आज का इतिहास : 30 हजार राजपूतों की शहादत की तारीख है 26 अगस्त

26 अगस्त 1303 को अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ किले पर कब्जा कर लिया, जिसके पीछे राजनीतिक और रानी पद्मावती की कथा जैसे कई कारण थे। राजपूतों ने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए जौहर और साका जैसी महान परंपराओं का पालन कर अपनी अस्मिता की रक्षा की।

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Kaushiki
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आज की यादगार घटनाएं:दिल्ली सल्तनत के क्रूर और महत्वाकांक्षी शासक अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ के किले पर हमला किया था। यह किला मेवाड़ राज्य की राजधानी था, जिस पर उस समय रावल रतन सिंह का शासन था। यह लड़ाई करीब 7 से 8 महीने तक चली, जिसमें राजपूतों ने अपनी वीरता का अद्भुत परिचय दिया।

अंत में 26 अगस्त 1303 को अलाउद्दीन खिलजी ने किले पर कब्जा कर लिया। यह सिर्फ एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि इसके पीछे कई कारण थे।

एक तरफ जहां ऐतिहासिक और राजनीतिक कारण थे, वहीं दूसरी तरफ रानी पद्मावती की सुंदरता को लेकर एक मशहूर पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है।

विजय के प्रमुख कारण

रणनीतिक महत्व

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चित्तौड़गढ़ का किला अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण बहुत महत्वपूर्ण था। यह दिल्ली से गुजरात और मालवा जाने वाले व्यापारिक मार्गों पर स्थित था। अलाउद्दीन खिलजी अपनी सल्तनत का विस्तार करना चाहता था और इस रास्ते पर नियंत्रण हासिल करना उसके लिए बहुत जरूरी था।

मेवाड़ पर नियंत्रण

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मेवाड़ एक शक्तिशाली और मजबूत राज्य था। इसे जीतने के बाद खिलजी पूरे राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों पर अपना दबदबा कायम कर सकता था। मेवाड़ के राजाओं ने पहले भी दिल्ली सल्तनत के खिलाफ कई बार विद्रोह किया था, इसलिए खिलजी उन्हें सबक सिखाना चाहता था।

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रानी पद्मावती की कथा

कई पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में यह बताया गया है कि अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़गढ़ पर हमला करने का एक बड़ा कारण रानी पद्मावती की सुंदरता थी।

मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा 1540 ईस्वी में लिखे गए महाकाव्य "पद्मावत" में इस कथा का विस्तार से वर्णन है। जायसी के अनुसार, अलाउद्दीन रानी की खूबसूरती के बारे में सुनकर उन्हें पाने की चाह रखता था।

हालांकि, कुछ आधुनिक इतिहासकार इस कहानी को पूरी तरह से ऐतिहासिक नहीं मानते, उनका कहना है कि जायसी की रचना एक काल्पनिक महाकाव्य था, न कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज। फिर भी, यह कहानी भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।

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घेराबंदी और युद्ध

अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी विशाल सेना के साथ जनवरी 1303 में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी शुरू की थी। किले की सुरक्षा बहुत मजबूत थी और राजपूत सैनिक बहादुरी से लड़ रहे थे।

लगभग 7 महीने तक चली इस घेराबंदी के दौरान, किले के अंदर खाने-पीने की चीजें और अन्य संसाधन खत्म होने लगे थे। जब रावल रतन सिंह और उनके सैनिकों को यह एहसास हुआ कि उनकी हार निश्चित है, तो उन्होंने एक साहसिक फैसला लिया।

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जौहर और साका: राजपूतों का बलिदान

जब राजपूतों ने तय कर लिया कि वे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे और आखिरी सांस तक लड़ेंगे, तो रानी पद्मिनी के नेतृत्व में किले की सभी महिलाओं ने जौहर (सामूहिक आत्मदाह) करने का फैसला किया। 

ऐसा उन्होंने अपने सम्मान और अस्मिता की रक्षा के लिए किया, ताकि वे अलाउद्दीन खिलजी की सेना के हाथ न लगें। कहा जाता है कि करीब 16 हजार राजपूत महिलाओं ने जौहर की अग्नि में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दी थी।

इसके बाद, पुरुषों ने साका किया जिसका अर्थ है आखिरी युद्ध। रावल रतन सिंह और उनके सैनिक केसरिया वस्त्र पहनकर किले के दरवाजे खोलकर युद्ध के लिए बाहर आए।

