/sootr/media/media_files/2025/07/28/janmashtami-2025-shri-krishna-teachings-2025-07-28-15-37-32.jpg)
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन अपने आप में एक लंबी-चौड़ी दर्शन है। उनकी लीलाएं, उनके उपदेश और उनसे जुड़ी हर कथा हमें जीवन की गहराइयों को समझने और बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान खोजने की प्रेरणा देती है।
2025 में जन्माष्टमी का पावन पर्व 16 अगस्त को मनाया जा रहा है और इस शुभ अवसर पर हम आपको श्रीकृष्ण से जुड़ी कुछ ऐसी खास कथाएं और उनसे मिलने वाली अनमोल सीखें बताएंगे, जो आपके जीवन को सफल और खुशहाल बनाने में मदद करेंगी।
ये कथाएं न केवल हमें धार्मिक ज्ञान देती हैं, बल्कि हमें व्यवहारिक जीवन प्रबंधन के ऐसे सूत्र भी देती हैं, जिन्हें अपनाकर हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं और चुनौतियों का डटकर सामना कर सकते हैं। आइए जानें...
जन्माष्टमी क्यों मनाते हैंभगवान श्रीकृष्ण की जयंती, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, हर साल भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कारागार में हुआ था। भक्त पूरे दिन उपवासी रहते हैं और रात के समय श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाते हैं। लोग भजन, कीर्तन, रासलीला और पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। |
ये खबर भी पढ़ें...सावन में क्यों की जाती है पार्थिव शिवलिंग की पूजा, जानें शिवलिंग बनाने की विधि
योजना बनाए बिना काम की शुरूआत न करें
जीवन में किसी भी बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए योजना बनाना सबसे पहला और जरूरी कदम है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की कथा ही हमें इसकी सबसे बड़ी सीख देती है।
कथा:
जब भगवान विष्णु श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे, तब देवकी और वसुदेव कंस की कैद में थे। कंस ने उनकी 6 संतानों का वध कर दिया था।
सातवीं संतान के रूप में बलराम देवकी के गर्भ में आए, तो भगवान विष्णु ने योगमाया से कहा कि आप इस सातवीं संतान को देवकी के गर्भ से निकालकर वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दो। इसके बाद कंस को ये सूचना दी जाएगी कि सातवां गर्भ गिर गया है। योगमाया ने ऐसा ही किया।
इसके बाद जब आठवीं संतान के जन्म का समय आया, तो भगवान ने योगमाया से कहा कि अब मेरे अवतार लेने का समय आ गया है। जब मेरे अवतार का जन्म होगा, ठीक उसी समय आप गोकुल में यशोदा के गर्भ से जन्म लेना।
वसुदेव जी कंस के कारागार से निकालकर मुझे गोकुल पहुंचाएंगे और आपको लेकर कंस के कारागार में आ जाएंगे। जब कंस आठवीं संतान को मारने के लिए आएगा, तब आप मुक्त हो जाना। भगवान ने जो योजना बनाई थी, उसी के मुताबिक श्रीकृष्ण का अवतार हो गया।
कथा की सीख:
इस कथा में भगवान ने संदेश दिया है कि जब भी कोई काम करना हो तो उसकी योजना जरूर बनाएं। एक अच्छी और सोची-समझी योजना ही सफलता की कुंजी होती है।
बिना सोचे-समझे शुरू किया गया कोई भी काम अक्सर मुश्किलों में फंस जाता है। यह जीवन प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण सूत्र है, जिसे अपनाकर हम अपने हर क्षेत्र में सफल हो सकते हैं, चाहे वह व्यक्तिगत हो या व्यावसायिक।
