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हर साल वैशाख शुक्ल तृतीया को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह तिथि 29 अप्रैल (मंगलवार) को प्रदोष काल में मनाई जाएगी। पंचांग के मुताबिक, तृतीया तिथि 29 अप्रैल की शाम 05:31 बजे शुरू होकर 30 अप्रैल दोपहर 2:12 बजे तक रहेगी।
ऐसी मान्यता है कि, उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें पापमुक्त किया और ‘परशु’ अस्त्र प्रदान किया। परशुराम जयंती का सनातन धर्म में विशेष महत्व है।
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भगवान परशुराम कौन थे
भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। वे ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। परशुराम को चिरंजीवी माना जाता है, अर्थात वे आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्हें ‘परशु’ नामक दिव्य अस्त्र भी शिवजी से प्राप्त हुआ था।
क्यों काटी परशुराम ने अपनी मां की गर्दन
- एक प्राचीन कथा के मुताबिक, एक दिन माता रेणुका सरोवर में स्नान करने गईं। वहां उन्होंने राजा चित्ररथ को नौका विहार करते देखा, जिससे उनके मन में क्षणिक विकार उत्पन्न हुआ। जब वे आश्रम लौटीं, तो ऋषि जमदग्नि ने उनकी मनोदशा जान ली और अत्यंत क्रोधित होकर अपने पुत्रों को उनकी हत्या का आदेश दिया।
- बड़े पुत्र आज्ञा नहीं माने, लेकिन परशुराम ने बिना हिचकिचाहट पिता की आज्ञा मान ली। उन्होंने अपनी मां की गर्दन काट दी, जिससे पिता प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने मां को पुनर्जीवित करने का वर मांगा, जिसे ऋषि जमदग्नि ने पूरा किया।
- परशुराम ने कहा:“हे पिताश्री, मेरी माता को पुनर्जीवन दें और मेरे भाई सामान्य हो जाएं।” ऋषि जमदग्नि ने यह वरदान पूरा किया और माता रेणुका पुनर्जीवित हुईं। इससे परशुराम की बुद्धिमत्ता, निष्ठा और त्याग भावना का पता चलता है।
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मातृहत्या का पाप और तपस्या
- हालांकि कथा के मुताबिक, माता को पुनर्जीवन मिला फिर भी परशुराम मातृहत्या के पाप से ग्रस्त हो गए। इस पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की।
- परशुराम ने घोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिवजी ने उन्हें पापमुक्त किया और परशु प्रदान किया। इसी कारण उन्हें ‘परशुराम’ कहा गया।
तीन मूल सिद्धांत
मान्यता है कि, भगवान परशुराम का जीवन तीन मूल सिद्धांतों का प्रतीक है:
- धर्म की रक्षा: उन्होंने अधर्मियों और क्षत्रियों का संहार किया जब वे अन्याय कर रहे थे।
- आज्ञापालन: उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन बिना प्रश्न किए किया।
- तपस्या और आत्मनियंत्रण: उन्होंने पाप से मुक्ति के लिए कठोर तप किया और शिवजी को प्रसन्न किया।
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इस दिन क्या करें
- प्रदोष काल में भगवान परशुराम का ध्यान करें।
- कथा श्रवण और परशुराम चालीसा का पाठ करें।
- ब्राह्मणों को दान देना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- परशुराम मंदिरों में पूजा और हवन का आयोजन करें।
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