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सुप्रीम कोर्ट ने भारत के राष्ट्रपति के सचिव को निर्देश दिया है कि वह 57 वर्षीय बलवंत सिंह राजोआना की फांसी की सजा पर दो सप्ताह में फैसला करें। बता दें कि बलवंत सिंह बब्बर खालसा का आतंकवादी है और मृत्युदंड की सजा पाया हुआ अपराधी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर तय समय के भीतर दया याचिका पर विचार नहीं किया जाता है तो कोर्ट अंतरिम राहत देने की याचिका पर विचार करेगा।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने राजोआना द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई की। इसमें उनकी दया याचिका पर निर्णय लेने में 1 वर्ष और 4 महीने की 'असाधारण' और 'अत्यधिक देरी' के आधार पर मृत्युदंड को कम करने की मांग की गई, जो 2012 से राष्ट्रपति के पास लंबित है। दरअसल 31 अगस्त, 1995 को चंडीगढ़ सचिवालय परिसर में घातक आत्मघाती बम विस्फोट से जुड़ी घटना के लिए बलवंत सिंह को दोषी ठहराया गया है। इस हादसे में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 16 अन्य लोगों की जान चली गई थी। 2007 में विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee) ने राजोआना के लिए दया याचिका दायर की थी। यह याचिका तभी से राष्ट्रपति के पास लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस बीआर गवई, पीके मिश्रा और के.वी. विश्वनाथन शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में तेजी से निर्णय लेना आवश्यक है क्योंकि याचिकाकर्ता मृत्युदंड का सामना कर रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि दो सप्ताह में राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से जवाब आना चाहिए।
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एक नजर पूरे घटनाक्रम पर
- 1995: चंडीगढ़ विस्फोट में बेअंत सिंह की हत्या।
- 2007: राजोआना को विशेष अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई गई।
- 2012: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दया याचिका दायर की।
- 2023: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए सजा को उम्रकैद में बदलने से इनकार किया।
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क्या हो सकता है आगे ?
अगर राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका स्वीकार की जाती है, तो बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला जा सकता है। हालांकि, अगर याचिका खारिज होती है, तो सजा-ए-मौत बरकरार रहेगी।
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