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आज से ठीक 33 साल पहले उत्तर प्रदेश के अयोध्या में एक बड़ी घटना हुई थी। 6 दिसंबर 1992 का वो दिन था, जिसकी गूंज आज भी देश-दुनिया में सुनाई देती है। बाबरी मस्जिद का विध्वंस केवल एक पुरानी इमारत का गिरना नहीं था।
यहीं से एक लंबी और जटिल कानूनी लड़ाई की शुरुआत भी हुई थी। इस 33 साल के सफर में देश ने कम्युनलिस्म की आग और आतंकवादी घटनाओं की लहर देखी।
आखिरकार 500 सालों के इंतजार के बाद, 22 जनवरी 2024 को भव्य राम मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। यह सच में इतिहास का एक बहुत बड़ा मोड़ था।
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विध्वंस का वो मंजर: जब बेकाबू हुई कारसेवकों की भीड़
6 दिसंबर 1992 को सुबह करीब 10:30 बजे अयोध्या में लाखों कारसेवकों की भारी भीड़ जमा हो गई थी। बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद के कई दिग्गज नेता वहां मौजूद थे। थोड़ी ही देर में जय श्री राम के नारों के साथ भीड़ बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने लगी।
हजारों की संख्या में आई भीड़ ने मस्जिद की संरचनाओं को तोड़ना शुरू कर दिया। जो हुआ वह अकल्पनीय था, जिसने सबको हैरान कर दिया। 460 साल पुरानी मस्जिद को पांच घंटे के भीतर पूरी तरह से जमींदोज कर दिया गया।
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उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुरक्षाकर्मियों को गोली नहीं चलाने का आदेश दिया था। बाद में यह माना गया कि इस आदेश के कारण ही भीड़ अनियंत्रित हो गई थी।
यह घटना अचानक पैदा हुए आवेग का परिणाम नहीं थी। बताया जाता है कि 1990 से ही तनावपूर्ण माहौल बन चुका था। कई राजनीतिक दलों ने इस कारसेवा आंदोलन को चरम पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
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दंगे और आतंकवाद: देश पर गहरे घाव
बाबरी विध्वंस के बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे फैल गए, जिसने कई शहरों को जला दिया। देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई में सबसे ज्यादा असर दिखा। 1992 और 1993 में मुंबई में भयंकर दंगे हुए, जिनमें सैकड़ों लोगों की जान गई थी।
इस घटना के बाद, पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने भारत के प्रमुख शहरों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। 12 मार्च 1993 को मुंबई में 12 अलग-अलग स्थानों पर बम धमाके हुए।
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इन धमाकों में 257 लोगों की मौत हुई और 1400 से ज्यादा नागरिक घायल हुए। इस हमले का मास्टरमाइंड था अंतर्राष्ट्रीय अपराधी दाऊद इब्राहिम।
इस एक घटना ने बाबरी विध्वंस और आतंकवाद के बीच सीधा संबंध जोड़ दिया। 26/11 मुंबई हमला और पुलवामा हमला जैसी घटनाओं ने इस कड़वाहट को और बढ़ा दिया।
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क्या थी अयोध्या विवाद की मुख्य वजह
बाबरी मस्जिद का विध्वंस क्यों हुआ था, यह समझना भारत के इतिहास की एक जटिल और गहरी कहानी है।
बाबरी मस्जिद की कहानी दशकों से भारत के इतिहास का एक अहम हिस्सा रही है। आम धारणा यह थी कि इस मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने करवाया था। ऐसा माना जाता था कि यह निर्माण पहले से मौजूद राम मंदिर को गिराकर किया गया था।
इसी आस्था और दावे को लेकर हिंदू समुदाय लंबे समय से उस स्थान पर एक भव्य राम मंदिर की स्थापना की मांग कर रहा था। 1990 के दशक में, इसी मांग ने एक विशाल राम मंदिर आंदोलन का रूप ले लिया। इसने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राजनीतिक उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
6 दिसंबर 1992 को, जब यह विवादित ढांचा गिराया गया, तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे। उन्होंने बाद में इस घटना की पूरी जिम्मेदारी ली थी। कल्याण सिंह ने स्पष्ट किया था कि उन्होंने अयोध्या में जमा हुए राम भक्तों (कारसेवकों) पर गोली नहीं चलाने का आदेश दिया था।
उनके मुताबिक, इस आदेश के कारण ही बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। उन्होंने यह कहकर पूरा दायित्व स्वीकार किया कि "मैं इसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हूं"।
यह घटना दो समुदायों के बीच विभाजन और दंगों का कारण बनी। इसने देश के राजनीतिक और सामाजिक माहौल को हमेशा के लिए बदल दिया।
यह सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले (2019) तक चली लंबी कानूनी लड़ाई की शुरुआत थी। यह विध्वंस भारतीय राजनीति और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ था।
कोर्ट की लंबी लड़ाई: 17 साल लिब्रहान आयोग की जांच
विवादित ढांचे की जांच के लिए रिटायर्ड जज मनमोहन सिंह लिब्रहान की अध्यक्षता में एक आयोग बना। इस लिब्रहान आयोग को शुरू में तीन महीने में रिपोर्ट देनी थी, पर यह जांच 17 सालों तक चली।
आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया और इस पर 8 करोड़ से ज्यादा खर्च आया। आयोग ने 400 से ज्यादा बैठकें की और कई बड़े राजनेताओं से सवाल-जवाब किए। 30 जून 2009 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी।
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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और मंदिर निर्माण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादित जमीन को तीन भागों में बांटने का फैसला दिया था। पर यह फैसला अंतिम नहीं रहा और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
9 नवंबर 2019 का दिन ऐतिहासिक था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि विवादित जमीन हिंदुओं के हिस्से में जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। मुस्लिम पक्ष जमीन पर अपना दावा साबित करने में विफल रहा।
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22 जनवरी 2024: एक युग का अंत और रामलला की वापसी
500 सालों की लंबी लड़ाई और बाबरी विध्वंस के 33 सालों बाद, करोड़ों हिंदुओं की इच्छा पूरी हुई। 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण पूरा हुआ।
इस दिन प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समारोह के यजमान बने। लाखों राम भक्त इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने। इस तरह, बाबरी विध्वंस की यह लंबी कहानी राम मंदिर निर्माण के साथ एक नए अध्याय में प्रवेश कर गई।
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आज का माहौल: सुरक्षा घेरे में अयोध्या
6 दिसंबर को कुछ हिंदू संगठन "शौर्य दिवस" और कई मुस्लिम समूह इसे "काला दिवस" के रूप में मनाते हैं। इस कारण आज के दिन कानून व्यवस्था बनाए रखना संवेदनशील हो जाता है।
बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर अयोध्या समेत मथुरा, वाराणसी और अन्य प्रमुख जिलों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। अयोध्या को एक तरह से छावनी में बदल दिया गया है।
ताकि किसी भी तरह की असुविधा न हो। होटल, ढाबे, गेस्ट हाउस और धर्मशालाओं की लगातार जांच की जा रही है। सुरक्षा एजेंसियां यह सुनिश्चित कर रही हैं कि कानून-व्यवस्था बनी रहे।
References
- BBC Hindi - बाबरी विध्वंस से लेकर राम मंदिर तक...राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद
- The Hindu - Ayodhya verdict: timeline of a dispute (बाबरी मस्जिद विवाद)
- Indian Express - What was the Liberhan Commission?
- News 18 Hindi - राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की पूरी कहानी (Ram Mandir- Babri Masjid Dispute)
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