ऐसे काम न करें, जिनकी वजह से गलत लोगों की ताकत बढ़ती है
श्रीकृष्ण की लीलाएं हमें सिखाती हैं कि अन्याय और गलत ताकतों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, भले ही हमें अपने स्तर पर कुछ छोटे काम ही क्यों न करने पड़े।
कथा:
बाल कृष्ण माखन चोरी की लीला कर रहे थे, जिससे गोकुल के लोग काफी परेशान थे। एक दिन गांव के लोग नंद बाबा और यशोदा के पास पहुंचे और कान्हा की शिकायत करने लगे।
नंद बाबा ने कृष्ण से पूछा कि तुम माखन चोरी क्यों करते हो, जबकि हमारे घर में तो बहुत माखन है। कृष्ण ने कहा कि आप लोग मेहनत से दूध, दही, घी, माखन तैयार करते हैं और फिर ये चीजें कर के रूप में दुष्ट कंस को दे देते हैं।
इस वजह से गांव के बच्चों को माखन नहीं मिलता है। आपके इस काम से कंस की ताकत लगातार बढ़ रही है। अगर आप कंस को कर देना नहीं रोकेंगे, तो मैं तोड़-फोड़ करता रहूंगा, ताकि ये माखन कंस के पास न पहुंचे और गांव के बच्चों को मिल सके।
कथा की सीख:
इस कथा में श्रीकृष्ण ने संदेश दिया है कि हमें ऐसे काम नहीं करना चाहिए, जिनकी वजह से गलत लोगों की ताकत बढ़ती है।
कभी-कभी, अनजाने में भी हम ऐसे कार्यों का समर्थन कर देते हैं जो गुप्त रूप से गलत लोगों या व्यवस्थाओं को मजबूत करते हैं। श्रीकृष्ण की यह सीख हमें जागरूक रहने और अन्याय का हिस्सा न बनने के लिए प्रेरित करती है, भले ही इसके लिए हमें कुछ त्याग क्यों न करना पड़े। यह सामाजिक न्याय और नैतिक मूल्यों का एक बड़ा पाठ है।
ये खबर भी पढ़ें...नाग पंचमी 2025 : क्यों है नाग पंचमी के दिन नागों को दूध चढ़ाने की परंपरा, जानें महत्व और पूजा विधि
जब कोई झूठा आरोप लगे तो धैर्य न छोड़ें
जीवन में कई बार ऐसा होता है जब हमें बिना किसी गलती के झूठे आरोपों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में धैर्य बनाए रखना बहुत ही जरूरी है।
कथा:
द्वारका में एक सूर्य भक्त सत्राजित था। उसे सूर्य देव ने स्यमंतक नाम की चमत्कारी मणि दी थी। ये मणि रोज बीस तोला सोना उगलती थी। एक दिन श्रीकृष्ण ने सत्राजित से कहा कि आप ये मणि राजकोष में देंगे तो इससे मिले धन से प्रजा की अच्छी देखभाल हो सकेगी।
सत्राजित ने श्रीकृष्ण को मणि देने से मना कर दिया। इस घटना के कुछ दिन बाद सत्राजित के भाई प्रसेनजित ने मणि चुरा ली। प्रसेनजित मणि लेकर जंगल में भाग गया। जंगल में एक शेर ने प्रसेनजित को मार दिया और खा गया।
मणि जंगल में ही गिर गई। सत्राजित को जब प्रसेनजित और अपनी मणि नहीं मिली तो उसने श्रीकृष्ण पर आरोप लगा दिया कि कृष्ण ने ही मेरी मणि चुराई है और मेरे भाई की हत्या कर दी है। श्रीकृष्ण पर चोरी और हत्या का कलंक लग गया।
श्रीकृष्ण ने उस समय क्रोध नहीं किया, धैर्य बनाए रखा और इस आरोप को गलत साबित करने के लिए जंगल की ओर चल दिए। जंगल में श्रीकृष्ण को शेर के पैरों के निशान दिखे और निशान के पास हड्डियों का ढेर दिखा। श्रीकृष्ण समझ गए कि प्रसेनजित को शेर ने मार दिया है और मणि यहीं कहीं गिर गई है। श्रीकृष्ण मणि खोजते हुए एक गुफा में पहुंच गए।
