कर्नाटक हाईकोर्ट ने शनिवार को देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह टिप्पणी जस्टिस हंचाटे संजीव कुमार की सिंगल जज बेंच ने एक पारिवारिक संपत्ति विवाद मामले में दी। कोर्ट ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड से सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेंगे, खासकर महिलाओं को, जो पर्सनल लॉ के कारण भेदभाव का सामना करती हैं। इस टिप्पणी के बाद, केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की गई है कि वे मिलकर एक ऐसा कानून बनाएं जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करें।
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पारिवारिक संपत्ति विवाद का मामला
यह मामला मुस्लिम महिला शहनाज बेगम की मौत के बाद उनकी संपत्ति के बंटवारे से संबंधित था। शहनाज के भाई, बहन और पति के बीच संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद हो गया था। उनके भाई-बहनों का कहना था कि ये संपत्तियां शहनाज ने अपनी कमाई से खरीदी थीं, इसलिये सभी को बराबर हिस्सा मिलना चाहिए। वहीं, शहनाज के पति का कहना था कि संपत्तियां दोनों ने मिलकर खरीदी थीं, इसलिए उन्हें अधिक हिस्सा मिलना चाहिए। कर्नाटक हाईकोर्ट ने तथ्यों की जांच के बाद फैसला सुनाया कि यह संपत्ति पति-पत्नी की साझी कमाई से खरीदी गई थी और इसी आधार पर संपत्ति का बंटवारा किया गया।
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हाईकोर्ट की टिप्पणी पर बारीकी से विचार
कोर्ट ने इस मामले के बहाने मुस्लिम पर्सनल लॉ (Personal Laws) पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि हिंदू पर्सनल लॉ में बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिया गया है, जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहन को कम हिस्सा मिलता है और भाई को प्रमुख हिस्सेदार माना जाता है। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन माना और कहा कि यह असमानता समाप्त होनी चाहिए।
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संविधान निर्माता थे UCC के पक्ष में
कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर, सरदार पटेल और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के भाषणों का हवाला दिया। इन नेताओं का मानना था कि एक समान नागरिक कानून देश में होना चाहिए, जिससे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समानता को बढ़ावा मिले। इन नेताओं के विचारों को उद्धृत करते हुए जस्टिस कुमार ने कहा कि UCC की आवश्यकता है, जो सभी नागरिकों के लिए समान और समान्य नियम सुनिश्चित करे।
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गोवा और उत्तराखंड का उदाहरण
कोर्ट ने गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्यों का उदाहरण दिया, जहां पहले ही UCC लागू किया जा चुका है। इन राज्यों में UCC को लागू कर दिया गया है, और अब समय है कि अन्य राज्य और केंद्र भी इस दिशा में कदम उठाएं। उत्तराखंड में तो जनवरी 27 को UCC लागू किया गया था, जिसका ऐलान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया था।
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UCC का महिलाओं के अधिकारों पर असर
UCC का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों और संपत्तियों के मामले में समान अवसर प्रदान करना है। वर्तमान में, मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिलाओं को उनके अधिकारों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, खासकर संपत्ति के बंटवारे के मामले में। UCC लागू होने पर महिलाओं को समान अधिकार मिलेंगे, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
ये रहा अंतिम निर्णय और कोर्ट का फैसला
कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले में यह स्पष्ट किया कि शहनाज बेगम की संपत्तियां पति-पत्नी की साझी कमाई से खरीदी गई थीं, भले ही यह केवल पत्नी के नाम पर थीं। कोर्ट ने संपत्ति का बंटवारा करते हुए शहनाज के भाई को 1/10 हिस्सा, बहन को 1/20 हिस्सा और पति को 3/4 हिस्सा दिया। इस फैसले के बाद, कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की कि वे UCC को लागू करने के लिए एक समान कानून बनाएं।