जगन्नाथ मंदिर, जो ओडिशा के पुरी में स्थित है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस मंदिर में हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है, जो न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि आस्था और विश्वास का प्रतीक भी है।
रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं और भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्र के दर्शन करते हैं। इस बार जगन्नाथ पुरी में 27 जून को रथ यात्रा निकाली जाएगी।
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यात्रा का महत्व
इस यात्रा का महत्व अत्यधिक है और यह पुण्य प्राप्ति का एक बड़ा अवसर माना जाता है। हालांकि, इस मंदिर से जुड़ी एक जरूरी परंपरा है, जो अविवाहित प्रेमी जोड़ों को मंदिर में प्रवेश से रोकती है।
इस परंपरा का एक गहरा पौराणिक और धार्मिक संबंध है, जो आज भी निभाया जा रहा है। जगन्नाथ पुरी मंदिर में 27 जून को रथ यात्रा निकाली जाएगी
क्यों वर्जित है अविवाहित प्रेमी जोड़ों का प्रवेश
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अविवाहित प्रेमी जोड़ों का प्रवेश वर्जित है। यह परंपरा सीधे तौर पर भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय राधा रानी से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार राधा रानी श्रीकृष्ण के जगन्नाथ स्वरूप के दर्शन करने पुरी पहुंचीं।
जब वह मंदिर में प्रवेश करने लगीं, तो पुजारियों ने उन्हें प्रवेश से रोक दिया। राधा रानी ने कारण पूछा तो पुजारियों ने कहा कि राधा रानी श्रीकृष्ण की प्रेमिका हैं, पत्नी नहीं, इसलिए उनका मंदिर में प्रवेश संभव नहीं है। यही कारण है कि भगवान की पत्नियों को भी इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाता।
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राधा रानी का श्राप
राधा रानी को यह सुनकर बहुत आघात पहुंचा और उन्होंने क्रोधित होकर श्राप दिया कि, "अब से इस मंदिर में कोई भी अविवाहित जोड़ा प्रवेश नहीं कर सकेगा।
अगर कोई अविवाहित जोड़ा यहां प्रवेश करेगा, तो उसे जीवन में कभी प्रेम की प्राप्ति नहीं होगी।" यह श्राप आज भी प्रभावी माना जाता है और यही कारण है कि अविवाहित प्रेमी जोड़ों को जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती।
तब से चली आ रही परंपरा
यह पौराणिक श्राप आज तक निभाया जा रहा है। जब भी कोई अविवाहित जोड़ा मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश करता है, तो उन्हें रोक दिया जाता है, चाहे वे प्रेमी हों या शादी के लिए तय हो चुके हों, लेकिन अभी विवाह न हुआ हो। इस परंपरा को मंदिर प्रशासन श्रद्धा के साथ निभाता है और इसे धार्मिक विश्वास के रूप में देखा जाता है।
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जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
रथ यात्रा का आयोजन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा को अपने मुख्य मंदिर से निकालकर उनके मौसी के घर (गुंडीचा मंदिर) भेजा जाता है।
इस यात्रा के दौरान लाखों भक्तों की उपस्थिति होती है और यह यात्रा भगवान के दर्शन का एक महान अवसर है। रथ यात्रा में भाग लेने से भक्तों के पापों का नाश होता है और उन्हें मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
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