SEIAA विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख, दो IAS अधिकारियों की भूमिका पर उठाए सवाल, कहा- स्वतंत्र निकाय के हक हड़पे

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा SEIAA मामले में अब तक कोई जवाब नहीं दिए जाने पर कड़ा विरोध जताया है। कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।

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Sourabh Bhatnagar
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सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य पर्यावरण प्रभाव प्राधिकरण (SEIAA) की अप्रेजल प्रक्रिया को दरकिनार कर प्रमुख सचिव के अनुमोदन से 237 पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Approval) जारी करने के मामले को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने इस मामले में दायर रिट याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि दो आईएएस अधिकारियों द्वारा एक स्वतंत्र संस्थान के अधिकारों को छीनकर और बिना किसी ठोस कारण के मंजूरी देना गंभीर कार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण पर गहरी चिंता जताते हुए इसे अनुशासनहीनता और नियमों का उल्लंघन मानते हुए संबंधित अधिकारियों के कृत्यों की गंभीरता से जांच की आवश्यकता पर जोर दिया।

राज्य और केंद्र से जवाब तलब

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा अब तक कोई जवाब नहीं दिए जाने पर कड़ा विरोध जताया है। कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। अगली सुनवाई 1 सितंबर को निर्धारित की गई है। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने यह सवाल उठाया कि दो आईएएस अधिकारियों ने बिना SEIAA की अप्रेजल के कैसे मंजूरी जारी की।

SEIAA की शक्तियों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Madhya Pradesh State Level Environment Impact Assessment Authority (SEIAAएक स्वतंत्र संस्था है और इसकी शक्तियों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को निर्देशित किया गया है। अब तक सिर्फ SEIAA के चेयरमैन शिवनारायण सिंह चौहान (Shivnarayan Singh Chauhan) ने ही अपना जवाब दाखिल किया है, जबकि मुख्य सचिव, पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव, केंद्रीय मंत्रालय और सीबीआई की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है।

इन IAS अधिकारियों पर लगा आरोप

चौहान की ओर से सीनियर एडवोकेट जुगल किशोर गिल्डा ने अदालत में कहा कि आईएएस अधिकारी आर उमा माहेश्वरी, श्रीमन शुक्ला और नवनीत मोहन कोठारी ने जानबूझकर EIA (Environmental Impact Assessment - EIA) अधिसूचना 2006 का उल्लंघन करते हुए संगठित साजिश के तहत पर्यावरणीय मंजूरी जारी की। उन्होंने सिया की बैठकें रोक दीं ताकि कोई वैधानिक मूल्यांकन न हो सके और नियमों का पालन न किया जा सके। चौहान ने बार-बार इस साजिश की जानकारी मुख्य सचिव को दी, लेकिन कोई रोक नहीं लगाई गई। 

सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा ने क्या कहा?

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा ने तर्क दिया कि यह एक गंभीर मामला है, जिसमें पद का दुरुपयोग करते हुए खनन और औद्योगिक लॉबी को लाभ पहुंचाया गया है, और संवैधानिक व्यवस्था की अनदेखी की गई है।

शॉर्ट में समझें SEIAA को लेकर एससी ने क्या कहा

  • सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय मंजूरी के मामलों में आईएएस अधिकारियों की मनमानी को लेकर सख्त टिप्पणी की।

  • कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।

  • सिया (SEIAA) के स्वतंत्र निकाय के अधिकारों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर आरोप लगाए गए हैं।

जानें क्या है सिया का मतलब...