गुफा में जामवंत रहते थे। श्रीकृष्ण ने मणि मांगी तो जामवंत ने नहीं दी। इसके बाद दोनों का युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीकृष्ण जीत गए। जामवंत समझ गए कि ये भगवान श्रीराम के ही अवतार हैं। इसके बाद जामवंत ने मणि श्रीकृष्ण को दे दी और अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भी भगवान के साथ कर दिया।
द्वारका लौटकर श्रीकृष्ण ने वह मणि जामवंत से लेकर सत्राजित को दे दी और पूरी सच्चाई बता दी। सत्राजित को अपनी गलती पर बहुत पछतावा हुआ।
कथा की सीख:
इस कथा में श्रीकृष्ण ने संदेश दिया है कि हमारे ऊपर जब भी झूठे आरोप लगें तो हमें धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि शांति से पूरी बात समझें और आरोपों को झूठा साबित करें।
हड़बड़ी या क्रोध में लिया गया कोई भी फैसला स्थिति को और बिगाड़ सकता है। यह जीवन प्रबंधन का एक अमूल्य सूत्र है जो हमें संकट की घड़ी में शांत रहने और सही कदम उठाने का मार्ग दिखाता है।
ये खबर भी पढ़ें... ऐसे करें मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा, जानें व्रत के 10 जरूरी नियम
कभी भी अपने बल पर घमंड न करें
अहंकार और घमंड व्यक्ति के विनाश का कारण बनते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने हमेशा विनम्रता और समानता का महत्व सिखाया है।
कथा:
महाभारत युद्ध में अर्जुन और कर्ण आमने-सामने थे। दोनों दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से लड़ रहे थे। जब-जब अर्जुन के तीर कर्ण के रथ पर लग रहे थे, तो कर्ण का रथ बहुत पीछे खिसक रहा था। दूसरी ओर जब-जब कर्ण के तीर अर्जुन के रथ पर लगते, तो उसका रथ थोड़ा सा ही पीछे खिसकता था। ये देखकर अर्जुन को घमंड हो गया कि उसके बाणों में ज्यादा शक्ति है।
अर्जुन ने ये बात श्रीकृष्ण से कही, तो भगवान ने कहा कि तुम्हारे बाणों से ज्यादा शक्ति कर्ण के बाणों में है। भगवान की बात सुनकर अर्जुन ने कहा कि ये कैसे संभव है, मेरा रथ तो थोड़ा सा ही पीछे खिसक रहा है।
श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे रथ पर मैं स्वयं बैठा हूं, ऊपर ध्वजा पर हनुमान जी विराजित हैं, तुम्हारे रथ के पहिए को शेषनाग ने थाम रखा है। इतना होने के बाद भी कर्ण के बाण से ये रथ पीछे खिसक रहा है, तो इसका मतलब यही है कि उसके बाणों में ज्यादा शक्ति है। ये बात सुनकर अर्जुन को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसका घमंड टूट गया।
कथा की सीख:
इस कथा में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सीख दी है कि कभी अपनी शक्ति का घमंड न करें और शत्रु को कमजोर न समझें। जीवन में अक्सर हम अपनी सफलताओं या क्षमताओं पर घमंड करने लगते हैं और दूसरों को कम आंकते हैं।
यह हमें वास्तविकता से दूर ले जाता है और हमारी प्रगति को बाधित करता है। विनम्रता ही हमें निरंतर सीखने और बेहतर बनने का अवसर देती है। यह जीवन प्रबंधन का एक सुनहरा नियम है जो हमें हमेशा जमीन से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है।
thesootr links
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬👩👦👨👩👧👧
Tags : भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव | श्रीकृष्ण जन्माष्टमी | कब है जन्माष्टमी | Janmashtami Celebration | धर्म ज्योतिष न्यूज