/sootr/media/media_files/2025/09/04/haridwar-kashi-puri-badrinath-me-pinndaan-ka-vidhan-2025-09-04-13-37-56.jpg)
पितृपक्ष में पिंडदान:भारत में पितरों को पिंड दान करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से वंशज अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए प्रसाद चढ़ाते हैं।
वैसे तो बिहार के गया को पिंड दान का सबसे प्रमुख और पवित्र स्थान माना जाता है लेकिन इसके अलावा भी भारत में कई ऐसे स्थल हैं जहां यह अनुष्ठान श्रद्धापूर्वक किया जाता है। आइए उन प्रमुख स्थानों, उनकी पौराणिक मान्यताओं और पिंड दान से जुड़ी प्रक्रियाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गया, बिहार
क्यों महत्वपूर्ण है:
गया (गया पिंडदान महत्व) को पिंड दान के लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यहां भगवान विष्णु स्वयं 'गदाधर' के रूप में निवास करते हैं और यहां पिंडदान करने से पूर्वजों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि गयासुर नामक एक राक्षस ने भगवान विष्णु से यह वरदान प्राप्त किया था कि जो भी व्यक्ति उसके नाम से इस स्थान पर पिंडदान करेगा, उसके पूर्वजों को नरक से मुक्ति मिल जाएगी।
क्या होता है:
मान्यताओं के मुताबिक, यहां पिंड दान मुख्य रूप से फल्गु नदी के तट पर और विष्णुपद मंदिर में किया जाता है। अनुष्ठान में पिंड (चावल, जौ, तिल और आटे से बने गोले) चढ़ाए जाते हैं।
यह प्रक्रिया 16 वेदियां और 54 पिंड वेदियां पर की जाती है, जिनमें रामशिला, प्रेतशिला, अक्षयवट और फल्गु नदी का तट शामिल हैं। यह अनुष्ठान आमतौर पर पितृ पक्ष के दौरान किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की पूजा और तर्पण शामिल हैं।
हरिद्वार, उत्तराखंड
क्यों महत्वपूर्ण है:
हरिद्वार को 'हरि का द्वार' कहा जाता है। यह उन चार स्थानों में से एक है जहां कुंभ मेला लगता है। यहां बहने वाली गंगा नदी को मोक्षदायिनी माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, गंगा में स्नान करने और यहाँ पिंडदान करने से पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
क्या होता है:
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यहां पिंड दान हर की पौड़ी घाट पर किया जाता है। लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं, तर्पण करते हैं और पितरों के लिए पिंडदान करते हैं।
इस अनुष्ठान में पुरोहितों की सहायता ली जाती है जो मंत्रोच्चारण के साथ पिंड दान की प्रक्रिया पूरी कराते हैं। यहाँ श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है।
ये खबर भी पढ़ें...पितृ पक्ष 2025: पूर्वजों को याद करने का समय है पितृ पक्ष, जानें श्राद्ध की तिथियां और नियम
काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश
क्यों महत्वपूर्ण है:
काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है और इसे दुनिया की सबसे पुरानी जीवित नगरी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यहां मृत्यु होने पर सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए यहां पिंडदान करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है।
क्या होता है:
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, पिंड दान मुख्य रूप से मणिकर्णिका घाट और दशाश्वमेध घाट पर किया जाता है। मणिकर्णिका घाट को मोक्ष का घाट माना जाता है।
लोग गंगा में स्नान करने के बाद यहां पिंड दान करते हैं। यहाँ भी पंडितों की सहायता से मंत्रोच्चारण और विधि-विधान से अनुष्ठान संपन्न किया जाता है।
बद्रीनाथ, उत्तराखंड
क्यों महत्वपूर्ण है:
बद्रीनाथ चार धामों में से एक है और भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां बहने वाली अलकनंदा नदी को पिंड दान के लिए पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को भगवान बद्रीनाथ का आशीर्वाद मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
क्या होता है:
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, पिंडदान ब्रह्मकपाल घाट पर किया जाता है, जो अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। इस घाट का विशेष धार्मिक महत्व है।
माना जाता है कि यहां पिंड दान करने से गया में पिंडदान के समान ही फल मिलता है। यहां भी पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ विधिवत पिंडदान किया जाता है।
जगन्नाथ पुरी, ओडिशा
क्यों महत्वपूर्ण है:
जगन्नाथ पुरी चार धामों में से एक है और भगवान जगन्नाथ (जो भगवान कृष्ण का ही एक रूप हैं) को समर्पित है। यहाँ मार्कण्डेय तालाब और स्वर्गद्वार घाट को पिंडदान के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
क्या होता है:
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, श्रद्धालु पहले पवित्र मार्कण्डेय तालाब में स्नान करते हैं और फिर पिंडदान करते हैं। इसके बाद वे स्वर्गद्वार नामक घाट पर जाते हैं, जहां लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
यह माना जाता है कि जगन्नाथ पुरी में किया गया पिंडदान सीधे भगवान जगन्नाथ तक पहुंचता है, जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौराणिक मान्यताएं
हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में पिंड दान का गहरा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी आत्मा विभिन्न लोकों में भटकती रहती है।
पिंड दान के माध्यम से उसके वंशज उसे भोजन, पानी और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे उसकी यात्रा आसान हो जाती है और वह शांति से अपने अगले लोक में पहुंच पाती है। यह अनुष्ठान इस बात का प्रतीक है कि जीवित व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
पिंड दान में चावल के पिंड, तिल, शहद और गंगाजल का उपयोग किया जाता है। इन सामग्रियों का अपना आध्यात्मिक महत्व है। तिल को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है, जबकि चावल के पिंड पूर्वजों के लिए भोजन का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह अनुष्ठान केवल पितृ पक्ष में ही नहीं, बल्कि वर्ष के अन्य शुभ दिनों में भी किया जा सकता है।
इस तरह, गया के अलावा ये सभी स्थान भी पिंडदान के लिए अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जहाँ लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्रद्धापूर्वक यह अनुष्ठान करते हैं।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
ये खबर भी पढ़ें... 100 साल बाद पितृ पक्ष 2025 में दो ग्रहणों का दुर्लभ संयोग, जानें श्राद्ध और तर्पण के खास नियम
thesootr links
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬
👩👦👨👩👧👧