/sootr/media/media_files/2025/08/19/ganesh-and-mahabharata-2025-08-19-15-45-18.jpg)
Ganesh Chaturthi:हिंदू धर्म में हम भगवान गणेश को सबसे पहले पूजते हैं। उन्हें हम विघ्नहर्ता यानी सभी मुश्किलों को दूर करने वाला और रिद्धि-सिद्धि के दाता यानी सुख-समृद्धि देने वाला मानते हैं। लेकिन उनका एक और खास रूप भी है, जिसके बारे में शायद कम लोग जानते हैं - वे लेखन कला के भी देवता हैं।
यह बात उस समय की है जब महाभारत जैसा बड़ा महाकाव्य लिखा जा रहा था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ब्रह्मा जी ने महर्षि वेदव्यास को महाभारत महाकाव्य की रचना करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
इस महाकाव्य को लिखने की जिम्मेदारी महर्षि वेदव्यास को मिली थी, क्योंकि उन्होंने खुद महाभारत की पूरी कहानी को देखा था। लेकिन वेदव्यास जी के सामने एक मुश्किल थी: इतने विशाल ग्रंथ को आखिर कौन लिखेगा?
तब ब्रह्मा जी ने उन्हें गणेश जी का नाम सुझाया, जिनकी बुद्धि, एकाग्रता और लेखन की गति का कोई मुकाबला नहीं था। आइए जानें भगवान गणेश की एकदंत बनने की कहानी....
गणेश जी ने क्या शर्त रखी
महाभारत (mahabharat) के लेखन की प्रक्रिया कोई सामान्य कार्य नहीं थी, बल्कि यह दो महान विद्वानों के बीच एक अनोखी साझेदारी थी। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब महर्षि वेदव्यास गणेश जी के पास महाभारत लिखने का प्रस्ताव लेकर पहुंचे तो गणेश जी ने एक शर्त रखी।
उन्होंने कहा कि वे महाभारत लिखने के लिए तैयार हैं लेकिन महर्षि को बिना रुके पूरी कहानी सुनानी होगी। अगर वेदव्यास बीच में कहीं रुक जाते हैं, तो गणेश जी लिखना बंद कर देंगे।
वेदव्यास ने गणेश जी की इस शर्त को मान लिया लेकिन उन्होंने भी अपनी ओर से एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि गणेश जी को हर वाक्य या श्लोक को पूरी तरह से समझने के बाद ही लिखना होगा।
गणेश जी भी इस शर्त पर सहमत हो गए। यह शर्त यह सुनिश्चित करने के लिए थी कि महाकाव्य को सिर्फ यांत्रिक रूप से नहीं, बल्कि पूर्ण समझ और ज्ञान के साथ लिखा जाए।
यह साझेदारी इतनी सफल रही कि महर्षि वेदव्यास जिस तेजी से बोलते थे, गणेश जी उसी तेजी से लिखते चले जाते थे। इस कार्य को पूरा होने में लगभग 3 साल का समय लगा था। इस दौरान न तो गणेश जी ने वेदव्यास को रोका और न ही वेदव्यास अपनी शर्त से पीछे हटे।
ये खबर भी पढ़ें...राधा अष्टमी पर घर में इस विधि से करें राधा रानी की पूजा, मिलेगा सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद
क्यों कहलाए गणेश जी एकदंत
कथा के मुताबिक, महाभारत को लिखते समय गणेश जी की लेखन गति इतनी तेज थी कि उनकी लेखनी बार-बार टूट जाती थी। ऐसा माना जाता है कि जब उनकी लेखनी टूटी तो उन्होंने बिना किसी रुकावट के अपनी लेखन को जारी रखने के लिए अपने एक दांत को तोड़कर कलम बना लिया।
उन्होंने अपने टूटे हुए दांत से ही लिखना जारी रखा ताकि महाकाव्य का प्रवाह न टूटे। इसी महान त्याग और समर्पण के कारण भगवान गणेश को 'एकदंत' भी कहा जाने लगा।
यह घटना उनके लेखन के प्रति असाधारण समर्पण और कर्तव्य-निष्ठा को दर्शाती है। इस तरह महाभारत का लेखन कार्य बिना किसी रुकावट के पूरा हुआ।
यह महाकाव्य, जिसे स्वयं ब्रह्मा ने निर्देशित किया था और गणेश जी ने लिपिबद्ध किया विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य होने का वरदान भी मिला।
ये खबर भी पढ़ें... सावन का आखिरी सोमवार: मंदिरों-शिवालयों में गूंजा हर हर महादेव
महाभारत के लेखन से जुड़ी ऐतिहासिक जगहें
कहा जाता है कि महाभारत को लिखने का यह महान कार्य आज भी उत्तराखंड में मौजूद है। श्रीगणेश ने यह पूरा महाकाव्य उत्तराखंड के माणा गांव की एक गुफा में लिखा था। इस गुफा को 'व्यास गुफा' के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास (महर्षि वेदव्यास और भगवान गणेश) ने अपना काफी समय इसी गुफा में बिताया था और महाभारत के अलावा कई अन्य पुराणों की रचना भी की थी।
इस गुफा को बाहर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे कई ग्रंथ एक-दूसरे के ऊपर रखे हों इसलिए इसे 'व्यास पोथी' भी कहते हैं। यह जगह आज भी हिंदू धर्म में बहुत पवित्र मानी जाती है और हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।
thesootr links
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬
👩👦👨👩👧👧