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Latest Religious News: आप मंदिर जाते होंगे और पूजा के बाद बड़े प्रेम से प्रसाद ग्रहण करते होंगे, जो हमारी सनातन परंपरा का हिस्सा है। क्या आपने कभी यह गहराई से सोचा है कि एक साधारण सा भोजन भगवान को अर्पित होने के बाद इतना शक्तिशाली कैसे हो जाता है?
इसके पीछे का जवाब केवल आस्था में ही नहीं। बल्कि प्राचीन विज्ञान, मनोविज्ञान और सामाजिक एकता के एक गहरे मेल में छिपा हुआ है। हमारे ऋषियों ने बहुत पहले ही यह अनुभव किया था।
पूजा-पाठ के समय एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। मंदिर के अंदर की शांति, मंत्रों का लगातार उच्चारण, धूप और दीपक की पवित्र सुगंध और सभी भक्तों की एकत्रता मिलकर एक उच्च ऊर्जा क्षेत्र बनाती है।
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आत्मा को शुद्ध करता है प्रसाद
मान्यता है कि जब भोग को इस पवित्र वातावरण में रखा जाता है, तब वह इन सभी सकारात्मक तरंगों को अपने भीतर सोख लेता है। जब यही ऊर्जा से भरा भोजन हमें प्रसाद के रूप में प्राप्त होता है, तब हम उस पवित्र ऊर्जा को अपने शरीर और मन के भीतर ग्रहण करते हैं।
यह प्रसाद केवल हमारी भूख शांत करने के लिए नहीं होता। बल्कि हमारी आत्मा को शुद्ध करने और दैवीय कृपा को प्राप्त करने का एक माध्यम होता है। प्रसाद को एक-दूसरे में बांटने की हमारी परंपरा हमें यह सिखाती है कि खुशियां और भगवान का आशीर्वाद बांटने से हमेशा बढ़ता है।
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क्यों बांटना चाहिए प्रसाद
अधिकतर मंदिरों और घरों में बनाए जाने वाले प्रसाद में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक हैं।
पंचामृत और इसके फायदे
पंचामृत प्रसाद का एक बहुत ही अभिन्न अंग है जो पांच पवित्र चीजों से मिलकर बनता है। यह मुख्य रूप से हमारे पाचन तंत्र को ठीक रखने में मदद करता है। शरीर की इम्युनिटी को भी बढ़ाता है।
तुलसी के पत्ते का महत्व
प्रसाद में तुलसी का पत्ता डालना लगभग जरूरी माना जाता है और इसके कई वैज्ञानिक कारण हैं। तुलसी एक बहुत ही शक्तिशाली एंटीबायोटिक और एंटीऑक्सीडेंट का काम करती है। यह प्रसाद को बाहरी तत्वों से दूषित होने से बचाती है। ये कई प्रकार की बीमारियों से लड़ने में भी सहायता करती है।
फल और सूखे मेवे
प्रसाद में अक्सर मौसमी फल, किशमिश, बादाम और अन्य सूखे मेवे शामिल किए जाते हैं। ये सभी चीजें हमारे शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं। ये पूजा-पाठ या उपवास के बाद शरीर को तरोताजा करने में सहायक होते हैं।
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मानसिक एकाग्रता का पाठ
मंदिर या पूजा के स्थान पर हर व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, उच्च जाति का हो या निम्न, बिना किसी भेदभाव के एक साथ खड़ा होकर एक जैसा प्रसाद ग्रहण करता है। ये अद्भुत परंपरा हमें सिखाती है कि भगवान की दृष्टि में हम सभी लोग बराबर हैं कोई छोटा या बड़ा नहीं।
प्रसाद इस प्रकार सामाजिक भेदभाव को पूरी तरह से मिटाने का सबसे सरल और मीठा तरीका बन जाता है। जब हम एक-दूसरे को प्रसाद बांटते हैं, तब इससे हमारे बीच प्यार, सौहार्द और एकता की भावना बहुत मजबूत होती है।
इसके अलावा, प्रसाद बनाते और परोसते समय साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना हमें सिखाता है कि खाने-पीने की चीजों में पवित्रता और स्वच्छता कितनी जरूरी होती है।
पूजा में जब हम भोग लगाते हैं (तुलसी पूजा), तब हमारा मन खाने-पीने की लालसा से हटकर पूरी तरह से भगवान में लग जाता है, जो मानसिक एकाग्रता बढ़ाने में बहुत सहायक होता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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