सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ( JKLF ) के नेता यासीन मलिक के खिलाफ चल रहे एक मामले में सुनवाई हुई। यासीन मलिक, जो कि इस समय जेल में बंद हैं, ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में अपने बयान दिए। उन्होंने कोर्ट में यह दावा किया कि वह कोई आतंकवादी नहीं हैं, बल्कि एक राजनीतिक नेता हैं। मलिक ने कहा कि उनके खिलाफ जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं, वे पूरी तरह से गलत हैं और इनसे उनका राजनीतिक संघर्ष जुड़ा हुआ है।
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यासीन मलिक का आतंकवादी होने से इंकार
यासीन मलिक ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा उन्हें खतरनाक आतंकवादी कहे जाने पर जवाब देते हुए कहा कि यह आरोप उनके खिलाफ पूर्वाग्रह पैदा कर रहे हैं। मलिक ने अदालत में यह भी कहा कि उनके संगठन को अभी तक आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित नहीं किया गया है। उन्होंने अपने बचाव में कहा कि 1994 में संघर्ष विराम की घोषणा के बाद से उन्हें 32 मामलों में जमानत मिली थी और इन मामलों में कोई आगे की कार्रवाई नहीं की गई। मलिक ने यह भी कहा कि उनका संगठन आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक गतिविधियां हैं जो उनकी विचारधारा का हिस्सा हैं।
प्रधानमंत्रियों से बातचीत का दावा
यासीन मलिक ने कोर्ट में यह दावा किया कि अब तक सात प्रधानमंत्रियों ने उनके साथ गंभीरता से संवाद किया था। इनमें नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी (पहले कार्यकाल के दौरान) शामिल हैं। मलिक ने कहा कि इन प्रधानमंत्रियों ने उनके संघर्ष विराम प्रस्ताव को गंभीरता से लिया और संवाद किया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मौजूदा केंद्र सरकार अब 35 साल पुराने मामलों को फिर से खोला जा रहा है, जो संघर्ष विराम की भावना के खिलाफ है।
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केंद्र सरकार पर आरोप
मलिक ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि पुराने आतंकवादी मामलों को फिर से खोला जा रहा है, जो उनके संघर्ष विराम के प्रयासों और शांति की दिशा में किए गए प्रयासों के खिलाफ है। मलिक ने कहा कि सरकार उनका मामला राजनीतिक दृष्टिकोण से देख रही है और उनके खिलाफ कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि उनके खिलाफ कोई एफआईआर आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित नहीं है, और सभी मामले राजनीतिक विरोध से जुड़े हुए हैं।
कोर्ट के जेल से ही जिरह करने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल यासीन मलिक को जम्मू की कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने की अनुमति नहीं दी है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह तिहाड़ जेल से ही डिजिटल माध्यम से गवाहों से जिरह करें। इससे पहले, जम्मू की कोर्ट ने मलिक को अपहरण मामले में गवाहों से आमने-सामने जिरह करने के लिए अदालत में पेश होने की अनुमति दी थी, जिसे सीबीआई ने चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपनी सुनवाई को जारी रखा और यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि मलिक को न्यायिक प्रक्रिया में कोई असुविधा न हो।
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सीबीआई ने दी थी चुनौती
यह सुनवाई सीबीआई द्वारा जम्मू-कश्मीर से दिल्ली ट्रांसफर किए गए दो मामलों को लेकर थी। पहला मामला दिसंबर 1989 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण से संबंधित था। दूसरा मामला जनवरी 1990 में श्रीनगर में चार वायुसेना कर्मियों की हत्या से संबंधित था। सीबीआई ने जम्मू की कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मलिक को अपहरण मामले में गवाहों से आमने-सामने जिरह करने के लिए अदालत में पेश होने की अनुमति दी गई थी।
यासीन मलिक का राजनीतिक करियर
यासीन मलिक ने हमेशा अपनी पहचान एक राजनीतिक नेता के रूप में बनाई है और उनका कहना है कि उनका संघर्ष कभी भी आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ा नहीं था। उन्होंने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि उनका उद्देश्य कश्मीर की स्वतंत्रता और कश्मीरी लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना है, जो कि उनके दृष्टिकोण में पूरी तरह से एक राजनीतिक उद्देश्य है। हालांकि, भारतीय सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने उनके इस संघर्ष को आतंकवाद के रूप में वर्गीकृत किया है, जिसका विरोध मलिक लगातार करते रहे हैं।