सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है, जो सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त कर्मियों को अदालत में खींचने की प्रवृत्ति अपनाए हुए है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर एक स्पष्ट नीति बनाने का निर्देश दिया, ताकि भविष्य में इस तरह के मामलों में विवेकपूर्ण निर्णय लिया जा सके। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि सशस्त्र सेना न्यायाधिकरण से दिव्यांगता पेंशन पाने वाले सैनिकों को उच्चतम न्यायालय में लाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसके साथ ही, कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि वह ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील दायर करते समय लोक-लाज का ध्यान रखें।
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछे सवाल
कोर्ट ने यह सवाल किया कि एक सैन्यकर्मी जो 15-20 साल तक सेवा करता है और दिव्यांग हो जाता है, उसे क्यों सुप्रीम कोर्ट में घसीटा जाना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में केंद्र सरकार को किसी भी कदम उठाने से पहले व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था। सैन्यकर्मियों की पेंशन से जुड़े मामलों में उन्हें कोर्ट में लाकर उन पर दबाव डालने के बजाय, एक उचित नीति बनानी चाहिए ताकि सैनिकों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे।
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'मनगढ़ंत अपील' की कड़ी आलोचना
कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा दायर 'मनगढ़ंत अपील' की कड़ी आलोचना की और कहा कि इस तरह की याचिकाओं से सशस्त्र बलों का मनोबल गिर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह पूछा कि क्या वह इस मुद्दे पर कोई नीति बनाने के लिए तैयार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर भविष्य में ऐसी 'मनगढ़ंत' अपीलें दायर की जाती हैं, तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा।
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इस मामले में सुनवाई
यह मामला एक अपील से जुड़ा था, जिसमें केंद्र सरकार ने सशस्त्र सेना न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत एक सेवानिवृत्त रेडियो फिटर को दिव्यांगता पेंशन प्रदान की गई थी। इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था, और पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार के कदमों पर गंभीर सवाल उठाए।
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केंद्र सरकार को नीति बनाने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की समस्याओं का समाधान किया जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि सशस्त्र बलों के कर्मियों को अदालतों में लाने से पहले पूरी तरह से सोच-समझ कर निर्णय लिया जाना चाहिए, ताकि उनकी भावनाओं को आहत न किया जाए।