्शिता के लिए सिफारिश नोट सार्वजनिक करने की मांग की है।

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Neel Tiwari
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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विपुल पंचोली की नियुक्ति की सिफारिश को लेकर देश की न्यायपालिका में बहस तेज हो गई है। एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना ने उनकी पदोन्नति पर गंभीर आपत्ति जताई है, वहीं केंद्र सरकार इस विरोध को नज़रअंदाज़ करते हुए प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ा रही है। 

इसी बीच, Campaign for Judicial Accountability and Reforms (CJAR) ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह पूरी सिफारिश और जस्टिस नागरत्ना का असहमति नोट सार्वजनिक करे, ताकि लोगों के सामने पारदर्शिता बनी रहे।

सिफारिश लेटर से जरूरी जानकारियां है गायब

CJAR का कहना है कि कॉलेजियम की हालिया सिफारिश पहले से चली आ रही परंपरा से पीछे हटने जैसी है। इसके पहले जब 11 जुलाई 2024 को जस्टिस एंड कोटेश्वर और जस्टिस आर महादेवन के नाम की अनुशंसा की गई थी और 19 जनवरी 2024 को जब जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने रिकमेंडेशन लेटर जारी किया था, तब कॉलेजियम ने आदेश में उनका पूरा कार्य अनुभव, अलग-अलग हाईकोर्ट में उनका योगदान और उनकी दक्षता से जुड़ी जानकारी विस्तार से दी थी।

इतना ही नहीं, उस आदेश में कॉलेजियम के सभी सदस्यों के नाम भी दर्ज थे। लेकिन 25 अगस्त 2025 को जारी आदेश में, जिसमें न्यायमूर्ति विपुल पंचोली और न्यायमूर्ति आलोक अराधे को सुप्रीम कोर्ट के लिए सिफारिश की गई, उसमें ऐसी कोई जानकारी शामिल नहीं थी। इसी वजह से यह विवाद और गहरा हो गया है।

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वरिष्ठ जजों की अनदेखी का आरोप

संगठन ने सवाल उठाया है कि सिफारिश में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि वरिष्ठता में नीचे होने के बावजूद जस्टिस पंचोली को प्राथमिकता क्यों दी गई। साथ ही यह भी नहीं बताया गया कि कॉलेजियम में किन न्यायाधीशों ने इस फैसले में भाग लिया। CJAR का मानना है कि ऐसे फैसलों को जनता की नजर से दूर रखना न्यायपालिका की साख को प्रभावित कर सकता है।

जल्द हो सकती है जस्टिस पंचाली की नियुक्ति की घोषणा 

जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने जस्टिस नागरत्ना की आपत्ति को नज़रअंदाज़ कर दिया है और कॉलेजियम की सिफारिश को प्रधानमंत्री कार्यालय से राष्ट्रपति भवन भेजने की तैयारी कर ली है। माना जा रहा है कि राष्ट्रपति जल्द ही वॉरंट पर हस्ताक्षर कर देंगे और इस हफ्ते के अंत तक नियुक्ति की औपचारिक घोषणा हो सकती है। अगर ऐसा होता है, तो न्यायमूर्ति विपुल पंचोली 2031 में भारत के 60वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में लगभग आठ साल का कार्यकाल मिलेगा। 

इस टेंपलेट में दी जाती है जज के अनुभव की जानकारी-

सर्वोच्च न्यायालय की पारदर्शिता पर खड़े हुए सवाल 

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या नियुक्तियों में पारदर्शिता और वरिष्ठता जैसे सिद्धांतों को ताक पर रख दिया गया है?  कानूनी जानकारों का मानना है कि इस तरह की नियुक्ति से न्यायपालिका पर जनता का भरोसा डगमगा सकता है। वहीं, CJAR का जोर है कि जब तक कारण और असहमति नोट सार्वजनिक नहीं किए जाते, तब तक यह प्रक्रिया अधूरी और सवालों के घेरे में ही रहेगी। 

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चीफ जस्टिस के साथ 4 वरिष्ठ जज होते हैं कॉलेजियम के सदस्य 

सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया कॉलेजियम सिस्टम के तहत होती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और वरिष्ठतम चार न्यायाधीश शामिल होते हैं, जो योग्य उम्मीदवारों के नाम तय कर सरकार को भेजते हैं। नए नियुक्त होने वाले जज ने जिस हाईकोर्ट में काम किया है उस ही हाईकोर्ट में काम कर चुके हैं वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट के जज की राय सबसे ज्यादा मायने रखती है।

कॉलेजियम जी नाम की सिफारिश करता है उसे जज के पूरे एक्सपीरियंस का भी विस्तृत उल्लेख एक प्रोफार्मा में दिया जाता है और इसके बाद चीफ जस्टिस अनुशंसा का लेटर लिखते हैं। इसके बाद केंद्र सरकार इन नामों पर विचार करती है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद नियुक्ति की औपचारिक घोषणा होती है। हालांकि, कॉलेजियम सिस्टम को लेकर लंबे समय से पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल उठते रहे हैं।

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