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Latest Religious News, धार्मिक अपडेट: हर साल दिवाली के शुभ अवसर पर हम सब धन की देवी लक्ष्मी का स्वागत करते हैं। लेकिन आपने हमेशा देखा होगा कि लक्ष्मी जी की पूजा से पहले और उनके साथ प्रथम पूज्य भगवान गणेश की आराधना जरूरी मानी जाती है।
हमारे धर्म ग्रंथों के मुताबिक, यह सिर्फ एक परंपरा नहीं बल्कि एक गहरा धार्मिक दर्शन है। देवी लक्ष्मी को चंचल माना जाता है और उन्हें स्थिर रखने के लिए गणेश जी का साथ बहुत जरूरी है।
ऐसे में दिवाली पर इन दोनों की पूजा हमें यह सिखाती है कि धन का आगमन तभी शुभ है जब उसके साथ सही बुद्धि का आशीर्वाद भी हो। यह परंपरा सिर्फ रीति-रिवाज नहीं बल्कि हमारे प्राचीन धार्मिक दर्शन का एक गहरा सबक है।
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क्यों जरूरी है गणेश जी की पूजा
जीवन में धन का सही उपयोग तभी हो सकता है, जब उसके साथ बुद्धि का सहयोग हो। हमारे धर्म ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में इस पूजा के कई कारण बताए गए हैं।
धन की स्थिरता के लिए बुद्धि का नियंत्रण
ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी स्वभाव से चंचल होती हैं और एक स्थान पर ज्यादा देर नहीं रुकतीं। यदि किसी व्यक्ति को अचानक बहुत सारा धन मिल जाए और उसके पास बुद्धि न हो, तो वह उस धन का दुरुपयोग कर देता है। भगवान गणेश को बुद्धि के देवता और विघ्नहर्ता माना जाता है।
जब गणेश जी को लक्ष्मी जी के साथ बैठाया जाता है, तो यह प्रार्थना की जाती है कि हमें धन के साथ-साथ उसे सही ढंग से खर्च करने का विवेक भी मिले। ये पूजा सिखाती है कि जो धन घर में आए, वह शुभ कार्यों में लगे और स्थिर रहे। बिना बुद्धि के धन का आना और जाना दोनों ही बुरा होता है।
प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता का आशीर्वाद
हिन्दू धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य या अनुष्ठान की शुरुआत हमेशा भगवान गणेश की पूजा से होती है। लक्ष्मी पूजा भी एक महान अनुष्ठान है।
गणेश जी को विघ्नहर्ता (बाधाओं को दूर करने वाला) कहा जाता है। दिवाली पर लक्ष्मी पूजा से पहले गणेश जी को पूजने का अर्थ है कि हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि धन और समृद्धि हमारे जीवन में बिना किसी रुकावट या बाधा के प्रवेश करे।
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शिव और पार्वती से जुड़ा पौराणिक कथा
एक अन्य प्रचलित पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार देवी लक्ष्मी को अपने ऐश्वर्य और धन का अहंकार हो गया। उन्होंने खुद को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया। इस पर भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि धन तो बहुत है, लेकिन संतान सुख और बुद्धि के बिना सब अधूरा है।
लक्ष्मी जी ने तब माता पार्वती के पास जाकर उनसे उनके पुत्र गणेश को गोद लेने का आग्रह किया। पार्वती जी ने गणेश को लक्ष्मी जी को सौंप दिया और कहा, "आज से गणेश तुम्हारे पुत्र हैं। जहां कहीं भी तुम्हारी पूजा होगी, वहां पहले गणेश की पूजा अनिवार्य रूप से होगी, अन्यथा तुम्हारी पूजा पूरी नहीं मानी जाएगी।" यही कारण है कि दिवाली पर गणेश को 'बुद्धि का पुत्र' और 'शुभता का प्रतीक' मानकर लक्ष्मी जी के साथ पूजा जाता है।
दिवाली की पूजा
दिवाली 2025 की रात को यह संयुक्त पूजा एक गहरा सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश देती है:
सबसे पहले गणेश:
पूजा की शुरुआत हमेशा भगवान गणेश के आह्वान से होती है। उन्हें तिलक लगाया जाता है, फूल चढ़ाए जाते हैं और भोग (मोदक) लगाया जाता है। यह बुद्धि और शुभता को प्राथमिकता देने का प्रतीक है।
फिर देवी लक्ष्मी:
गणेश जी की पूजा के बाद देवी लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। उनसे धन, समृद्धि और सौभाग्य की कामना की जाती है।
पूजा का समापन:
यह अनुष्ठान हमें सिखाता है कि जीवन में धन (लक्ष्मी) तभी फलदायी है जब वह विवेक (गणेश) के साथ आए। जो व्यक्ति केवल धन के पीछे भागता है और बुद्धि को अनदेखा करता है, उसका धन नष्ट हो जाता है। इस तरह दिवाली पर लक्ष्मी और गणेश की पूजा केवल दो मूर्तियों को पूजना नहीं है बल्कि यह धन और विवेक के संतुलन को बनाए रखने का एक पवित्र संकल्प है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। Hindu News
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