कब है नरक चतुर्दशी 2025, इस दिन क्यों जरूरी है सूर्योदय से पहले तेल लगाना?

नरक चतुर्दशी के दिन तेल मालिश के लिए तिल का तेल सबसे अच्छा और शुभ माना जाता है। कहते हैं कि तिल के तेल में मां लक्ष्मी का वास होता है, और यह यमराज को भी बहुत पसंद है।

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Kaushiki
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सनातन धर्म में हर त्यौहार और उससे जुड़ी परंपरा का कोई गहरा वैज्ञानिक या आध्यात्मिक मतलब होता है। दीपावली से एक दिन पहले आने वाली नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस या छोटी दिवाली भी कहते हैं। उसी परंपरा का हिस्सा है।

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश करना और अपामार्ग (चिचड़ा) के पत्तों से नहाना जरूरी माना जाता है। यह सिर्फ धार्मिक रिवाज नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए एक पुराना नुस्खा भी है।

दरअसल, यह वह वक्त होता है जब मौसम बदलता है, सर्दियां शुरू होती हैं और शरीर को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है। हमारे पूर्वजों ने इस बात को समझा और इसे एक धार्मिक प्रक्रिया में बदल दिया।

इस साल नरक चतुर्दशी 20 अक्टूबर, 2025 को मनाई जाएगी। तो, चलिए जानते हैं कि नरक चतुर्दशी पर तेल लगाना क्यों इतना जरूरी है।

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नरक चतुर्दशी पर तेल मालिश की परंपरा

नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तिल के तेल से पूरे शरीर की मालिश करने का विधान है। इस परंपरा के पीछे दो कारण हैं:

  • धार्मिक महत्व

    शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन यमराज की पूजा और तर्पण किया जाता है। माना जाता है कि तेल मालिश करने से यमराज प्रसन्न होते हैं। व्यक्ति को अकाल मृत्यु के भय और नरक की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। यह स्नान व्यक्ति को नरक के भय से मुक्त करता है।

  • लक्ष्मी का वास 

    ऐसी मान्यता है कि इस दिन तेल मालिश करने वाले पर मां लक्ष्मी की कृपा होती है और घर में धन और समृद्धि का वास होता है।

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औषधीय और वैज्ञानिक महत्व

  • त्वचा का पोषण: 

    शरद ऋतु के बाद, ठंड की शुरुआत में त्वचा रूखी होने लगती है। तेल मालिश करने से त्वचा को गहरा पोषण मिलता है। वो मुलायम होती है और उसमें नई चमक आती है। यह वातावरण में सूखेपन के प्रभाव को कम करता है।

  • ब्लड सर्कुलेशन में सुधार: 

    मालिश से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे शरीर में नई ऊर्जा आती है और सुस्ती दूर होती है। यह शरीर को आने वाली सर्दी के लिए तैयार करता है।

  • विटामिन डी: 

    सूर्योदय से पहले हल्की धूप में तेल मालिश करने से शरीर को विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है, जो हड्डियों के लिए बहुत जरूरी है।

अपामार्ग या चिरचिटा: एक चमत्कारी औषधीय पौधा

अपामार्ग के पत्तों से स्नान

तेल मालिश के बाद, अपामार्ग के पत्तों को पानी में डालकर या शरीर पर रगड़कर स्नान करने का विशेष विधान है। ऐसा करने से

  • प्रेत बाधा से मुक्ति: 

    अपामार्ग के पत्तों को नकारात्मक ऊर्जा और प्रेत बाधा को दूर करने वाला माना जाता है। इसे पानी में डालकर स्नान करने से व्यक्ति के आस-पास की सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।

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  • आरोग्य का वरदान: 

    यह माना जाता है कि अपामार्ग का प्रयोग करने वाले को भगवान धन्वंतरि का आशीर्वाद मिलता है। इससे वह पूरे साल तंदुरुस्त और स्वस्थ रहता है।

  • औषधीय महत्व:

    अपामार्ग के पत्तों में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं। इन्हें रगड़ने से त्वचा की गहराई से सफाई होती है। इससे फंगल इन्फेक्शन जैसी समस्याओं से बचाव होता है, जो अक्सर मौसम बदलने पर होती हैं।

  • इम्युनिटी: 

    यह औषधीय पौधा शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने में भी मदद करता है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग कई विकारों के उपचार में किया जाता है।

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नरक चतुर्दशी स्नान का शुभ मुहूर्त

शास्त्रों के मुताबिक, नरक चतुर्दशी (कब है नरक चतुर्दशी 2025) का यह विशेष स्नान सूर्योदय से पहले (ब्रह्म मुहूर्त) करना सबसे सही माना जाता है। क्योंकि तभी इसका पूरा पुण्य फल और आरोग्य लाभ मिल पाता है। स्नान के बाद ही यमराज के लिए तिल का तेल का दीपक जलाया जाता है। (narak chaturdashi puja vidhi) 

  • सबसे पहले तिल के तेल से पूरे शरीर की अच्छी तरह मालिश करें। 

  • पुरुषों को तिल के तेल से और महिलाओं को तेल के साथ उबटन लगाकर मालिश करनी चाहिए।

  • इसके बाद, नहाने के पानी में अपामार्ग के कुछ पत्ते मिलाएं। 

  • अगर अपामार्ग न मिले तो साधारण पानी से भी स्नान कर सकते हैं।

  • स्नान करते समय अपामार्ग की पत्तियों को सिर पर से तीन बार घुमाएं।

  • स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यमराज (यमराज पूजा) को जल चढ़ाएं और दीपदान का संकल्प लें।

नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली का यह धार्मिक विधान स्वच्छता, आरोग्य और आत्म-पोषण का एक प्राचीन और वैज्ञानिक तरीका है। इसे हमें श्रद्धा और समझदारी से अपनाना चाहिए।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News

FAQ

नरक चतुर्दशी पर तेल मालिश के लिए कौन सा तेल सबसे शुभ होता है और क्यों?
नरक चतुर्दशी के दिन तेल मालिश के लिए तिल का तेल सबसे उत्तम और शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, तिल के तेल में मां लक्ष्मी का वास होता है और यह यमराज को भी अत्यंत प्रिय है। औषधीय रूप से, तिल का तेल गर्म तासीर का होता है। ये ठंड के मौसम में शरीर को गर्माहट और त्वचा को रूखेपन से लड़ने के लिए गहरा पोषण प्रदान करता है जिससे त्वचा रोग दूर होते हैं।
अपामार्ग के पत्ते न मिलने पर नरक चतुर्दशी का स्नान कैसे करें
यदि आपको अपामार्ग (लटजीरा) के पत्ते आसानी से न मिलें तो आप शुद्ध जल में गंगाजल मिलाकर या थोड़े से हल्दी और चंदन डालकर स्नान कर सकते हैं। हल्दी और चंदन में भी रोगाणु-रोधी गुण होते हैं जो त्वचा को शुद्ध करते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि आप पवित्र भावना और आरोग्य प्राप्ति की कामना के साथ यह नरक चतुर्दशी स्नान करें।

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