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Latest Religious News: छठ पूजा भारत का एक ऐसा अनूठा महापर्व है जो पूरी तरह से प्रकृति और सूर्य देव की उपासना पर आधारित है। यह पर्व हमें बताता है कि जीवन में हर स्थिति चाहे वह उदय हो या अस्त दोनों का समान महत्व है।
यही कारण है कि इस कठिन व्रत में उगते सूर्य को तो अर्घ्य दिया ही जाता है, मगर उससे पहले डूबते सूर्य को भी पूरी श्रद्धा से जल चढ़ाया जाता है।
यह परंपरा केवल पूजा का विधान नहीं है बल्कि जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई बताती है। साल 2025 में ये पर्व 25 अक्टूबर नहाए-खाए से शुरू होगा। ये 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा। ऐसे में आइए जानें उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व...
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
छठ पूजा (छठ पूजा का महत्व) की शुरुआत संध्या अर्घ्य (अस्ताचलगामी) से होती है। इसमें डूबते हुए सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। किसी भी अन्य पर्व में ढलते हुए सूर्य की पूजा का ऐसा विधान नहीं है। इसके पीछे मुख कारण और गहरा संदेश छिपा है:
अतीत का सम्मान
डूबता हुआ सूर्य हमारे जीवन के उस अतीत का प्रतीक है जो बीत चुका है लेकिन जिसने हमें ज्ञान और अनुभव दिया है। यह संदेश देता है कि हमें केवल वर्तमान में सफल व्यक्ति का ही सम्मान नहीं करना है। बल्कि उन बुजुर्गों, गुरुओं और पूर्वजों का भी सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अपनी यात्रा पूरी कर ली है।
समानता का भाव
छठ हमें सिखाता है कि अस्त को भी उदय जितना ही सम्मान मिलना चाहिए। यहां सभी एक साथ घाट पर खड़े होकर डूबते सूर्य को प्रणाम करते हैं। यह पर्व समानता और हर व्यक्ति को महत्व देने का संदेश देता है।
पौराणित मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, सूर्य देव की दो पत्नियां हैं। ऊषा सुबह की पहली किरण हैं और प्रत्यूषा जो संध्या की अंतिम किरण हैं। जब सूर्य डूब रहे होते हैं, तब वे अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा देवी के साथ होते हैं। इसलिए डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर वास्तव में उनकी शक्ति प्रत्यूषा देवी की उपासना की जाती है। मान्यता है कि प्रत्यूषा देवी की पूजा से जीवन में समृद्धि और संपन्नता आती है।
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उगते सूर्य को अर्घ्य देने का आध्यात्मिक महत्व
दूसरे दिन व्रत का समापन उगते हुए सूर्य (उषाकाल) को अर्घ्य देकर किया जाता है। इसे ऊषा अर्घ्य कहते हैं। यह जीवन की नई शुरुआत, आशा और सफलता का प्रतीक है।
नए आरंभ और ऊर्जा का प्रतीक
वर्तमान और भविष्य:
उगता सूरज आज और अच्छे भविष्य की निशानी है। लोग सूरज भगवान से यही मांगते हैं। जैसे सूरज रोज नई शक्ति से उगता है उसी तरह हमारा जीवन भी ज्ञान, अच्छी सेहत और कामयाबी की रोशनी से भरा रहे।
सकारात्मक ऊर्जा:
उगते सूर्य की किरणें शुद्धता, ज्ञान से भरपूर मानी जाती हैं। इस समय अर्घ्य देने से शरीर और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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छठ पर्व क्यों मनाया जाता है?
बीमारी से पूरी तरह मुक्त
वैज्ञानिक रूप से उगते और डूबते सूर्य की किरणें सबसे कम हानिकारक और लाभकारी होती हैं। इस समय जल में खड़े होकर अर्घ्य देने से सूर्य की किरणें शरीर पर पड़ती हैं, जिससे विटामिन-डी मिलता है। कई तरह के चर्म रोग भी दूर होते हैं।
एकाग्रता
जल की धारा के बीच से सूर्य को देखने से आंखों की रौशनी पर सीधा तेज नहीं पड़ता। इससे एकाग्रता बढ़ती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
कौन हैं छठी मैया
छठ पर्व में सूर्य देव के साथ उनकी बहन छठी मैया की भी पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं और मार्कण्डेय पुराण के मुताबिक, छठी मैया को देवी षष्ठी के नाम से जाना जाता है। इन्हें सृष्टि के छठे अंश से उत्पन्न माना जाता है और ये ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं।
छठी मैया को संतान की रक्षा करने वाली और उन्हें दीर्घायु देने वाली देवी माना जाता है। हिंदू धर्म में बच्चे के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं देवी षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। लोक मान्यताओं में छठी मैया को सूर्य देव की बहन भी कहा जाता है।
इसीलिए दोनों भाई-बहन की पूजा छठ महापर्व में एक साथ की जाती है। इन्हें देवसेना भी कहा गया है और ये भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी भी मानी जाती हैं। मान्यता के मुताबिक इनकी पूजा से निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख मिलता है और परिवार में खुशहाली आती है।
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