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Photograph: (The Sootr)
JABALPUR. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पैरामेडिकल कॉलेजों में दाखिले से जुड़े विवादित मामले में बड़ा कदम उठाते हुए खुद स्वीकार किया है कि उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या कर ली थी।
यह टिप्पणी जस्टिस अतुल श्रीधरन की डिविजनल बेंच ने उस समय की जब पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ. शेलोज जोशी के खिलाफ झूठी गवाही और आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग पर सुनवाई हुई।
इस मामले की सुनवाई 12 अगस्त को ही हो चुकी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश जारी होने के बाद 20 अगस्त को इसका आदेश जारी किया गया। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना भी नहीं हुई और हाईकोर्ट ने अपना दर्द भी बयां कर दिया।
पैरामेडिकल काउंसिल ने दिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग बयान
दरअसल, पैरामेडिकल काउंसिल पर आरोप है कि उसने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग बयान दिए। हाईकोर्ट में कहा गया कि किसी भी छात्र को बिना मान्यता और विश्वविद्यालय से संबद्धता के दाखिला नहीं दिया गया। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल विशेष अनुमति याचिका (SLP) में दावा किया गया कि शैक्षणिक सत्र 2023-24 में 21,894 छात्रों को पहले ही प्रवेश मिल चुका है और उनका सत्र जारी है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने इसे अदालत के समक्ष स्पष्ट विरोधाभास बताते हुए डॉ. शेलोज जोशी के खिलाफ झूठी गवाही और अवमानना की कार्रवाई की मांग की।
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5 पॉइंट्स में समझें पूरी खबर...हाईकोर्ट की गलत व्याख्या: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पैरामेडिकल कॉलेजों में दाखिले से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या की थी। कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सिर्फ अंतरिम आदेश पर रोक लगाने के लिए नहीं था, बल्कि पूरी कार्यवाही को रोकने का था। पैरामेडिकल काउंसिल पर आरोप: पैरामेडिकल काउंसिल पर आरोप है कि उसने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में अलग-अलग बयान दिए। हाईकोर्ट में कहा गया कि बिना मान्यता और विश्वविद्यालय से संबद्धता के दाखिले नहीं हुए, जबकि सुप्रीम कोर्ट में दावा किया गया कि 21,894 छात्रों को दाखिला मिल चुका है। सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्चता स्वीकार की: हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्चता स्वीकार करते हुए कहा कि वह कभी भी जानबूझकर न्यायिक अतिरेक (judicial overreach) नहीं करेगा। अदालत ने 20 अगस्त को जारी आदेश में इस गलती पर खेद भी जताया। हाईकोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त 2025 को आदेश दिया था कि हाईकोर्ट इस मामले में आगे कोई कार्यवाही नहीं करेगा। इसके बाद 20 अगस्त को हाईकोर्ट ने डॉ. शेलोज जोशी के खिलाफ दायर आवेदन पर सुनवाई को स्थगित कर दिया। छात्रों के भविष्य पर सवाल: पूरे विवाद का कारण यह था कि बिना मान्यता और संबद्धता के हजारों छात्रों को दाखिला दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इन दाखिलों की वैधता और पैरामेडिकल काउंसिल के कामकाज पर राहत दी है और अब अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट ही करेगा। |
हाईकोर्ट ने कहा- “हम सुप्रीम कोर्ट से छोटे हैं”
20 अगस्त को जारी किए गए आदेश में हाईकोर्ट ने साफ कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्चता से पूरी तरह अवगत है और कभी भी जानबूझकर न्यायिक अतिरेक (judicial overreach) नहीं करेगा। अदालत ने माना कि सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त 2025 के आदेश का आशय सिर्फ हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश पर रोक लगाना नहीं था, बल्कि पूरी कार्यवाही को रोक देना था। हाईकोर्ट ने खेद जताते हुए कहा कि उसने उस आदेश को केवल “दाखिले पर लगी रोक हटाने” तक सीमित समझ लिया था, जबकि वास्तव में सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्य था कि हाईकोर्ट आगे इस मामले में कोई सुनवाई न करे।
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सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश और हाईकोर्ट का फैसला
14 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया कि पैरामेडिकल कॉलेज मामले में हाईकोर्ट को आगे कार्यवाही नहीं करनी है। इसी आधार पर 12 अगस्त 2025 को रिजर्व किए गए फैसले को 20 अगस्त को जारी करते हुए जस्टिस अतुल श्रीधरन की बेंच ने कहा कि अब डॉ. शेलोज जोशी के खिलाफ दायर आवेदन संख्या 15502/2025 पर कोई सुनवाई नहीं हो सकती। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि पैरामेडिकल कॉलेज से जुड़े मामले (W.P. 27497/2025) की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की जाती है। MP पैरामेडिकल कॉलेज | एमपी पैरामेडिकल काउंसिल
छात्रों के भविष्य पर सवाल बरकरार
गौरतलब है कि पूरे विवाद की जड़ यही है कि बिना मान्यता और संबद्धता के हजारों छात्रों को दाखिला दे दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट इस समय उन दाखिलों की वैधता और पैरामेडिकल काउंसिल के कामकाज को फिलहाल राहत दे दिए है। हाईकोर्ट ने इस मामले से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं और कहा है कि अब सुप्रीम कोर्ट ही इस पर अंतिम निर्णय देगा।
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