किस बात पर जाग गया था देवराज इंद्र का अहंकार, पढ़ें गोवर्धन पर्वत की पौराणिक कथा

गोवर्धन पूजा, दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है। ये भगवान श्रीकृष्ण की लीला को याद दिलाती है। उन्होंने इंद्र के क्रोध से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था। यह त्योहार प्रकृति के प्रति आभार का संदेश देता है।

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Kaushiki
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Latest Religious News: दिवाली केवल राम जी की जीत का त्यौहार नहीं है। यह पांच दिनों का एक उत्सव है, जो अलग-अलग कहानियों और अर्थों से भरा है। दिवाली की जगमगाहट खत्म होते ही अगले ही दिन गोवर्धन पूजा का पावन पर्व मनाया जाता है। यह त्यौहार सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत लीला और प्रकृति के प्रति आभार जताने का संदेश है।

इस दिन ब्रजवासियों को देवराज इंद्र के क्रोध से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर विशाल गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। इसीलिए इस दिन हम गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर और गायों की पूजा करते हैं। यह याद दिलाते हैं कि हमें अपनी प्रकृति, खासकर पहाड़ों और पशुधन की रक्षा हमेशा करनी चाहिए।

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इंद्र का अहंकार और कृष्ण की लीला

पौराणिक कथा (पौराणिक कथाएं) के मुताबिक, यह कहानी द्वापर युग की है जब भगवान कृष्ण बाल रूप में वृंदावन में रहते थे। वृंदावन के लोग जो मुख्य रूप से गोपालक थे, हर साल एक भव्य पूजा करते थे। यह पूजा देवराज इंद्र को समर्पित थी।

वृंदावन के लोग मानते थे कि इंद्र ही वर्षा के देवता हैं और अगर वे प्रसन्न नहीं हुए, तो वर्षा नहीं होगी और उनकी गायों तथा फसलों का नुकसान हो जाएगा। एक बार छोटे कृष्ण ने यह देखा।

उन्होंने सरल और तार्किक भाषा में नंद बाबा से पूछा, "बाबा, हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं? हमारे जीवन का आधार क्या है?" कृष्ण ने समझाया, "हमारी गायें जिस घास को खाती हैं, वह घास कहां उगती है? गोवर्धन पर्वत पर। हमें पानी देने वाली यमुना नदी कहां से निकलती है? पर्वत से। हमें छाया और लकड़ी कौन देता है? पर्वत। इसलिए, हमारे जीवन का सीधा संबंध इंद्र से नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत से है। हमें किसी अदृश्य देवता के बजाय, उस प्रकृति की पूजा करनी चाहिए, जो हमें रोज भोजन और जीवन देती है।"

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गोवर्धन की पूजा और इंद्र का क्रोध

कृष्ण के तर्क से वृंदावन के लोग बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने तुरंत इंद्र की पूजा बंद कर दी और कृष्ण के कहने पर गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। उन्होंने अन्नकूट का विशाल भोग बनाया, जिसे आज भी इस पूजा में बनाया जाता है।

जब देवराज इंद्र ने देखा कि उनकी पूजा बंद हो गई है और उनकी जगह एक पहाड़ की पूजा हो रही है, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्हें लगा कि एक छोटे से बालक ने उनका अपमान किया है। अपने अहंकार में अंधे होकर, उन्होंने वृंदावन को नष्ट करने का फैसला किया।

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गोवर्धन पर्वत को उठाना

इंद्र ने बादलों के देवता मेघों को बुलाया और आदेश दिया कि वृंदावन में इतना भयानक तूफान और मूसलाधार वर्षा हो कि सब कुछ डूब जाए। वृंदावन में लगातार सात दिनों तक प्रलयकारी वर्षा हुई। लोग, गायें और जानवर सब डर गए।

तब भगवान कृष्ण आगे आए। उन्होंने अपनी छोटी उंगली पर किसी छाते की तरह पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। सभी वृंदावनवासी और उनकी गायें उस पर्वत के नीचे सात दिनों तक सुरक्षित रहीं।

इंद्र का पूरा अहंकार चूर-चूर हो गया। सातवें दिन इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ, उन्होंने वर्षा रोक दी और कृष्ण से क्षमा मांगी। इस तरह, गोवर्धन पूजा शुरू हुई।

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गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा (इंद्र देव) की यह कथा हमें आज के समय के लिए तीन बहुत गहरे अर्थ सिखाती है:

  • प्रकृति ही भगवान है

    प्राचीन काल में, लोग प्राकृतिक घटनाओं के डर से देवताओं की पूजा करते थे। कृष्ण ने समझाया कि हमें किसी अमूर्त शक्ति की पूजा करने के बजाय, उस प्रकृति की पूजा करनी चाहिए जो हमें सीधे जीवन देती है—पहाड़, पेड़, गाय, नदियां। यह सीधा संदेश देता है कि प्रकृति संरक्षण हमारे जीवन और धर्म का अभिन्न अंग है।

  • अहंकार का विनाश

    इंद्र ने खुद को सबसे बड़ा माना और अपनी सत्ता को चुनौती देने पर विनाश करने की कोशिश की। ये कथा सिखाती है कि चाहे आप कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों आपका अहंकार प्रकृति के सामने टिक नहीं पाएगा। जब मनुष्य प्रकृति का दोहन करना शुरू करता है, तो प्रकृति ही उसे सबक सिखाती है। हमें विनम्र होना चाहिए।

  • सामूहिकता और आत्म-निर्भरता

    कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया, लेकिन उन्होंने सभी गांव वालों को पर्वत के नीचे आकर एकजुट होने के लिए प्रेरित किया। यह सिखाता है कि बड़े संकटों का सामना अकेले नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास और एकता से किया जा सकता है। गोवर्धन पूजा एक तरह से सामुदायिक भावना और आत्म-निर्भरता का उत्सव है, जहां लोग अपने हाथों से बना भोजन (अन्नकूट) बांटते हैं।

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अन्नकूट महोत्सव क्या है

अन्नकूट का मतलब है अन्न का पहाड़। यह गोवर्धन पूजा के दिन मनाया जाने वाला एक खास उत्सव है। इस दिन भक्त अपनी श्रद्धा से कई तरह के ताजे पकवान जैसे सब्जी, दाल, चावल, मिष्ठान बनाते हैं और उन्हें भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाने के लिए इकट्ठा करते हैं।

यह एक तरह से सामूहिक भोज होता है, जो प्रकृति और खाद्य सामग्री के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए किया जाता है, ताकि घर में कभी अन्न की कमी न हो।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News

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