सिया चेयरमैन एसएस चौहान ने बताया कि सिया का मतलब स्टेट एनवायरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी है। यह संस्था पर्यावरण के लिए जरूरी अनुमतियां देती है। भारत सरकार के तय नियमों के अनुसार, राज्य स्तर पर सिया को शक्तियां दी गई हैं। बड़ी परियोजनाओं के लिए मंजूरी भारत सरकार देती है (कैटेगरी ए), जबकि छोटे राज्यों के मामलों में सिया को अनुमति देने का अधिकार होता है (कैटेगरी बी)। इस प्रक्रिया में परीक्षण जरूरी है, बिना जांच के किसी भी परियोजना की अनुमति नहीं दी जा सकती।

कोठारी और उमा महेश्वरी की एप्को से छुट्टी

SEIAA के पर्यावरणीय प्रकरणों में अनुमति देने के विवाद को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। इसके बाद, राज्य सरकार ने एप्को के आयुक्त नवनीत कोठारी और कार्यकारी संचालक उमा महेश्वरी को उनके पदों से हटा दिया था।

चलिए विस्तार से समझते हैं कैसे हुआ भ्रष्टाचार?

दरअसल पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के तहत 8 प्रकार के प्रोजेक्ट में पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य है। इनमें खनन, सिंचाई, सड़क-हाईवे आदि हैं। बता दें कि 250 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल के प्रोजेक्ट में ईसी जारी करने के अधिकार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और 250 हेक्टेयर से कम के प्रोजेक्ट में सिया के पास है। ऑफ द रिकार्ड सभी मानते हैं कि खनन, सिंचाई, सड़क-हाईवे आदि प्रोजेक्ट अरबों की लागत वाले होते हैं। इसलिए 25-50 लाख की दान- दक्षिणा के बिना कोई भी अनुमति इन प्रोजेक्ट को मिलती ही नहीं है। thesootr किसी भी तरह का आरोप नहीं लगा रहा है, मगर नीचे ग्राफ से समझेंगे तो संदेह अपने आप नजर आ ही जाएगा…

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Photograph: (the sootr)

सिया चेयरमैन शिवनारायण चौहान का कहना है कि अथॉरिटी के अलावा किसी और को ईसी जारी करने का अधिकार नहीं है। फिर अस्थायी प्रभार संभालने के सिर्फ एक दिन बाद ही श्रीमन शुक्ला को अनुमतियां जारी करने की ऐसी कौन सी जल्दी थी? 

सारा खेल 45 दिनों के नियम से किया…

दरअसल इस मामले में भारत सरकार के EIA Notification 2006 के तहत, हर परियोजना की मंजूरी SEIAA की सामूहिक बैठक में होनी चाहिए थी। लेकिन जानबूझकर बैठकें ही नहीं बुलाई गईं, जिससे फाइलें लंबित रहीं। फाइलें लंबित रखने के पीछे “45 दिनों का नियम”  था। दरअसल नियम के मुताबिक, अगर 45 दिनों में किसी फाइल पर फैसला नहीं होता, तो EC (पर्यावरण मंजूरी) अपने आप मान ली जाती है। इसी का फायदा उठाकर, सचिव स्तर से अकेले ही सैकड़ों मंजूरियां जारी कर दी गईं।

फर्जी अनुमोदन कराया

आरोप है कि बिना तकनीकी मूल्यांकन, बिना चर्चा, बिना जरूरी दस्तावेजों के, परियोजनाओं को हरी झंडी मिल गई। कई मामलों में खनिज के नाम और मात्रा तक बदल दी गई।

बड़ा सवाल : आखिर गड़बड़ियां कैसे हुईं?

नियमों की अनदेखी और प्रक्रिया का दुरुपयोग

  • EIA Notification 2006 के मुताबिक, हर परियोजना की मंजूरी SEIAA की सामूहिक बैठक में होनी चाहिए थी।
  • अधिकारियों ने जानबूझकर बैठकें नहीं बुलाईं, जिससे फाइलें लंबित रहीं।
  • 45 दिन की समयसीमा पूरी होते ही, सदस्य सचिव ने अकेले ही सैकड़ों परियोजनाओं को मंजूरी दे दी, जो पूरी तरह अवैध है।
  • तकनीकी मूल्यांकन, जनसुनवाई और सामूहिक निर्णय जैसी अनिवार्य प्रक्रियाओं को दरकिनार किया गया।