वे जानते थे कि यह उनकी आखिरी लड़ाई है और उन्होंने दुश्मनों को हराने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी। इस युद्ध में रावल रतन सिंह और उनके सभी बहादुर सैनिक शहीद हो गए।

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युद्ध के बाद का परिणाम

26 अगस्त 1303 को अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ किले पर कब्जा कर लिया। इस विजय के बाद उसने किले का नाम बदलकर अपने बेटे खिज्र खान के नाम पर खिजराबाद रख दिया।

इतिहासकार अमीर खुसरो जो इस अभियान में खिलजी के साथ थे ने अपने लेखों में बताया है कि खिलजी ने इस जीत के बाद करीब 30 हजार राजपूतों का कत्लेआम करवाया था। यह एक बेहद क्रूर और बर्बर घटना थी। हालांकि, खिलजी का शासन चित्तौड़गढ़ पर लंबे समय तक नहीं चला।

बाद में, सिसोदिया वंश के हम्मीर देव ने खिलजी के कमजोर होते साम्राज्य का फायदा उठाकर किले को फिर से हासिल कर लिया और इसे राजपूतों के अधीन वापस ले आए।

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ऐतिहासिक स्रोत

इस घटना के बारे में जानकारी हमें कई स्रोतों से मिलती है, जिनमें सबसे प्रमुख हैं:

  • अमीर खुसरो का 'खजाईन-उल-फतूह': यह एक समकालीन दस्तावेज़ है, जिसमें अमीर खुसरो ने इस युद्ध का वर्णन किया है। हालांकि, उन्होंने जौहर और रानी पद्मिनी की कथा का उल्लेख नहीं किया है।
  • मलिक मुहम्मद जायसी का 'पद्मावत': यह एक महाकाव्य है जो 1540 में लिखा गया था। इसमें रानी पद्मिनी की कथा का विस्तार से वर्णन है, लेकिन इसका ऐतिहासिक आधार बहस का विषय है।
  • राजपूतों के लोकगीत और किंवदंतियां: पीढ़ियों से चली आ रही लोक कथाएं और गीत भी इस घटना और रानी पद्मिनी के बलिदान की गाथा को जीवित रखे हुए हैं।

आज की तारीख का इतिहास

  • 26 अगस्त, 1303: अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ किले पर विजय प्राप्त की।
  • 26 अगस्त, 1910: महान संत मदर टेरेसा का जन्म हुआ।
  • 26 अगस्त, 1914: बंगाल के क्रांतिकारियों ने कलकत्ता में ब्रिटिश हथियारों पर कब्जा किया।
  • 26 अगस्त, 1977: सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षण किया।
  • 26 अगस्त, 1978: सोवियत संघ के अंतरिक्ष यात्री सिगुरन इवानोविच अंतरिक्ष में जाने वाले पहले व्यक्ति बने।
  • 26 अगस्त, 1982: नासा ने टेलीसेट-एफ उपग्रह का प्रक्षेपण किया।
  • 26 अगस्त, 2002: दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन शुरू हुआ।
  • 26 अगस्त, 2007: चीन में दुनिया के सबसे लंबे रेलवे पुल का निर्माण हुआ।
  • 26 अगस्त, 2015: अमेरिका के वर्जीनिया में टीवी रिपोर्टर और कैमरामैन की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • 26 अगस्त, 2016: भारत की बैडमिंटन खिलाड़ी पी.वी. सिंधु विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचीं।

क्यों याद रखा जाना चाहिए 26 अगस्त का दिन

भारत के नजरिए से

  • 1910: नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा का जन्म।
  • 1977: भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल प्रीतम सिंह का निधन।
  • 1997: आशा भोंसले ग्रैमी पुरस्कार के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय गायिका बनीं।
  • 2008: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-1 मिशन के लिए पीएसएलवी-सी11 लॉन्च करने की घोषणा की।
  • 2013: भारत सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को मंजूरी दी।

विश्व के नजरिए से

  • 1743: रसायन विज्ञान के जनक एंटोनी लवॉज़िए का जन्म।
  • 1883: इंडोनेशिया में क्राकाटोआ ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ।
  • 1920: अमेरिका में महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला।
  • 1978: जॉन पॉल प्रथम पोप बने।
  • 2016: संयुक्त राज्य अमेरिका ने एवर्ट्स-चार्ली लेक को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया।

References:

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