किसी को 'मियां-तियां' और 'पाकिस्तानी' कहना अपराध नहीं, इससे धार्मिक ठेस नहीं पहुंचती: SC

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि किसी को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना भले ही अनुचित हो, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा अपराध नहीं माना जा सकता।

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Sourabh Bhatnagar
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एक सरकारी कर्मचारी की शिकायत पर दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि आरोपी के बयान आपत्तिजनक जरूर हैं, लेकिन इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने या शांति भंग करने वाले अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल गलत हो सकता है, लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 298, 504 और 353 के तहत इसे अपराध मानने का कोई ठोस आधार नहीं है।  

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क्या था पूरा मामला?

 शिकायतकर्ता झारखंड में एक उर्दू अनुवादक और एक कार्यवाहक क्लर्क थे। उनका आरोप था कि जब वह सूचना के अधिकार (RTI) से संबंधित जानकारी लेने के लिए आरोपी से मिलने गए, तो उसने उनके धर्म को लेकर अपमानजनक शब्द कहे। शिकायतकर्ता का यह भी कहना था कि आरोपी ने उन्हें अपने आधिकारिक कर्तव्यों को पूरा करने से रोकने की कोशिश की और उनके खिलाफ आपराधिक बल का इस्तेमाल किया।  

अदालत ने क्यों कहा कि यह धार्मिक अपराध नहीं है? 

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि किसी को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना गलत हो सकता है, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध नहीं है। अदालत के मुताबिक, इस मामले में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि आरोपी की टिप्पणी से शांति भंग हो सकती थी या उसने शिकायतकर्ता पर कोई हमला किया था।  

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किन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था?

 आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना) और 353 (सरकारी कर्मचारी को कर्तव्य निभाने से रोकने के लिए हमला या बल प्रयोग) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन धाराओं के तहत मामला नहीं बनता और इसे निरस्त कर दिया।  

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अदालत का सख्त संदेश: गलत शब्द, लेकिन अपराध नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अपीलकर्ता द्वारा दिए गए बयान गलत हो सकते हैं, लेकिन वे इतने गंभीर नहीं हैं कि उन्हें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध माना जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह भारतीय कानून के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में नहीं आता। इस फैसले को भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल माना जा सकता है।  

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