फर्जी अनुमोदन और दस्तावेजों में हेराफेरी

  • कई मामलों में खनिज के नाम और मात्रा तक बदल दी गई।
  • फाइलों में जरूरी जानकारी छुपाई गई या बदल दी गई, जिससे अवैध खनन को कानूनी जामा पहनाया गया।

SEIAA के सचिवालय का दुरुपयोग

राज्य सरकार के अधिकारियों ने केंद्र सरकार के आदेशों का पालन करने के बजाय SEIAA को कमजोर करने, उस पर दबाव बनाने और ब्लैकमेल करने का प्रयास किया। 

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किन अफसरों ने लापरवाही या मिलीभगत बरती?

सदस्य सचिव, SEIAA:

  • बिना बैठक और सामूहिक निर्णय के, अकेले ही सैकड़ों पर्यावरणीय मंजूरियां जारी कीं।
  • अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसले लिए।

प्रमुख सचिव, पर्यावरण विभाग, म.प्र. शासन:

  • सदस्य सचिव के अवैध फैसलों को स्वीकृति दी।
  • केंद्र सरकार के स्पष्ट आदेशों की अनदेखी की।

SEIAA के अन्य अधिकारी:

  • बार-बार बैठक बुलाने के अनुरोध को नजरअंदाज किया।
  • उच्च अधिकारियों के दबाव में काम किया या चुप्पी साधे रखी।

राज्य सरकार के अफसर:

SEIAA को स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने दिया, बल्कि उस पर दबाव बनाया।

किसको फायदा दिलाने की कोशिश हुई?

खनन माफिया और दलाल:

  • अवैध खनन परियोजनाओं को बिना वैध प्रक्रिया के मंजूरी दिलाई गई।
  • जिन कंपनियों को नियमों के तहत मंजूरी नहीं मिल सकती थी, उन्हें भी फायदा पहुंचाया गया।
  • करोड़ों रुपये की रिश्वत और दलाली के आरोप।

अधिकारियों को भी लाभ:

मंजूरी देने के बदले कथित तौर पर आर्थिक लाभ लिए गए।

पर्यावरण को होगा भारी नुकसान

आपको बता दें कि Thesootr के पास इस भ्रष्टाचार से जुड़े मामले के सभी दस्तावेज मौजूद हैं। जिन प्रोजेक्ट को आंख बंद करके अनुमति दी गई हैं, उनमें से कई ऐसे हैं जो पर्यावरण के लिए गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल मुख्य सचिव के सामने भी है कि इस मामले की जानकारी के बाद क्या वे कोई ठोस कार्यवाही करेंगे? क्या ये अनुमतियां रद्द की जाएंगी या फिर इस मामले में चांज बैठाई जाएगी? 

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चेयरमैन की ओर से ये आपत्तियां

खुद चेयरमैन का बनना पड़ा व्हिसल ब्लोअर

इधर सिया चेयरमैन शिवनारायण चौहान ने 26 मई को केंद्र को इस मामले की रिपोर्ट भेज दी है। उसके मुताबिक, 17 मार्च से 15 मई के बीच उन्होंने 10 बार मेंबर सेक्रेटरी को नोटशीट लिखी। इसके अलावा, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव को भी 22 पत्र भेजे। इन पत्रों में मेंबर सेक्रेटरी की मनमानी और बैठक न बुलाने की शिकायत की गई थी। इसके बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई। चौहान का कहना है कि बिना बैठक के ईसी जारी करना नियमों के खिलाफ है। 

किसको फायदा दिलाने की कोशिश हुई?

खनन माफिया और दलाल

 इस खेल में अवैध खनन परियोजनाओं को मंजूरी दिलाई गई। जिन कंपनियों को नियमों के तहत मंजूरी नहीं मिल सकती थी, उन्हें भी फायदा पहुंचाया गया।

इन योजनाओं को श्रीमन शुक्ला द्वारा दे दी गई डीम्ड परमिशन (PDF देखें...) 

जिम्मेदार कौन हैं?

1. सदस्य सचिव, SEIAA: बिना सामूहिक निर्णय के, अकेले ही सैकड़ों मंजूरियां जारी कीं।
2. प्रमुख सचिव, पर्यावरण विभाग, म.प्र. शासन: अवैध फैसलों को स्वीकृति दी, केंद्र सरकार के आदेशों की अनदेखी की।
3. SEIAA के अन्य अधिकारी: बैठक बुलाने के अनुरोध को नजरअंदाज किया, उच्च अधिकारियों के दबाव में काम किया।
4. खनन माफिया और दलाल: अधिकारियों से सांठगांठ कर अवैध मंजूरी दिलाई।

उड़ा दी नियमों की धज्जियां

SEIAA में बिना बैठक, बिना सामूहिक निर्णय, अकेले ही सैकड़ों परियोजनाओं को मंजूरी देकर करोड़ों का घोटाला किया गया। इसमें सदस्य सचिव, प्रमुख सचिव, अन्य अधिकारी और खनन माफिया की मिलीभगत स्पष्ट है। पर्यावरणीय सुरक्षा और कानून की धज्जियां उड़ाई गईं। अब इस मामले में तत्काल जांच, दोषियों पर कार्रवाई और सभी अवैध मंजूरियों को निरस्त करने की मांग उठ रही है।

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स्टेट एनवायरोमेंट इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (SEIAA) क्या है?

स्टेट एनवायरोमेंट  इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (SEIAA) भारत सरकार द्वारा स्थापित एक राज्य स्तरीय निकाय है, जिसका मुख्य कार्य राज्यों में विभिन्न विकास परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Clearance - EC) देना है। इसका गठन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और EIA (Environmental Impact Assessment) अधिसूचना, 2006 के तहत किया गया है। 

SEIAA की संरचना

  • अध्यक्ष: राज्य सरकार द्वारा नामित वरिष्ठ अधिकारी।
  • सदस्य: पर्यावरण, वन, जलवायु, खनन, भूगोल, रसायन, सामाजिक विज्ञान आदि क्षेत्रों के विशेषज्ञ।
  • सदस्य सचिव: आमतौर पर राज्य सरकार का कोई वरिष्ठ अधिकारी, जो प्रशासनिक कार्य देखता है।

SEIAA के गठन में विशेषज्ञता और अनुभव को प्राथमिकता दी जाती है। विशेषज्ञ सदस्य बनने के लिए संबंधित क्षेत्र में 10-15 वर्षों का अनुभव या उन्नत डिग्री जरूरी है।

सिया के मुख्य कार्य और जिम्मेदारियां

पर्यावरणीय मंजूरी देना:

SEIAA का मुख्य कार्य राज्य के भीतर आने वाली 'Category B' परियोजनाओं (जैसे छोटे-बड़े उद्योग, खनन, निर्माण, सड़क, पावर प्लांट आदि) को पर्यावरणीय मंजूरी देना है।

SEAC से सलाह लेना:

 SEIAA के निर्णय लेने से पहले, राज्य पर्यावरण मूल्यांकन समिति (SEAC) तकनीकी मूल्यांकन करती है और अपनी सिफारिश देती है। SEIAA अंतिम मंजूरी देती है या अस्वीकार करती है।

जन सुनवाई और पारदर्शिता:

 परियोजना क्षेत्र में जन सुनवाई आयोजित कराई जाती है, जिसमें स्थानीय लोगों की आपत्तियों और सुझावों को शामिल किया जाता है।

पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी:

 मंजूरी मिलने के बाद, परियोजना प्राधिकरण को हर छह महीने में अनुपालन रिपोर्ट देनी होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यावरणीय शर्तों का पालन हो रहा है।

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